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पंवरियों के घरों में खुशी का अभाव

पंवरियों के घरों में खुशी का अभाव दूसरों के घरों में गाते हैं बधाईआज तक नहीं मुहैया हुईं सरकारी सुविधाएंबड़हरिया . दूसरों की खुशी को अपनी खुशी समझ कर बधाई गाने वाली पंवरिया जाति के घरों में आर्थिक विपन्नता के कारण खुशी का अभाव है. प्रखंड के माधोपुर के कालू छपरा के करीब 20 घरों […]

पंवरियों के घरों में खुशी का अभाव दूसरों के घरों में गाते हैं बधाईआज तक नहीं मुहैया हुईं सरकारी सुविधाएंबड़हरिया . दूसरों की खुशी को अपनी खुशी समझ कर बधाई गाने वाली पंवरिया जाति के घरों में आर्थिक विपन्नता के कारण खुशी का अभाव है. प्रखंड के माधोपुर के कालू छपरा के करीब 20 घरों वाली इस बस्ती के अधिकतर लोग घरों में बधाई गाने के पारंपरिक पेशे से जुड़े हुए हैं. अलबता दूसरों के घर बच्चा पैदा होने की खबर सुन कर पहुंचने वाली इस जाति को आजादी के इतने दिनाें बाद भी तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ मयस्सर नहीं हो पाया है. बड़हरिया-गोपालगंज मुख्य पथ पर अवस्थित कालू छपरा की इस बस्ती को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि विकास की योजनाएं इनकी झोंपडियों को छुये बगैर चली गयी हैं. अलबता इस बस्ती के कुछ लोगों ने अपने इस पुश्तैनी पेशे को बदल कर अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की है. इन्होंने अपना पूरा ध्यान अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर लगा रखा है. काबिले तारीफ बात तो यह है कि इस बस्ती के मो मनफूल अपने पैतृक पेशे को बरकरार रखते हुए अपने बेटे हबीब आलम को हैदराबाद से इंजीनियरिंग करा रहे हैं. वहीं किताबुद्दीन ने अपना पूरा ध्यान बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर केंद्रित किया है, लेकिन आर्थिक तंगी से गुजर रहे इस बस्ती के अधिकतर लोग अपने परिजनों के भरण-पोषण में लगे हैं. इस मुहल्ले के जलील मियां, जासिम मियां, वकील मियां, शमशेर अली, नवीशेर अली, मो आश सहित दर्जन भर ऐसे परिवार हैं, जिनके घरों के लोग बधाइयां गाकर अपने परिजनों का भरण-पोषण ही कर पाते हैं. सुखद आश्चर्य की प्रतीक इस जाति के लोगों को इस बात से कोई लेना-देना नहीं हैं कि बच्चा हिंदू के घर पैदा हुआ है या मुसलमान के घर. इनका तो काम है उनकी खुशियों में शरीक हो जाना, तरह-तरह के गीत गाकर नवजात शिशु के परिजनों को रिझाने व मानने के बाद जो राशि मिलती है, उससे इस जाति के लोग महज भोजन का जुगाड़ कर पाते हैं, इम्तेयाज अली ने बताया कि पुराने जमाने में पंवरियां जाति के लाेगों की आमदनी अच्छी-खासी हो जाती थी. लेकिन आज जनसंख्या वृद्धि के बावजूद मेहनत के अनुपात में आमदनी नहीं हो पाती है. इम्तेयाज अली बताते हैं कि बधाई गाने के बाद उपहार में मिली चीजों को इस जाति के लोग औने-पौने दामों पर बाजार में बेच देते हैं. इसका लाभ दूसरे उठा रहे हैं, जबकि यह जाति आजादी के समय जहां ठहरी थी, आज भी वहीं है. अलबत्ता इस बस्ती के कुछ लोगों ने अपने पुश्तैनी पेशे को बदल कर बैंड पार्टी बना ली है व शादी या अन्य शुभ अवसरों पर बाजा बजा कर अपनी रोजी कर रहे हैं. इस बस्ती के अली व पहाड़ी को आज तक इंदिरा आवास योजना के तहत अदद एक छत तक नसीब नहीं हो पायी है. बहरहाल, दूसरों की खुशी को अपनी खुशी मान कर बधाई गाने वाली इस जाति के लोगों की जिंदगी खुशियों से नहीं भर पायी है.

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