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अब एड्स रोगियों की संख्या चार हजार पार

अब एड्स रोगियों की संख्या चार हजार पार बढ़ रहे एड्स के मरीज, चिंता का विषय जागरूकता अभियान का कोई लाभ नहीं शिवहर जिला में है करीब 250 मरीज 15 वर्ष के नीचे के 200 बच्चे प्रभावित सीतामढ़ी. जिला में एड्स रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ताजा आंकड़ा कम चौंकाने वाला नहीं […]

अब एड्स रोगियों की संख्या चार हजार पार बढ़ रहे एड्स के मरीज, चिंता का विषय जागरूकता अभियान का कोई लाभ नहीं शिवहर जिला में है करीब 250 मरीज 15 वर्ष के नीचे के 200 बच्चे प्रभावित सीतामढ़ी. जिला में एड्स रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. ताजा आंकड़ा कम चौंकाने वाला नहीं है. यह आंकड़ा हर वर्ग के लिए चिंता का विषय है. रोगियों की बढ़ती संख्या से यह कहने में दो मत नहीं कि इसके रोकथाम के लिए अब तक जो भी अभियान चलाये गये हैं, वह विफल रहा है. लोगों में एड्स रोग के प्रति कोई जागरूकता नहीं आयी है. संभवत: यही कारण है कि जिला में अब एड्स के मरीजों की संख्या चार हजार से अधिक हो गयी है. शिवहर जिला में करीब 250 मरीज हैं, जिनका इलाज सीतामढ़ी में होता है. वर्ष 12 में थे 500 मरीज एड्स रोगियों के इलाज के लिए जिला में एआरटी सेंटर खुला हुआ है. 500 मरीज होने पर ही किसी जिला में यह सेंटर खुलता है. एक दिसंबर 12 को यहां सेंटर खुला था. उस दौरान एड्स के 500 से अधिक मरीज थे. वर्ष 13 में 1400 से अधिक मरीज हो गये. जागरुकता अभियान से लगा था कि अब मरीजों की संख्या में कमी आयेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वर्ष 14 में एक हजार से अधिक और नये मरीज जुड़ गये. सूत्रों पर यकीन करें तो चालू वर्ष में अब तक 500 से अधिक नये मरीज सामने आये हैं, जिनका इलाज एआरटी सेंटर के माध्यम से चल रहा है. मुुजफ्फरपुर में हजार मरीज बताया गया है कि सीतामढ़ी के एक हजार मरीजों का इलाज मुजफ्फरपुर एआरटी सेंटर में चल रहा है. वहां के मरीज विभिन्न कारणों से यहां नहीं आना चाहते. वहीं बहुत से मरीज वहां से अपना नाम स्थानांतरित करा कर सीतामढ़ी एआरटी सेंटर लाये हैं और चिकित्सा लाभ ले रहे हैं. 200 एड्स मरीज जिले के बाहर रह रहे हैं. कमाने के साथ ही वहीं एआरटी सेंटर से इलाज करा रहे हैं. महिला मरीज करीब 1200 बताया गया है कि पति को एड्स होने पर उसकी पत्नी को भी यह बीमारी हो जाती है. इसी कारण फिलहाल महिला मरीजों की संख्या बढ़ कर करीब 1200 हो गयी है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 0 से 15 वर्ष तक के 200 से अधिक बच्चे इस बीमारी से ग्रसित हैं और उनका भी इलाज चल रहा है. नवजात के बचाव की दवा सूत्रों के मुताबिक यदि मां को एड्स है तो उसके पेट में पल रहे नवजात को भी एड्स हो जायेगा. कल तक जन्म के बाद नवजात को दवा दी जाती थी और वह इस रोग से बच जाता था. अब डिलेवरी के दो घंटे पूर्व दवा दी जाती है. जानकारों ने बताया कि अगर किसी महिला को एड्स है और वह गर्भ धारण करती है तो उसी माह से अगर दवा लेनी शुरू कर दे तो नवजात को यह बीमारी होने का काफी कम चांस होता है और नवजात सुरक्षित रहता है. ऐसी मां जन्म देने के बाद बच्चा को अपनी दूध पिला सकती है. शहर भी इस रोग से ग्रसित यह जान कर ताज्जुब होगा कि शहर का एक खास क्षेत्र भी एड्स की बीमारी से ग्रसित है. उक्त क्षेत्र में मरीजों की संख्या में काफी तेजी से इजाफा हो रहा है. वर्तमान में वहां के करीब 200 मरीज हैं. एक और खास क्षेत्र में इस तरह के मरीजों की संख्या बढ़ कर दर्जन भर हो गयी है. इसी कारण उक्त क्षेत्र से कई परिवार बाहर पलायन कर गये हैं. सीमा क्षेत्र के अधिक मरीज बॉर्डर इलाके के प्रखंडों के अधिक मरीज हैं. इसके पीछे एक ही कारण बताया गया कि बेरोजगारी व आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण बॉर्डर इलाके के अधिक लोग बाहर कमाते हैं और दो-चार वर्षों पर घर आते तो हैं, लेकिन उक्त बीमारी से ग्रसित होकर. बॉर्डर के प्रखंडों के बाद सबसे अधिक रून्नीसैदपुर प्रखंड के मरीज हैं. मरीजों में अधिकांश मजदूर तबके के लोग हैं. कैसे होता है यह रोग जानकारों का कहना है कि असुरक्षित यौन संबंध से यह रोग होता है. बिना जांच कराये ब्लड चढ़ाने से भी सुरक्षित लोग एड्स की चपेट में आ जाते हैं. एक सिरिंज से दूसरे व्यक्ति को सूइ देने व एक ब्लेड से पीड़ित का दाढ़ी बनाने के बाद किसी स्वस्थ व्यक्ति का दाढ़ी बनाने पर कटने से इस रोग का संक्रमण होता है. बताया गया है कि खास कर नशेड़ियों में अब भी यह चलन है कि एक ही सिरिंज से सभी दोस्त नशा का सूइ लेते हैं. ऐसे युवकों में उक्त बीमारी फैलने की संभावना अधिक रहती है. क्या कहते हैं नोडल अधिकारी एआरटी सेंटर के नोडल अधिकारी डाॅ सीबी प्रसाद कहते हैं कि बचाव ही एड्स का सबसे बड़ा इलाज है. असुरक्षित यौन संबंध से ही सबसे अधिक लोग इसके शिकार होते हैं. उनके सेंटर में ऐसे मरीजों का नि:शुल्क इलाज किया जाता है. लोगों को जागरूक होने की जरूरत है.

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