Advertisement
मन्नतें पूरी होती हैं मकदुम बाबा के मजार पर
बड़हरिया (सीवान) : आज समाज में जहां सद्भाव, सहिष्णुता व आपसी सौहार्द की कमी देखी जा रही है. वहीं प्रखंड के चौकीहसन दक्षिण में गंडकी नदी के पश्चिमी छोर पर अवस्थित मकदुम बाबा का मजार आज भी हिंदू-मुसलिम को आज भी एकता का संदेश देने में कामयाब है. करीब पांच बीघे की चहारदीवारी के भीतर […]
बड़हरिया (सीवान) : आज समाज में जहां सद्भाव, सहिष्णुता व आपसी सौहार्द की कमी देखी जा रही है. वहीं प्रखंड के चौकीहसन दक्षिण में गंडकी नदी के पश्चिमी छोर पर अवस्थित मकदुम बाबा का मजार आज भी हिंदू-मुसलिम को आज भी एकता का संदेश देने में कामयाब है.
करीब पांच बीघे की चहारदीवारी के भीतर अवस्थित इस रमणीय मजार मुसलमानों से दा हिंदू श्रद्धालु एकांत चित बैठे व मजार में शिरनी व चादर चढ़ाते देखे जा सकते हैं. कोई मन्नत मांग रहा है, तो कोई मन्नतें पूरी होने पर चादरपोशी कर रहा है. वहीं कोई एकांत हो कर चिंतन कर रहा है. हिंदू-मुसलिम एकता का प्रतीक यह हजरत मकदुम सैयद शाह शहाबुद्दीन कताल जाहिदी का मजार कई दशकों से आध्यात्मिक चेतना का केंद्र बना हुआ है.
क्या है मकदुम बाबा के मजार का इतिहास : मकदुम बाबा के मजार के प्रबंधक पूर्व शिक्षक मुश्ताक अहमद सिद्दकी कहते है कि हजरत मकदुम सैयद शाह शहाबुद्दीन कताल जहिदी के पूर्वज फिरोज शाह तुगलक के दौर में शांति व सौहार्द का पैगाम लेकर मक्का शरीफ से हिंदुस्तान आये थे. मकदुम बाबा के पिता हजरत मकदुम सैयद शाह बदरूदीन बदरेआलम जाहिदी अमन का पैगाम लेकर पहले दिल्ली आये वहां से मेरठ पहुंचे और फिर बिहार आये थे. बिहार में उस वक्त हजरत याहिया मनीरी रहमतुला अल्लैह का दौर था. जब हजरत बदरूदीन बदरे आलम याहिया मनीरी के संपर्क में आये, तो उन्होंने बदरे आलम को शांति का संदेश फैलाने के लिए बंगाल भेज दिया. जहां अलाउदीन की हुकूमत थी. बताया जाता है कि बंगाल के चटगांव में एक पहाड़ पर शैतान व जिन्नात का डेरा था लेकिन उस पहाड़ पर पहाड़ पर उन्होंने जैसे हीं चिराग रोशन किया चारों ओर शांतिमय वातावरण हो गया व लोगों को बुरी आत्माओं से निजात मिल गई थी.
बहरहाल हजरत मकदुम बाबा ने बिहार शरीफ से सारण की ओर रूख किया व चौकीहसन आते आते उनका घोड़ा इसी चौकी हसन में थक कर बैठ गया था. उस जमाने में यहां नेपाल राजा का साम्राज्य था नेपाल के पुलिस चौकी हसन में अपनी पुलिस चौकी बना रखी थी. यहां आ कर अपने रहने के लिए चौकी मांगी थी. शायद इसलिए इस गांव का नाम चौकी हसन पड़ गया. खैर मकदुम बाबा यहीं रह कर पूरे परिक्षेत्र में आपसी मुहब्बत व अमन का पैगाम फैलाते रहे.
क्या है प्रसिद्धि का कारण
जहां अभी मकदूम बाबा का मजार है वहीं पर चार रमजान को मकदुम बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया था. इसलिए ईद के दिन पूरे इलाके के लोग यहां इकट्ठा हो कर ईद की नमाज पढ़ते हैं.
ईद के दिन मजार परिसर में भव्य मेला लगता है. मुसलमान दुआएं मांगते हैं. वैसे बकरीद को भी मुसलमान यहीं पर नमाज पढ़ते हैं व मेला लगता है. मुहर्रम का मेला लगता है. लोग फतिया पढ़ते है. मन्नतें मांगते हैं व फिर मन्नतें पूरी होने पर चादरपोशी करते हैं.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement