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शाम होते ही अनुसूचित जाति टोला ढिबरी से होता है जगमग

शाम होते ही अनुसूचित जाति टोला ढिबरी से होता है जगमग बिजली मीटर तो दे दिया है पर पोल तार का पता ही नहींस्कूल स्थापना को ले जमीन बने रोड़ासोलर लाइट की भी हालतखस्तानारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं गांववासी फोटो. एसई-1 ग्रामीण. एसई-2 पगदंडी. एसई-3से7 गांव के लोग का सिंगल फोटो. एसई- खराब पड़ा […]

शाम होते ही अनुसूचित जाति टोला ढिबरी से होता है जगमग बिजली मीटर तो दे दिया है पर पोल तार का पता ही नहींस्कूल स्थापना को ले जमीन बने रोड़ासोलर लाइट की भी हालतखस्तानारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं गांववासी फोटो. एसई-1 ग्रामीण. एसई-2 पगदंडी. एसई-3से7 गांव के लोग का सिंगल फोटो. एसई- खराब पड़ा सोलर लैंपशिवहर/पिपराही. जिले के परसौनी वैज पंचायत स्थित देकुली धर्मपुर टोले सोहरइआ अनुसूचित जाति टोला के लोगों की जिंदगी पगडंडी के सहारे रेंगती है. आजादी के दशकों बाद भी गांव को नसीब नहीं हुआ है. पंचायती राज गठन के बाद भी गांव में गांधी जी के ग्राम्य स्वराज का सपना सकार होता नहीं दिख रहा है. देकुली धाम से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव में पगडंडी के सहारे रास्ता तय कर जब प्रभात खबर की टीम इस गांव में पहुंची तो पता चला कि गांव में दुल्हा साइकिल पर सवार होकर कन्या के दरवाजे तक पहुंचता है. मरीज को चारपाइ के सहारे शिवहर-सीतामढ़ी एनएच 104 पथ तक पहुंचाकर अस्पताल ले जाया जाता है. दुल्हन अपने माइके या ससुराल पगडंडी के सहारे पैदल ही जाती हैं. करीब तीन सौ की आबादी वाले गांव की सुधि लेने के लिए किसी ने जहमत तक नहीं उठाई है. जनप्रतिनिधि के उपेक्षा व प्रशासनिक अनदेखी से लोग फटेहाल जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं. इससे सुशासन की पोल खुलती हुई नजर आ रही है. गांव में प्रवेश करते ही दयनीय स्थिति की कहानी बयां होने लगती है.ग्रामीण जिया लाल पासवान, गणेश पासवान ने बताया कि उनके पूर्वज मोहरी से यहां आकर बसे हैं. उन्हें बसने के लिए देकुली महंथ, लक्ष्मी भारती व रामजन्म भारती ने जमीन दिया था. बाद में सरकार द्वारा दो डिसमील का परचा दिया गया. जिसपर वे बसे हुये हैं. कहा कि गांव से बाहर निकलने के लिए सड़क नहीं हैं. लोग पगडंडी के सहारे आवागमन करते हैं. उन्होंने कहा कि नेता चुनाव के समय में नेता लोग आकर वादों की झड़ी लगा देते हैं लेकिन उसके बाद गांव में आना शायद मुनासिब नहीं समझते हैं. बाढ़ के दिनों में गांव का रास्ता बंद हो जाता है. पानी के कारण यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है. सुअर व गीदड़ के डर से मासूम नहीं जाते स्कूलग्रामीण चंद्र कला देवी, नीरा देवी, ममता देवी, रीता देवी, शैल देवी ने बताया कि गांव के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देने के लिए कुछ दिनों पूर्व एक प्राथमिक विद्यालय स्थापित किया गया. लेकिन जमीन उपलब्ध नहीं होने के चलते शिक्षक विद्यालय देकुली गांव में चलाते हैं. कुछ दिनों तक गांव में ही पढ़ाई की खानापूर्ति की गयी. बाद यहां से स्कूल हटा लिया गया. यहां से देकुली तक करीब दो किलोमीटर में अधिकतर गन्ने की खेती की गयी है. जिसके आसपास सुअर व गीदड़ अक्सर दिख जाते हैं. इस डर से जहां 5 -6 वर्ष के छोटे-छोटे बच्चे विद्यालय पगडंडी व खेत से होकर विद्यालय जाने में कतराते हैं. वही दूरी के कारण भी बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. पठन-पाठन महज कागजी खानापूर्ति तक सिमट कर रह गयी है. इस गांव का विद्यालय अन्यत्र संचालित है. ढिबरी युग में जिने को बेबस हैं ग्रामीणग्रामीण उपेंद्र पासवान, सुरेंद्र पासवान, विरेंद्र पासवान, नागेंद्र पासवान,सुरेश पासवान व भाग्यनारायण पासवान ने बताया कि गांव में बिजली की सुविधा नहीं हैं. इस कारण शाम होते ही झोपड़िया अंधेरे में डूबी रहती हैं. किरोसिन तेल की किल्लत व खद्यान्न के अनियमितता की भी समस्या बनी रहती है. गांव में एक सोलर लाइट बहुत पहले लगाया गया था. जो खराब पड़ा है. आजादी के दशकों बाद भी लोग ढिबरी युग में जीने को लाचार हैं. बिजली विभाग से करीब तीन वर्ष पूर्व मीटर दिया गया. बीपीएल के तहत बिजली जलनी थी लेकिन आज तक तार पोल नहीं गाड़ा गया है. मुखिया पर राशि गबन का आरोप गंगा व यमुना स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने बताया कि बकरी सेड निर्माण के नाम पर राशि बैंक से निकासी कर 3000 रुपये मुखिया को दे दिया. लेकिन आज तक नहीं तो बकरी सेड मिला. वही राशि भी वापस नहीं की गयी.कहते हैं मुखियास्थानीय मुखिया जीतेंद्र कुमार उर्फ अनिल बैठा ने राशि लेने के अारोप को खारिज करते हुए कहा कि सड़क के लिए सर्वे का काम पूरा कर सीओ कार्यालय से भू अर्जन विभाग तक पहुंच गया है. आगे की प्रक्रिया जारी है. कहा कि मरम्मती मद में पैसा नहीं रहने के कारण सोलर का काम नहीं कराया जा सका है. उन्होंने कहा कि शीघ्र ही गांव को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे.

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