मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए बनाएं रंगोलीबाजारों में बढ़ रही रेडिमेड रंगोली की मांगदुकानें भी सज-धज कर तैयार कृपया संबंधित लोगो लगा लें सीवान. दीपावली में कुछ ही दिन शेष रह गये हैं. घरों की साफ-सफाई शुरू हो गयी है. मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों की सजावट की जा रही है.
इस दौरान रंगोली का भी खास महत्व होता है. उनके स्वागत के लिए घर,आंगन के द्वार, पूजा स्थल आदि पर रंगोली बनायी जाती है. कई घरों में दीपावली के अवसर पर रंगोली बना कर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने की परंपरा आज भी कायम है. समय के अभाव में कई लोग रेडिमेड रंगोली ज्यादा पसंद कर रहे हैं. आज भी लक्ष्मी पूजा के दिन घर आंगन व पूजा स्थल पर पारंपरिक रंगोली बनायी जाती है. चावल का आटा, रंग,अबीर फूल व रंगे चावल आदि से आकर्षक डिजाइन बनायी जाती है.
उगते सूरज, चांद, सितारे, देवी लक्ष्मी, ओम, मंगल कलश, स्वास्तिक चिह्न, दीपक, मां लक्ष्मी के चरण आदि की रंगोली बनायी जाती है. ऐसा माना जाता है कि रंगोली की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई थी. हाल के दिनों में महिलाएं रंगोली बनाने में व्यर्थ समय नहीं लगाना चाहती हैं.
भाग-दौड़ की जिंदगी में किसी के पास रंगोली बनाने का समय नहीं है. ऐसे में लोगों में रेडिमेड रंगोली खरीद लेने की ज्यादा ही उत्सुकता रहती है. इधर, दुकानदार भी लोगों की इस समस्या को समझते हुए रेडिमेड रंगोली की दुकानों भी सजा रहे हैं. दीपावली के दिन पहले लोग घी के बत्ती, सरसों तेल आदि के दीये जलाते थे, लेकिन बदलते परिवेश में लोग इलेक्ट्रिक रंगीन बल्बों से घरों को सजाते हैं. इससे बाजारों में इनकी बिक्री कुछ अधिक ही दिख रही है. कलरफुल रंगोली बाजार में उपलब्ध है.
रेडिमेड रंगोली 10 रुपये में ही मिल जा रही है. ऐसे में लोग बनाने से अच्छा खरीद लेना ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं. आज भी कई जगहों पर रंगोली प्राकृतिक रंगों से बनायी जाती है. रंग, गुलाल के अलावा लकड़ी का बुरादा, हल्दी, आटा, पलाश फूल के रंग आदि भी रंगोली बनाने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं.
लोगों का मानना है कि प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल करने से कोई नुकसान नहीं होता है. इन सेट मिट्टी के दीपक की सिर्फ रस्म अदायगी सीवान. जहां एक ओर बाजार में बिजली की सजावटी झालरों ने कब्जा जमा लिया है, वहीं दूसरी ओर मिट्टी के दीये कहीं कहींं स्थान विशेष पर देखे जा रहे हैं. इससे यही लगता है कि आधुनिकता के दौर में मिट्टी के दीये रस्म अदायगी न हो जायें.
नगर में फतेहपुर बाइपास, नया बाजार, बैलहटा, शांति वट वृक्ष सहित अन्य जगहों पर आज भी मिट्टी के दीये, मूर्तियां और बरतन बनाये जाते हैं. इनको बनाने वालों का कहना है कि जब से बाजार में चाइनीज आइटम आये हैं, तब से मिट्टी के सामान की मांग कम हो गयी है. ऐसे में हमारा रोजगार भी समाप्त हो रहा है. हमलोगों को यह चिंता सता रही है कि अब हमलोग कौन-सा उद्यम करेंगे.