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न चिकित्सक, न संसाधन, कैसे होगा इलाज

पशुओं के इलाज के लिए जिले में स्थापित जिला पशु अस्पताल एवं अन्य पशु अस्पतालों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. यहां न तो पर्याप्त संख्या में चिकित्सक हैं, न कर्मी और न ही संसाधन उपलब्ध है. अस्पताल में दवाएं उपलब्ध नहीं हैं और न ही चिकित्सकीय उपकरण. ऐसे में यह कहना सटीक होगा […]

पशुओं के इलाज के लिए जिले में स्थापित जिला पशु अस्पताल एवं अन्य पशु अस्पतालों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है. यहां न तो पर्याप्त संख्या में चिकित्सक हैं, न कर्मी और न ही संसाधन उपलब्ध है. अस्पताल में दवाएं उपलब्ध नहीं हैं और न ही चिकित्सकीय उपकरण. ऐसे में यह कहना सटीक होगा कि बेजुबानों के इलाज के लिए स्थापित अस्पतालों को ही इलाज की दरकार है.
सीवान : पशुपालन किसानों का एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है, जिन पर लाखों लोगों का जीवन-यापन निर्भर है. एक तरफ सरकार श्वेत क्रांति लाने की बात करती है और विभिन्न डेयरी स्कीमों की घोषणा करती है. वहीं, दूसरी ओर पशुपालन विभाग में हर तरफ संसाधनों का टोटा नजर आता है. पशुओं के इलाज के लिए पशुपालक इधर-उधर भटकने को विवश हैं. अस्पतालों में दवा उपलब्ध नहीं हैं, जिस कारण उन्हें बाहर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं. साथ ही अधिकांश अस्पतालों में चिकित्सक नहीं हैं, जिस कारण उन्हें झोला छाप चिकित्सकों की शरण लेनी पड़ती है. ऐसे में कैसे होगा श्वेत क्रांति का सपना पूरा, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.
35 की जगह मात्र 15 चिकित्सक : जिले में जिला चिकित्सालय समेत 33 पशु चिकित्सालय स्थापित हैं, जिनमें 35 पशु चिकित्सकों के पद सृजित हैं. 35 चिकित्सकों के विरुद्ध मात्र 15 चिकित्सक ही कार्यरत हैं. फरवरी में संविदा पर कार्यरत नौ चिकित्सकों का अनुबंध समाप्त होने के बाद परेशानी और बढ़ गयी थी. लेकिन पांच चिकित्सकों के पदस्थापन से स्थिति कुछ सुधरी है. वहीं, जिला अस्पताल में पशु शल्य चिकित्सक व टीभीओ का पद रिक्त है. साथ ही ड्रेसर और कंपाउंडर का पद भी रिक्त है. कुल मिला कर जिले में एक भी ड्रेसर और कंपाउंडर नहीं है. साथ ही इसकी कमी से मोबाइल चिकित्सा वैन का भी समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है. गंभीर बीमारी की स्थिति में शल्य चिकित्सा भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है. कुल मिला कर संसाधनों के अभाव में विभाग अपना कोरम पूरा कर रहा है.
कार्यालय व अस्पताल खंडहर में तब्दील : जिला पशुपालन कार्यालय विभाग के गोदाम में चलाया जा रहा है. पुराना पशु चिकित्सालय खंडहर में तब्दील हो चुका है और चिकित्सक का आवास बदहाल है. इस कारण कई उपकरण खुले में सड़ रहे हैं. जिला पशु चिकित्सालय के लिए प्रस्तावित भवन का प्रस्ताव और 93 लाख रुपये उपलब्ध कराने की बात डीएचओ ने कही है. परंतु, दो साल बीत जाने के बाद भी अब तक कार्य शुरू नहीं हो सका है.
आधे अस्पताल भवनहीन : जिले के विभिन्न प्रखंडों और अन्य स्थानों पर स्थापित 33 पशु अस्पतालों में से आधे भवनहीन हैं. मात्र 15 अस्पतालों को ही अपना भवन है. इनमें आठ किराये के मकान में और अन्य जैसे-तैसे संचालित हो रहे हैं. ऐसी स्थिति में पशुपालकों तक चिकित्सकीय सेवा कैसे पहुंचेगी. इसका अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है. विभाग के अनुसार तरवारा, चैनपुर, टारी, जीरादेई, नौतन, छितौली में अस्पताल निर्माण के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. कई जगहों पर जमीन के अभाव के कारण भी निर्माण नहीं होने की बात सामने आयी है.
इस साल नहीं हुई दवा की खरीदारी : पशु अस्पतालों में 18 प्रकार की दवाएं उपलब्ध करायी जानी हैं. परंतु इस साल एक भी रुपये की दवा विभाग द्वारा नहीं खरीदी गयी है, जिस कारण अस्पतालों में दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. इससे किसान ऊंची कीमत पर बाहर से दवा खरीदने को विवश हैं. साथ ही चिकित्सकों की कमी के कारण समय से इलाज नहीं हो पा रहा है, जिससे पशुपालकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. इलाज के अभाव में पशु मर रहे हैं. दवा की खरीदारी नहीं करने के संबंध में डीएचओ ने बताया कि विभागीय स्तर से दवा की खरीदारी की जानी थी. टेंडर एप्रूव नहीं होने के कारण दवा की खरीदारी नहीं हो सकी. जिस कारण दवा उपलब्ध नहीं करायी जा सकी है. अब विभाग द्वारा लोकल स्तर पर दवा की खरीद करने का आदेश दिया गया है. दवा खरीदने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. शीघ्र ही अस्पतालों में दवाएं उपलब्ध करा दी जायेंगी.
प्रजनन सहायक के पद हैं रिक्त : दुधारू पशुओं के नस्ल में सुधार के लिए विभाग द्वारा विभिन्न जगहों पर कृत्रिम गर्भाधान केंद्र की व्यवस्था की गयी है. साथ ही सभी अस्पतालों में इसकी व्यवस्था की जानी है. परंतु प्रजनन सहायक के पद रिक्त हैं. विभाग द्वारा काफी कम दर पर पशुपालकों को सीमेन उपलब्ध कराया जाना है. लेकिन पशुपालक इसके अभाव में ज्यादा खर्च करने को विवश हैं. ऐसे में नस्ल सुधार को कितनी गति दी जा सकेगी, सहज ही समझा जा सकता है.
क्या कहते हैं अधिकारी
चिकित्सकों व कर्मियों की कमी मुख्य बाधा है. अगर, विभाग द्वारा संसाधन उपलब्ध कराया जाये, तो हम अपना कार्य बेहतर ढंग से कर सकेंगे. फिर भी उपलब्ध संसाधनों से बेहतर सेवा देने का प्रयास किया जा रहा है. अस्पतालों में दवाएं भी शीघ्र उपलब्ध होगी.
डॉ धीरेंद्र कुमार सिंह
जिला पशुपालन पदाधिकारी, सीवान

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