सीवान : धरातल पर हकीकत यह है कि अगर इस अभियान को ठीक से नहीं चलाया गया, तो यह बीमारी महामारी का रूप ले सकती है. इसका इलाज समय से करने पर इसे पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हुआ जा सकता है. लेकिन आज भी दर्जनों लोग प्रत्येक साल इस बीमारी से मर जाते हैं. जिले […]
सीवान : धरातल पर हकीकत यह है कि अगर इस अभियान को ठीक से नहीं चलाया गया, तो यह बीमारी महामारी का रूप ले सकती है. इसका इलाज समय से करने पर इसे पूर्ण रूप से स्वस्थ्य हुआ जा सकता है.
लेकिन आज भी दर्जनों लोग प्रत्येक साल इस बीमारी से मर जाते हैं. जिले की अाबादी करीब 39 लाख 65 हजार 469 है. विभाग के अनुसार एक लाख अाबादी पर 216 नये टीबी के मरीजों की पहचान एक साल में होनी चाहिए. इस हिसाब से आठ हजार पांच सौ 64 टीबी के नये मरीजों की पहचान एक साल में होनी चाहिए. पिछले साल मार्च से लेकर अब तक करीब 1470 टीबी के नये मरीजों की पहचान हो पायी है. इसमें से 47 मरीज एमडीआर टीबी तथा दो मरीज एक्सडीआर टीबी के हैं. अब तक नौ एमडीआर दवा का कोर्स पूरा कर चुके है, जिनमें दो मरीजों को विभाग ने क्योर घोषित कर दिया है.
आरएनटीसीपी कार्यक्रम में बाधक है प्राइवेट डॉक्टर व जांच घर : जिले की कुल अाबादी के करीब 60 प्रतिशत लोग प्राइवेट डॉक्टर के पास इलाज कराने जाते हैं. इससे स्वाभाविक है कि प्राइवेट डॉक्टरों के पास टीबी के नये मरीज अधिक संख्या में मिलते हैं, लेकिन प्राइवेट डॉक्टर, रेडियोलॉजिस्ट व पैथेलॉजी वाले इनकी सूचना विभाग को नहीं देते. टीबी के इन नये मरीज कुछ दवा खाने के बाद, जब उन्हें आराम हो जाता है, तो दवा छोड़ देते हैं.
विभाग के पास ऐसे मरीजों का कोई लेखा- जोखा नहीं होने के कारण विभाग इनकी मॉनीटरिंग नहीं कर पाता. दुबारा जब बीमारी भयावह रूप ले लेती है, तब उन्हें सरकारी अस्पतालों या डॉट सेंटरों पर प्राइवेट डॉक्टर भेजते हैं. इसलिए आरएनटीसीपी कार्यक्रम की सफलता के लिए विभाग को जिले के सभी रेडियोलॉजिस्ट, पैथेलॉजी सेंटरों व प्राइवेट डॉकटरों को अधिसूचना के दायरे में लाना होगा.
संसाधनों की कमी के कारण कार्यक्रम है प्रभावित : वैसे तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर सदर अस्पताल तक टीबी के उपचार की व्यवस्था है. लेकिन संसाधनों की कमी के कारण आरएनटीसीपी कार्यक्रम प्रभावित है. जिला यक्ष्मा केंद्र सहित जिले में छह टीयू बनाये गये हैं. जिसमें तीन एसटीएस और एक एसटीएलएस का पद रिक्त है. टीबी मरीजों की देखभाल करने व उनका पता लगाने के लिए विभाग ने एसटीएस काे बाइक उपलब्ध करायी है.
आरएनटीसीपी कार्यक्रम निचले स्तर पर गलत प्रबंधन व कार्यक्रम की महत्ता को अधिकारियों द्वारा नहीं समझने के कारण मरीजों का इसका लाभ नहीं मिल पाता है. करीब एक साल से सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बलगम जांच व डॉट्स दवा की व्यवस्था कर दी गयी है. विभाग के निर्देशानुसार टीबी मरीजों को आशा द्वारा दवा खिलानी है. लेकिन आशा द्वारा निर्देशानुसार मरीज को दवा नहीं खिलायी जाती है.
लोगों को जागरूक करने में विफल हैं एनजीओ : आरएनटीसीपी कार्यक्रम से जुड़े एनजीओ की जवाबदेही है कि लोगों को टीबी बीमारी के संबंध में जागरूक करें. लेकिन अक्सर देखा जाताहै कि यक्ष्मा दिवस पर ही एनजीओ के कार्यकर्ता बैनर व पोस्टर लगा कर प्रभातफेरी निकालते हैं.
एनजीओ की ये भी जवाबदेही है कि प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिशनरों के साथ समय-समय पर बैठक कर उनसे भी सहयोग करने की अपील करें. टीबी लाइलाज बीमारी नहीं है. अगर इसका समय पर उपचार किया जाये, तो आदमी पूर्ण रूप से स्वस्थ हो सकता है. इस बात की जानकारी तरह-तरह के माध्यमों से एनजीओ को लोगों तक पहुंचाने का काम करना चाहिए.