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377 में से 256 नलकूपों से नहीं निकलता पानी

फसलों की सिंचाई में कृत्रिम संसाधनों का उपयोग पड़ रहा महंगा जिले के 70 फीसदी सरकारी नलकूप अनुपयोगी रखरखाव के अभाव में खराब हुए नलकूप किसानों को सिंचाई के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ता है छपरा (सदर) : सरकार रबी फसल के दौरान किसानों को खाद-बीज, कृषि यंत्र आदि की खरीद पर भारी अनुदान […]

फसलों की सिंचाई में कृत्रिम संसाधनों का उपयोग पड़ रहा महंगा

जिले के 70 फीसदी सरकारी नलकूप अनुपयोगी
रखरखाव के अभाव में खराब हुए नलकूप
किसानों को सिंचाई के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ता है
छपरा (सदर) : सरकार रबी फसल के दौरान किसानों को खाद-बीज, कृषि यंत्र आदि की खरीद पर भारी अनुदान दे रही है. इस मद में प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च हो रहे है. परंतु, सरकारी स्तर पर फसल के बेहतर उत्पादन के लिए सिंचाई की व्यवस्था नगण्य होने या पूर्व से उपलब्ध संसाधनों के अनुपयोगी होने के कारण किसानों को पूरी तरह अपने संसाधनों पर भारी खर्च कर फसल को बेहतर उत्पादन के लिए बचाये रखने की मजबूरी दिख रही है. जिले में सरकार के द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत लगाये गये 70 फीसदी से ज्यादा नलकूप किसी न किसी कारण अनुपयोगी बने हुए है. हर वर्ष रबी फसल के दौरान विभागीय बैठक होती है तथा बंद पड़े नलकूपों को चालू करने की कवायद शुरू होती है. परंतु, फसल का मौसम खत्म हो जाता है पर सिचाई के संसाधन की स्थिति जस की तस रह जाती है.
जिले में 377 सरकारी नलकूप में महज 121 कार्यरत
जिले में लघु सिचाई विभाग के द्वारा विभिन्न योजनाओं के 377
नलकूप लगाये गये है. परंतु, इनमें 256 नलकूप किसी न किसी कारण वश अनुपयोगी हो गये है. ये नलकूप कहीं तकनीकी गड़बड़ी, तो कही विद्युत दोष, तो कहीं पाइप जोड़ने में गड़बड़ी के कारण अनुपयोगी हो गये है.
तो ऐसी स्थिति में विभिन्न गांवों में लगे सरकारी नलकूपों से पानी नहीं निकलने के कारण किसानों को महंगे दर पर निजी पंपिंग सेट के माध्यम से अपने फसल की सिंचाई करनी पड़ती है. वैसे किसान जिनके पास अपना पंपिंग सेट नहीं है उन्हें प्रति घंटा 130 से 150 रुपये भुगतान कर अपने गेहूं, मक्का, आलू आदि के फसल की सिंचाई करने की
मजबूरी है. सरकार के द्वारा रबी फसल तथा खरीफ फसल के दौरान सूखे के मद्देनजर सरकार समय-समय पर डीजल सब्सिडी की घोषणा करती है.
परंतु, विभागीय कागजी खानापूर्ति व अधिकतर विभागीय पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की मिली भगत के कारण वास्तविक किसान इस लाभ से जहां वंचित रह जाते है वहीं वैसे व्यक्ति जिनका कृषि से वास्ता नहीं है वे डिजल सब्सिडी का लाभ लेने में सफल हो जाते है. बता दे कि सरकार की ओर से रबी फसल के दौरान किसानों को खाद-बीज, कृषि यंत्र आदि की खरीद पर भारी अनुदान दिया जाता है. इस मद में प्रति वर्ष करोड़ों रुपये खर्च हो रहे है.
ये है नलकूपों का हाल
कुल नलकूप377
कुल चालू121
पुराने नलकूप207
चालू 43
नावार्ड फेज-3 के कुल 9
चालू2
नावार्ड फेज-8 कुल नलकूप46
चालू 26
नवार्ड फेज-11 कुल नलकूप115
चालू 50
क्या कहते हैं किसान
विभागीय स्तर पर चलायी जा रही योजनाओं का लाभ समय पर किसानों को नहीं मिल पाता है. विगत रबी और खरीफ फसलों पर मिलनी वाली डीजल अनुदान की राशि अबतक बैंकों की शोभा बढा रही है.
रामअयोध्या ओझा, बसतपुर
कन्हौली संग्राम स्थित नहर में विगत एक दशक से पानी नहीं छोड़े जाने से किसानों को नहर का लाभ नहीं मिल पा रहा है. हालांकि एक वर्ष पूर्व नहर की सफाई हुई मगर गत खरीफ और इस बार रबी मौसम में भी पानी नहीं आने से किसान मायूस है.
विपीन कुमार सिंह, किसान
नलकूप योजना का लाभ नहीं मिल पाने से पटवन के दौरान काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. वहीं पंपिंग सेट से सिंचाई करने में काफी खर्च होता है.
बाबूलाल राय, कन्हौली
सरकारी स्तर पर सिंचाई के साधन उपलब्ध तो है परंतु, अधिकतर खराब है. ऐसी स्थिति में निजी संसाधनों से फसलों की सिंचाई करना काफी महंगा साबित हो रहा है. इस बार 140-150 रुपये प्रति घंटे पटवन किया जा रहा है. जिससे गत वर्ष की तुलना में प्रति घंटे 40-50 रुपये अधिक खर्च करना पड़ रहा है.
मदन सिंह, कन्हौली संग्राम
जिले में तकनीकी खराबी, विद्युत कनेक्शन की गड़बड़ी तथा अन्य कारणों से ज्यादातर नलकूप अनुपयोगी हो गये है. जिसकी सूचना राज्य मुख्यालय को भेज दी गयी है. राज्य मुख्यालय के निर्देश के आलोक में इन बंद पड़े नलकूपों को ठिक कर किसानों को बेहतर सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है.
राजेंद्र कुमार, कार्यपालक अभियंता, लघु सिचाई प्रमंडल, सारण

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