मातम. बेटे को गंवा देने के गम से उबर नहीं पाये हैं हकाम के ग्रामीण
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हर तरफ खामोशी, गलियां पड़ीं सूनी
मातम. बेटे को गंवा देने के गम से उबर नहीं पाये हैं हकाम के ग्रामीण सीवान : कल तक यहां चीख-पुकार मची थी. अब यहां खामोशी है. गलियां सूनी पड़ी हैं. दरवाजे पर चंद लोग नजर आ रहे हैं. हर किसी की जुबान पर ऐसा लगता है कि हालात ने ताला जड़ दिया है. इनकी […]
सीवान : कल तक यहां चीख-पुकार मची थी. अब यहां खामोशी है. गलियां सूनी पड़ी हैं. दरवाजे पर चंद लोग नजर आ रहे हैं. हर किसी की जुबान पर ऐसा लगता है कि हालात ने ताला जड़ दिया है. इनकी जुबान भले ही कुछ नहीं कह रही हो, पर आंखें दु:खों के समंदर में डूब जाने का एहसास जरूर करा रही है.
बुधवार को पत्रकार राजदेव रंजन के पचरुखी प्रखंड के पैतृक गांव हकाम की यह तसवीर रही. सीवान नगर से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर सीवान-लकड़ी दरगाह मार्ग से सटे हकाम गांव कभी चर्चा में नहीं रहनेवाला अब सुर्खियों में है. शहरी क्षेत्र से सटे होने के चलते गांव की सूरत बेशक बदली है.
पक्की सड़कें, विद्यालय समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं से संपन्न पिछड़ी व अति पिछड़ी जातियों की बहुसंख्यक आबादी वाले गांव की पहचान पत्रकार राजदेव रंजन से भी रही है. गांव के इस लाल की 13 मई की शाम दरिंदों ने गोली मार कर हत्या कर दी. इसके बाद से ही पूरा गांव शोक व मातम में डूबा हुआ है. घटना के बाद से हर दिन गम में डूबे परिजनों को ढाढ़स बंधाने वालों का तांता लगा रहा. प्रतिपक्ष के नेता प्रेम कुमार से लेकर पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी,
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय, केंद्रीय राज्य मंत्री रामकृपाल यादव, जनाधिकार पार्टी के अध्यक्ष सांसद पप्पू यादव, लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान समेत अन्य कई नेता यहां परिजनों से मिले व दु:ख की घड़ी में साथ होने वादा निभाया. हाल यह है कि समय के साथ अब यहां के हालात भी बदले हुए नजर आ रहे हैं.
महिलाओं के रुदन से सभी की आंखें हुईं नम
घटना के पांच दिन गुजरने के बाद अब यहां कोई चीख-पुकार सुनाई नहीं पड़ती. यहां अजब-सा सन्नाटा जरूर है. दरवाजे पर राजदेव के वृद्ध पिता राधाकृष्ण सिर पर हाथ रखे हुए हैं. उनकी कुरसी की अगल-बगल दो बेटे कालीचरण व गौतम बैठे हैं. प्रभात खबर टीम पर उनकी जब नजर पड़ती है,
तो परिचय पूछते हुए सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा करते हैं. इसके बाद वे खामोश हो जाते हैं. कुछ मिनट बाद उनके कोई रिश्तेदार दरवाजे पर आते हैं, वे घर के अंदर चले जाते हैं. उनके अंदर जाते ही महिलाओं के रोने की आवाज सुनाई पड़ती है. इसके चलते दरवाजे पर जहां खामोशी थी, अचानक महिलाओं की रोने की आवाज सुन कर बाहर बैठे लोगों की भी आंखें नम हो जाती हैं. स्वर्गीय राजदेव के बड़े भाई कालीचरण कहते हैं कि राजदेव की किसी से कोई दुश्मनी नहीं रही.
निष्पक्ष खबर लिखने की सजा दरिंदों ने जान लेकर दी. इसके खिलाफ स्थानीय पुलिस ने भी अब तक जांच में कोई दिलचस्पी नहीं दिखलायी है. वे कहते हैं कि अब सीबीआइ की जांच पर ही भरोसा है. इसके साथ ही यह भी कहते हैं कि सीबीआइ की जांच रिपोर्ट में वर्षों लग जाते हैं. केंद्र व राज्य सरकारों से हमारी अपील है कि जांच शुरू कर जल्द-से-जल्द रिपोर्ट दें. इसके साथ ही कालीचरण कहते हैं कि सरकार की तरफ से आज तक यहां कोई प्रतिनिधि हाल जानने नहीं आया. क्षेत्रीय विधायक श्याम बहादुर सिंह ने कोई सुधी नहीं ली. इसको लेकर परिजनों में बहुत नाराजगी है.
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