सीवान : जन्म से लाचार मूक बधिर की सुधि लेने की यहां कभी शासन व प्रशासन ने कोशिश नहीं की. उधर, सेवा व विकास की कसमें खानेवाले जनप्रतिनिधियों को उनके हालात पर कभी रोना नहीं आया. शहर के नई बस्ती मुहल्ले में मूक बधिरों के स्कूल के स्थापना के दो दशक से अधिक वक्त गुजर गये. इसके बाद भी किसी ने इसके हालात को जानना नहीं चाहा.
ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तो बात दूर, अब यहां जान जोखिम में डाल कर ये छात्र पढ़ने को मजबूर हैं. जर्जर हो चुके दो मंजिला भवन में नियमित बच्चों की कक्षाएं चलती हैं. इसकी दीवार व सीढ़ियां जर्जर हो चुकी हैं. इसके हालात को देख सहसा अंदाजा लगाया जा सकता है कि कभी यह भवन ध्वस्त हो सकता है. ऐसे में 50 से 60 छात्रों की जान हर दिन जोखिम में है. विद्यालय के प्रधानाचार्य अनिल कुमार मिश्र ही यहां के एक मात्र स्टाफ हैं, जिनकी लगन व परिश्रम से यह बगिया सींच कर तैयार की गयी है. गोरेयाकोठी प्रखंड के हरपुर गांव निवासी अनिल मिश्र की पहल पर वर्ष 1990 से यहां विद्यालय संचालित है. विद्यालय को शासन की तरफ से वित्तीय मान्यता नहीं मिली है. ऐसे में छात्रों की फीस ही अनिल मिश्र की आय की स्रोत है. संपत्ति के नाम पर यह विद्यालय भवन इसकी संपत्ति है.
जन्म से मूक व बधिर अनिल मिश्र कागजों पर अपने भाव को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि विद्यालय के लिए कई बार प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क किया. इसके अलावा स्थानीय जन प्रतिनिधियों ने भी बातचीत के दौरान आश्वासन तो कई बार दिया, लेकिन धरातल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. सर्वशिक्षा अभियान के तहत संचालित किसी भी योजना का छात्रों को लाभ नहीं मिलता है.यहां के जर्जर भवन की मरम्मत के लिए भी किसी ने कोई बजट नहीं दिया. अनिल मिश्र कहते हैं कि भवन कभी ध्वस्त हो सकता है. फर्नीचर के अभाव में अधिकतर छात्र जमीन पर ही बैठ कर पढ़ाई करते हैं.