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नोट नहीं िमलने से उधार लेकर कर रहे गुजारा

छपरा : नोटबंदी से परेशान आम इंसान को हर तरफ मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. रुपयों की चाहत तो नहीं पर रुपयों की जरूरत के लिए हर कोई लाइन में खड़ा है. रोजमर्रा के सामान खरीदने में भी लोगों को दिक्कत आ रही है. हर दिन की शुरुआत जरूरत से ही होती है […]

छपरा : नोटबंदी से परेशान आम इंसान को हर तरफ मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. रुपयों की चाहत तो नहीं पर रुपयों की जरूरत के लिए हर कोई लाइन में खड़ा है. रोजमर्रा के सामान खरीदने में भी लोगों को दिक्कत आ रही है. हर दिन की शुरुआत जरूरत से ही होती है पर रुपयों का अभाव ऐसा की इन जरूरत को पूरा कौन करेगा यही चिंता लिए रोज लोग जैसे-तैसे रुपयों के जुगाड़ में लग जा रहे हैं.

इन सब के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो तमाम मुश्किलों के बीच लोगों को हर संभव मदद करने की कोशिश में लगे हैं. छपरा में ऐसे हजारों लोग हैं जिनका किसी न किसी किराना दुकान पर उधार खाता चलता है. लोग इन दुकानों से जरूरत के सामान लाते हैं और महीने में मिलने वाली तनख्वाह से एक मुश्त हिसाब चुकता करते हैं. नोटबंदी के इस दौर में ये दुकानदार खुद तो संकट में हैं पर इस मुश्किल समय में भी अपने ग्राहकों की जरूरत पूरी कर पूरी ईमानदारी के साथ अपना व्यवसाय धर्म निभा रहे हैं. छपरा के नई बाजार में रहने वाली मुन्नी देवी के पति गुजरात के एक फैक्टरी में काम करते हैं.
उनके पति ने महीने के खर्च का पैसा बैंक खाते में जमा करा दिया है पर लंबी कतारों के कारण मुन्नी देवी अभी तक बैंक से पैसे निकाल नहीं सकी हैं. किराना दुकानदार को पैसे देने की तारीख भी निकल गयी है पर मुन्नी देवी की समस्या को समझते हुए दूकानदार उन्हें अभी भी सामान देने में कोई संकोच नहीं कर रहा है. शहर के दहियांवा में रहने वाली नीलम कुमारी सरकारी शिक्षिका हैं. हर महीने स्थानीय दुकानदार से सामान लेती है और पेमेंट मिलने पर एक मुश्त चुका देती हैं. बैंक से अब तक रुपया नहीं निकल सका है और दूकानदार का उधार बढ़ता ही जा रहा है.
नीलम कुमारी बताती हैं कि नोटबंदी के बाद जब दुकान पर सामान लेने गई तो थोड़ा असहज महसूस कर रही थी पर मेरे मन के भाव को दुकानदार पहले ही समझ गये और उन्होंने कहा कि जब मिल जायेगा तब दे दीजियेगा अभी ले जाइये. दहियांवा महमूद चौक के किराना दुकानदार विनोद कुमार कहते हैं कि कुछ दिन की समस्या है
ऐसे में नीयत में कोई बदलाव नहीं आना चाहिए. संकट की घड़ी में अपने स्थायी ग्राहकों के साथ खड़े रहने में व्यवसाय का असली सुकून मिलता है. रुपयों की किल्लत तो चंद दिनों में खत्म हो जायेगी पर ऐसे समय में ग्राहकों का विश्वास चला गया तो दुबारा नहीं आ पायेगा.

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