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ऐसा दिखा जैसे मानों श्रोता हंसने की मनीश बन गये हों

सीतामढ़ी : गोयनका कॉलेज के खेल मैदान में आयोजित हास्य कवि सम्मेलन में श्रोताओं के हंसी-ठहाके की गूंज से पूरा वातावरण गूंजता रहा. देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे नामचीन कवियों की हास्य रचनाएं उन्हें गुदगुदाती रही. वहीं व्यग्य वाण चिंतन की धारा को चुभाती रही. देश की राजनीतिक हालात व निरंतर गिर रहे इसके […]

सीतामढ़ी : गोयनका कॉलेज के खेल मैदान में आयोजित हास्य कवि सम्मेलन में श्रोताओं के हंसी-ठहाके की गूंज से पूरा वातावरण गूंजता रहा. देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे नामचीन कवियों की हास्य रचनाएं उन्हें गुदगुदाती रही. वहीं व्यग्य वाण चिंतन की धारा को चुभाती रही. देश की राजनीतिक हालात व निरंतर गिर रहे इसके स्तर पर चोट करती रचनाओं पर ठहाका लगाते रहे.

एक बार जब डा अनिल चौबे व दिनेश बावरा को मंच मिला तो ऐसा लगा जैसे श्रोता हंसने की मशीन बन कर रह गये हों. देर रात तक ठहाकों की बरसात होती रही. कवियों ने अपनी स्थापित रचनाओं से श्रोताओं को बांधे रखा. कवियों की व्यंग्य वाण से कभी श्रोता दीर्घ चिंतनशील दिखे तो कभी देश प्रेम का ज्वार उनके हृदय में हिलोर लेती स्पष्ट नजर आयी.

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