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खुद घटतौल का शिकार मापतौल विभाग

अररिया के अधिकारी हैं प्रभार में, यदा-कदा ही आते हैं नजर तराजू व वाटों की नियमित जांच नहीं होने से ठगे जाते हैं आम उपभोक्ता सुपौल : जिले में माप तौल विभाग भगवान भरोसे चल रहा है. यही कारण है कि करीब 15 साल से प्रभार के बदौलत जिले की मापतौल विभाग संचालित की जा […]

अररिया के अधिकारी हैं प्रभार में, यदा-कदा ही आते हैं नजर

तराजू व वाटों की नियमित जांच नहीं होने से ठगे जाते हैं आम उपभोक्ता
सुपौल : जिले में माप तौल विभाग भगवान भरोसे चल रहा है. यही कारण है कि करीब 15 साल से प्रभार के बदौलत जिले की मापतौल विभाग संचालित की जा रही है. जिसके चलते आये दिन भोले-भाले ग्राहकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. विभागीय सूत्र बताते हैं कि जिले में मापतौल से संबंधित मामले को सुचारु ढंग से चलाने के लिये तीन केंद्र बनाये गये हैं. जिसमें सुपौल, वीरपुर और निर्मली शामिल है. यहां एक-एक इंस्पेक्टर की पदस्थापना होनी चाहिये. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाय कि तीनों जगहों पर करीब 15 साल से विभाग द्वारा इंस्पेक्टर की पदस्थापना नहीं की जा सकी है.
हालांकि खानापूरी के लिये अररिया में पदस्थापित इंस्पेक्टर को इन तीनों जगहों का प्रभार दिया गया है. बताया जाता है कि इस अधिकारी की ड‍्यूटी सप्ताह में महज एक दिन हर नगर परिषद व नगर पंचायत क्षेत्र में लगायी जाती है. इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में मापतौल के लिये विभाग के द्वारा की जा रही पहल कितनी कारगर है.
वाटों की नहीं होती है नियमित जांच
लोगों की मानें तो विभागीय उदासीनता के कारण जिले के लोगों को सामान की खरीदारी में ठगी का सामना करना पड़ रहा है. जेब पर पड़ने वाले इस बोझ को लेकर विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठते रहते हैं. जिले में विभाग द्वारा की जाने वाली कार्रवाई को लेकर भी लोग संशय की स्थिति में है. लोगों मानें तो विभागीय पदाधिकारी इलाके में घूम-घूम कर अपनी उपस्थिति जरूर दर्शाते हैं. लेकिन अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गयी. आज भी ऐसे वाट का इस्तेमाल किया जाता है जो विभागीय मापदंडों पर खरे नहीं उतरते. पुराने वाटों का इस्तेमाल ग्राहकों के लिए घाटे का सौदा साबित होता है. वहीं बाजार में नकली वाटों की बड़ी उपस्थिति बतायी जाती है.
अजीबो-गरीब वाट और तराजू का हो रहा है उपयोग
वैसे तो बाजार में किसी भी चीज के खरीद के लिये दो तरह के तराजू उपलब्ध है. जिसमें पहला इलेक्ट्रोनिक व दूसरा मैनुअल तराजू माना जाता है. यह तराजू आमतौर पर बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. इसके बावजूद अधिकांश फुटकर विक्रेताओं के पास अजीबो-गरीब तराजू जो अपने हिसाब से बनाये जाते है, उससे कारोबार चलता है. जिसकी ना तो कहीं जांच होती है और ना ही विभाग द्वारा कभी उसे रोका-टोका जाता है. तराजू ही नहीं वाट की भी कमोवेश यही स्थिति है. फल-सब्जी विक्रेता हो या फिर मछली बाजार. लोहे-पत्थर के वाट से अधिकांश दुकानदार काम चला लेते हैं. ऐसे में वजन की गारंटी तराजू व वाट के बजाय दुकानदार की जुबान ही होती है. जबकि इन अवैध वाट और तराजू की देखभाल के लिये विभाग कार्यरत हैं.
अधिकारियों की कमी के कारण इसका खामियाजा हर रोज हजारों ग्राहकों को भुगतना पड़ता है. कई दुकानों व प्रतिष्ठानों पर सामानों की कम मापतौल की अक्सर शिकायत मिलती है. लेकिन विडंबना है कि मापी में कमी की शिकायत आखिर ग्राहक करें तो कहां करें यह समस्या बनी हुई है. वहीं दूसरी ओर विभागीय आंकड़ों की बात करें तो सिर्फ सुपौल में करीब चार हजार दुकानदारों को मापतौल का लाइसेंस निर्गत किया गया है. कमोबेश यही स्थिति निर्मली और वीरपुर का भी है. कुल मिलाकर करीब 12 हजार दुकानदार ऐसे हैं, जिन्हें मापतौल विभाग द्वारा लाइसेंस निर्गत किया गया है. लेकिन उसकी नियमित रूप से जांच नहीं किये जाने के कारण उपभोक्ता परेशान होते रहते हैं.
विभाग द्वारा मापतौल के वाट, इलेक्ट्रोनिक्स तराजू एवं मैन्युअल तराजू का लाइसेंस निर्गत किया जाता है. जिसमें इलेक्ट्रोनिक तराजू के लिये एक साल जबकि मैन्यूअल तराजू के लिये दो साल की वैधता दी जाती है. लेकिन लोग कहते हैं कि एक बार लाइसेंस लेने के बाद ना तो दुकानदार इसे रैन्युअल कराते हैं और ना ही विभागीय स्तर से इस दिशा में समय-समय पर पहल की जाती है. वहीं अधिकांश छुटभैये दुकानदार तो बिना विभाग से जांच कराये ही तराजू व मापतौल यंत्र का खुलेआम इस्तेमाल करते हैं. जिसके चलते वजन में कमी का शिकार उपभोक्ताओं को होना पड़ता है.
लचीला है दंड प्रावधान
विभागीय सूत्र कहते हैं कि वाट या तराजू मामले में कहीं भी कमी पाये जाने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई का प्रावधान है. लेकिन कार्रवाई की प्रक्रिया इतनी सुलभ है कि आरोपित आसानी से दंड सह लेते हैं. जानकार कहते हैं कि ऐसे मामले प्राय: लोग अदालत के द्वारा हल किये जाते हैं. जिसमें मुश्किल से दो सौ से तीन सौ रुपये का ही दंड देकर उसे छोड़ दिया जाता है. जिसके चलते आरोपी इस मामले में उतनी गंभीरता नहीं दिखाते और पुन: वाट और तराजू के साथ छेड़छाड़ कर ठगी का खेल बदस्तूर जारी रखते हैं. वजन को लेकर अक्सर दुकानदार व ग्राहकों के बीच कहासुनी होती रहती है.
कम वजन को लेकर होती है कहासुनी
आमतौर पर जिले भर में ग्राहकों द्वारा दुकानदार के साथ कम वजन को लेकर कहासुनी होती रहती है. चूंकि अधिकांश जगहों पर परंपरागत तराजू का ही चलन आ रहा है. ऐसे में फुटपाथ के विक्रेताओं द्वारा जो वस्तुओं को नाप कर दिया जाता है, उसमे अक्सर वजन कम होने की शिकायत भी सामने आती है. लेकिन इन बातों को जानकर भी विभाग कुंभकर्णी नींद में सोया है. इसके अलावा बड़े दुकानों में भी अधिकतर तराजू का इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है. चौंकाने वाली बात यह भी है कि मापतौल विभाग में पदस्थापित एक पदाधिकारी द्वारा ही इलेक्ट्रॉनिक तराजू सप्लाय की जा रही है. इसे लेकर भी जांच की मांग उठने लगी है. सदियों से चली आ रही तराजू से वस्तुओं के वजन का सिलसिला कब थमेगा और तराजू से नापतौल से ग्राहकों को होने वाले नुकसान की भरपाई कौन करेगा यह यक्ष प्रश्न आज भी कायम है. विभागीय अधिकारी गलत आंकड़े प्रस्तुत कर सरकार की नीतियों को भी गलत दिशा की और ले जा रहे है. आम लोगों की शिकायत है कि वजन के लिए मौजूद वाट का निरीक्षण नियमित रूप से नहीं किया जा रहा. वाट के नीचे मौजूद रंगा में किसी तरह के मुहर या सील लगा नहीं होता. मनमानी तरीके से दुकानदार अपने सामानों को बेचते हैं. एक किलो की जगह ग्राहकों को पौन किलो ही दिया जाता है. जिसकी वजह से दुकानदार व ग्राहकों के बीच अक्सर कहासुूनी होती रहती है. इस धोखाधड़ी के महाजाल में आम ग्राहकों के जेब कट रही है और विभागीय अधिकारी ग्राहकों की समस्या को दूर करने के बजाय बस अपनी स्वार्थ सिद्धि में लगे हुए हैं. बुधवार को जब इस संबंध में जानकारी के लिये मापतौल विभाग के अधिकारी से उनके मोबाइल नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की गयी तो उनका मोबाइल स्वीच ऑफ पाया गया. जो विभागीय लापरवाही का एक और नमूना पेश करता है.

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