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देवताओं को अर्पित होता है नयी फसल का प्रसाद

बोखड़ा : सनातन धर्म में मेस संक्रांति यानी बैसाखी का पर्व मनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. मंगलवार को बैसाखी का पर्व मनाया गया. विशेष कर इस दिन का महत्व ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है. बैसाखी में विशेष कर किसान नया उपजे अनाज को पवित्र बरतन में पकाते हैं और […]

बोखड़ा : सनातन धर्म में मेस संक्रांति यानी बैसाखी का पर्व मनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. मंगलवार को बैसाखी का पर्व मनाया गया. विशेष कर इस दिन का महत्व ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है. बैसाखी में विशेष कर किसान नया उपजे अनाज को पवित्र बरतन में पकाते हैं और उस खाना को दूसरे दिन बासी होने पर सबसे पहले देवी-देवताओं को प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं, फिर सपरिवार खाते हैं.
किसानों के लिए शुभ दिन
आचार्य व खड़का गांव निवासी मुनिंद्र ठाकुर कहते हैं कि आज का दिन किसानों के लिए शुभ माना जाता है. ऐसे समय में सभी फसलें घर में चली आती है और किसान नया फसल लगाने की तैयारी में लग जाते हैं. इसी कारण विशेष कर किसान बैसाखी का पर्व मनाते हैं. हर क्षेत्र में अलग-अलग तरीके से यह पर्व मनाया जाता है.
कलश दान करने की प्रथा
आचार्य श्री ठाकुर कहते हैं कि बैसाखी के दिन कलश दान करने की भी प्रथा चली आ रही है. कलश में जल भरा जाता है और उसके साथ चावल, सब्जी, पैसा व कपड़ा पंडितों को दान किया जाता है. इससे पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. बताया कि आज के दिन मिट्टी से खेलने की भी प्रथा है. खुशी से किसान एक-दूसरे पर मिट्टी डाल कर उत्सव के रूप में मनाते हैं.

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