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नहीं मिल रहा त्वरित व सस्ता न्याय

लापरवाही. 95 फीसदी ग्राम कचहरियों में नहीं हो रहीं नियमित बैठकें छपरा (सदर) : बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 के लागू होने के बाद से अबतक तीन बार ग्राम कचहरियों का गठन हुआ. इसके लिए सरपंच और पंच के चुनाव हुए. ग्राम कचहरी के बेहतर संचालन के लिए सचिव तथा न्यायमित्रों की बहाली भी की […]

लापरवाही. 95 फीसदी ग्राम कचहरियों में नहीं हो रहीं नियमित बैठकें

छपरा (सदर) : बिहार पंचायत राज अधिनियम 2006 के लागू होने के बाद से अबतक तीन बार ग्राम कचहरियों का गठन हुआ. इसके लिए सरपंच और पंच के चुनाव हुए. ग्राम कचहरी के बेहतर संचालन के लिए सचिव तथा न्यायमित्रों की बहाली भी की गई. इसके बाद भी लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. 95 फीसदी पंचायतों में निर्वाचित ग्राम कचहरी के प्रतिनिधियों की रूचि त्वरित न्याय देने में नहीं होने, अधिकतर सदस्यों को अपने अधिकार एवं कर्तव्यों की जानकारी का अभाव, पंचायत सचिव एवं न्यायमित्र के पद पर अस्थायी तौर पर नियोजन के कारण ग्राम कचहरियां अनुपयोगी साबित हो रही हैं.
95 फीसदी पंचायतों में प्रतिवर्ष औसतन एक मुकदमा का भी निष्पादन नहीं : ग्राम कचहरियों की भूमिका पंचायतों में न्यायपालिका की होती है, लेकिन 95 फीसदी सरपंचों ने अपनी भूमिका को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया. न तो ग्राम कचहरी के न्यायपीठों की बैठकें नियमित रूप से नहीं होती हैं न न्यायमित्रों एवं ग्राम कचहरी के सचिवों का नियोजन ही स्थायी रूप से किया गया. इस वजह से ये लोग अपने कार्यों एवं दायित्वों का पालन प्रभावी ढंग से नहीं कर पाते हैं. इसका सीधा असर न्यायपालिका के रूप में गठित ग्राम कचहरी के कार्यों पर पड़ता है.
नियमानुसार ग्राम कचहिरयों को प्रतिमाह अपने न्यायालय में निष्पादित मामलों का ब्योरा देना है, लेकिन बार-बार जिला पंचायत राज कार्यालय से पत्राचार के बावजूद 95 फीसदी पंचायतों ने विगत दस वर्षों में एक बार भी रिपोर्ट नहीं दी कि उनके यहां कितने मुकदमें निष्पादित हुए, जबकि प्रत्येक ग्राम कचहरी में प्रति वर्ष मानदेय, किराया, फर्निचर, भत्ता आदि मद में लाखों रुपये खर्च होते हैं.
प्रशिक्षण का अभाव, न्यायमित्र, ग्राम कचहरी सचिव की अस्थायी नियुक्ति व लेखा का संधारण नहीं होना मुख्य वजह
323 पंचायतों के लिए पांच वर्ष पूर्व 55 पंचायत सरकार भवनों की जगह महज 11 पंचायत भवन ही तैयार
आय-व्यय का नहीं रखा जा रहा लेखा-जोखा
ग्राम कचहरी के निर्वाचित प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित लेने, प्रभावी नियंत्रण नहीं होने, प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारियों द्वारा कभी भी ग्राम पंचायतों का प्रभावी ढंग से निरीक्षण-रोकड़पंजी की जांच नहीं करने के कारण भी ग्राम कचहरियां निष्प्रभावी हो गयी हैं. नियमानुसार ग्राम कचहरियों का आय-व्यय का लेखा-जोखा संधारित होना चाहिये. इसके अलावे ग्राम कचहरी में दाखिल कोर्ट फीस की राशि राज्य कोष में जमा करनी है, लेकिन जानकारी के अभाव में आय-व्यय के लेखा-जोखा का संधारण नहीं होता है.
ग्राम कचहरी के सचिवों एवं न्यायमित्रों की सेवा 60 वर्ष की जानी चाहिए, तभी अभिलेखों, पंजियों, पत्राचार आदि के कार्यों का बेहतर ढंग से निष्पादन हो पायेगा. इसके अलावे सरपंच, पंच को दीवानी-फौजदारी मामलों से संबंधित विवादों के निष्पादन के लिए व्यवहार न्यायलय के कानूनी एवं व्यवहारिक जानकारी का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.
अशोक कुमार सिंह, कर्मचारी नेता, छपरा
ग्राम कचहरी का हर दो माह पर प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारी द्वारा निरीक्षण करने के अलावे वर्ष 2006 से अब तक कैश संबंधित लेखा-जोखा का अंकेक्षण तथा अच्छा एवं प्रभावी कार्य करने वाले ग्राम कचहरियों को पारितोषित भी दिया जाना चाहिए.
मनोज कुमार सिंह, अवकाश प्राप्त कर्मी, छपरा
सरपंचों एवं पंचों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का निर्धारण, सप्ताह में कम से कम दो दिन न्याय पीठ की बैठक तथा दाखिल-खारिज, अतिक्रमण आदि मामलों के निष्पादन की शक्तियां सरपंचों को देना चाहिए.
मनोज कुमार पांडेय, अधिवक्ता, छपरा
बार-बार पत्राचार के बावजूद 95% ग्राम कचहरियों द्वारा न तो अपने यहां निष्पादित मुकदमों की रिपोर्ट देती है और न खर्च का उपयोगिता प्रमाण पत्र, इसके कारण समय-समय पर सरकार की ओर से विभागीय पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों पर कार्रवाई की बात कही जाती है लेकिन अनुपालन तो इन्हें ही करना है.
संतोष कुमार, जिला पंचायती राज पदाधिकारी, सारण

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