सीतामढ़ी : आम जनता को पीएचसी व सदर अस्पताल में समुचित चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पा रही है. चिकित्सक व दवा के साथ हीं अन्य संसाधनों का घोर अभाव बना हुआ है.
यह कहने में कोई दो मत नहीं कि जिले में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह पटरी से उतर गयी है. यह जान कर हैरानी होगी कि सभी पीएचसी व सदर अस्पताल के अलावा अन्य विभागों में चिकित्सक के कुल 150 पद स्वीकृत है,
जिसमें से मात्र 38 चिकित्सक हैं और शेष पद खाली है. इन पदों पर कब तक चिकित्सक की बहाली होगी, यह बताने को कोई तैयार नहीं है. — सदर अस्पताल का बूरा हाल सदर अस्पताल में चिकित्सक का 15 पद है. छह चिकित्सक हैं तो नौ पद खाली है. यहां मात्र एक सर्जन हैं.
हड्डी रोग के चिकित्सक का पद विगत कई माह से खाली है. हड्डी रोग से संबंधित मरीजों को सदर अस्पताल से खाली लौटना पड़ता है. इन मरीजों को निजी चिकित्सक के यहां इलाज कराना मजबूरी है. –
– जिला में आंख के एक चिकित्सक जिले की आबादी करीब 25 लाख होगी. राज्य सरकार के स्तर से लाखों के आबादी के बीच मात्र एक नेत्र रोग चिकित्सक की तैनाती की गयी है. वह भी सदर अस्पताल में नहीं,
बल्कि रेफरल अस्पताल, मेजरगंज में. नेत्र चिकित्सक डॉ केपी देव भी चार दिन हीं सदर अस्पताल में समय दे पाते हैं. गुरुवार को उन्हें विकलांग बोर्ड में रहना पड़ता है तो सोमवार को रेफरल अस्पताल में ड्यूटी करनी पड़ती है. मंगल, बुध,शुक्र व शनिवार को सदर में मरीजों को देखते हैं. वे ऑपरेशन नहीं करते हैं. ऐसे मरीज यहां से निराश होकर निजी चिकित्सक के यहां जाते हैं.
इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब सदर अस्पताल का यह हाल है तो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित पीएचसी में कैसी चिकित्सा व्यवस्था होगी. — दवा की रहती है हमेशा किल्लत पीएचसी तो दूर तमाम विभागीय पदाधिकारियों की आंखों के सामने रहने वाले सदर अस्पताल में भी बराबर दवा की कमी रहती है. मामूली बीमारियों की भी दवा नदारद रहती है.
सर्पदंश व कुत्ता काटने के बाद दी जाने वाली वैक्सीन के लिए बराबर हाहाकार मचा रहता है. स्थानीय स्तर पर दवा की खरीद की जाती है, लेकिन मात्रा कम होने के कारण कम दिन में हीं समाप्त हो जाती है. कई पीएचसी में सर्पदंश व कुत्ता काटने के साथ हीं छोटी-छोटी बीमारियों यानी सर्दी-खांसी की भी दवा नहीं है.
— बिना चिकित्सक का रीगा पीएचसी रीगा में तो चिकित्सा व्यवस्था मजाक बन गयी है. भले हीं इसके लिए दोषी चाहे राज्य सरकार हो अथवा विभाग, पर यह सच है कि दोनों को गरीब जनता के स्वास्थ्य की कोई चिंता नहीं है. शायद यही कारण है कि विगत कई महीनों से उक्त पीएचसी को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है.
न तो किसी जख्मी की चिकित्सा होती है और न हीं कोई अन्य सुविधा मिल पा रही है. — पांच में एक-एक चिकित्सक जिले के पांच ऐसे पीएचसी हैं, जहां मात्र एक-एक नियमित चिकित्सक हैं. इसमें क्रमश: डुमरा, चोरौत, बेलसंड, बोखड़ा व सुप्पी पीएचसी शामिल हैं. बोखड़ा, चोरौत, सुप्पी, परसौनी व रेफरल अस्पताल मेजरगंज में चिकित्सक का चार-चार पद स्वीकृत है. परसौनी में दो तो अन्य पीएचसी में एक-एक चिकित्सक हैं. —
यहां तीन-तीन पद स्वीकृत मेजरगंज, रीगा, बैरगनिया, बेलसंड, डुमरा, रून्नीसैदपुर, नानपुर, पुपरी, सोनबरसा, बथनाहा, बाजपट्टी व परिहार में चिकित्सक का तीन-तीन पद स्वीकृत है. बेलसंड व डुमरा में एक-एक हैं तो अन्य पीएचसी में दो-दो चिकित्सक हैं. — 36 एपीएचसी में एक भी डॉक्टर नहीं ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को समुचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए एक-एक कर जिले में 36 एपीएचसी खोल दिये गये.
प्रत्येक में चिकित्सक के दो-दो पद स्वीकृत किये गये. बदतर व्यवस्था का इससे बड़ा और कौन सा उदाहरण होगा कि 36 में से 36 पद खाली है. बॉक्स में :-संविदा चिकित्सक का हाल सीतामढ़ी : मेजरगंज रेफरल अस्पताल में संविदा चिकित्सक का पद स्वीकृत हीं नहीं है. सभी पीएचसी में ऐसे चिकित्सक का चार-चार पद स्वीकृत है.
मेजरगंज, बथनाहा व बैरगनिया में दो-दो तो बेलसंड, डुमरा, बोखड़ा, चोरौत, पुपरी, सोनबरसा व परिहार में एक-एक एवं रून्नीसैदुपर व नानपुर में तीन-तीन संविदा चिकित्सक हैं. —
यहां एक भी चिकित्सक नहीं रीगा, सुप्पी, परसौनी, सुरसंड व बाजपट्टी पीएचसी में संविदा वाले एक भी चिकित्सक नहीं है. स्वास्थ्य विभाग से मिली एक रिपोर्ट के अनुसार, जिले में संविदा चिकित्सक के 68 पद स्वीकृत है, जिसमें मात्र 19 चिकित्सक हीं है.