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शांति निकेतन व नेतरहाट जैसी पहचान थी
बदहाल. अपने अस्तित्व को बचाने में है स्वर्णिम अतीत वाला िवद्यालय परेशान हाल एनएसजी उच्च विद्यलाय रामपुर अटौली का ग्रामीण परिवेश में अवस्थित गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास के कारण सारण प्रमंडल के शांतिनिकेतन व नेतरहाट के रूप में पहचान बनाने वाला एसएनजी उच्च विद्यालय रामपुर अटौली अब अपने स्वर्णिम अतीत को […]
बदहाल. अपने अस्तित्व को बचाने में है स्वर्णिम अतीत वाला िवद्यालय परेशान
हाल एनएसजी उच्च विद्यलाय रामपुर अटौली का
ग्रामीण परिवेश में अवस्थित गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा एवं बच्चों के सर्वांगीण विकास के कारण सारण प्रमंडल के शांतिनिकेतन व नेतरहाट के रूप में पहचान बनाने वाला एसएनजी उच्च विद्यालय रामपुर अटौली अब अपने स्वर्णिम अतीत को ढंकने की कोशिश कर लज्जापूर्ण वर्तमान में अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है.
राजीव रंजन
छपरा : 1929 में ग्रामीण गया सिंह के द्वारा स्थापित विद्यालय 50 के दशक से लेकर 90 के दशक तक सैकड़ों प्रतिभावान विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए पूरे प्रमंडल में चर्चित था. परंतु, लचर सरकारी व्यवस्था ने विद्यालय के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है. महान शिक्षाविद व अंगरेजी व्याकरण की कई किताबों के लेखक सकल सिन्हा की देख रेख में 10 बीघा जमीन में अवस्थित इस विद्यालय के छह छात्रावासों में जिले या बाहर के लगभग 100 लड़के रह कर अध्ययन करते थे.
ये छात्रावास शांति निकेतन, शारदा सदन, मुनी आश्रम, विद्या मंदिर, सेवा सदन, सकल भवन के नाम से लोकप्रिय थे. विद्यालय के पठन-पाठन, गुणवत्ता व व्यवस्था का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण परिवेश में स्थित रामपुर अटौली विद्यालय से मैट्रिक उत्तीर्ण होने के बाद पटना विश्वविद्यालय के कुलपति रहे डॉ गणेश प्रसाद सिंह, पटना यूनिवर्सिटी के प्रो बबुआ लाल ठाकुर, पूर्व केंद्रीय मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा ने विद्यालय के पठन-पाठन की उच्च गुणवत्ता को देखते हुए अपने बेटों को रामपुर अटौली उच्च विद्यालय के छात्रावास में रख कर पढ़ने की व्यवस्था करायी थी.
विधायक द्वारा मामला विधानसभा में उठाने के बाद भी भविष्य को लेकर एक बार फिर चर्चाएं : तरैया विधानसभा क्षेत्र के विधायक मुंद्रिका प्रसाद राय ने सारण के इस गौरवशाली इतिहास वाले विद्यालय की दुर्दशा व इस विद्यालय में प्लस टू की पढ़ाई के लिए भवन व प्रयोगशाला व अन्य उपस्कर के लिए 39 लाख 50 हजार रुपये सरकार से मिलने तथा तत्कालीन विद्यालय प्रशासन की उदासीनता के कारण लौट जाने को लेकर मामला विधानसभा में उठाया था.
जिसपर सारण के डीइओ ने जो रिपोर्ट सरकार को भेजी, उसमें विद्यालय के कमरे को आंशिक क्षति की बात बतायी गयी है. जिसे लेकर विधायक व डीइओ के बीच दूरभाष पर ही गरमा-गरम बहस भी हुई. डीइओ जहां विद्यालय के विकास के लिए प्रयास की बात कहते हैं, वहीं विधायक अपने विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले स्वर्णिम इतिहास वाले इस विद्यालय को मॉडल स्कूल का दर्जा देने के लिए अपने फंड से भी राशि उपलब्ध कराने के लिए संकल्पित दिखते हैं. अब देखना है कि गौरवशाली इतिहास वाले इस विद्यालय का भविष्य कब तक संवरता है.
1960 में ही हाइयर सेकेंड्री की मिली थी मान्यता
1960 में डीपीआइ जगदंबा शरण, जिला स्कूल के तत्कालीन प्रिंसिपल त्रिवेणी सहाय तथा तत्कालीन डीइओ उमा बाबू ने विद्यालय पहुंचने के बाद उस समय विद्यालय में फिजिक्स, कमेस्ट्री, बाइलोजी के लिए अलग-अलग सुसज्जित प्रयोगशाला, तत्कालीन राजेंद्र कॉलेज से भी सुदृढ़ पुस्तकालय व लगभग 12 सौ परीक्षार्थियों की संख्या को देखते हुए तत्काल उन्होंने रामपुर अटौली उच्च विद्यालय में हायर सेकेंड्री की पढाई शुरू करने की मान्यता दे दी.
विद्यालय में कम-से-कम 39 वर्षों तक बेहतर गुणवत्ता के साथ तत्कालीन प्राचार्य स्व सकल सिन्हा के सबसे बड़े सहयोगी माने जाने वाले अवकाश प्राप्त प्राचार्य प्रेमचंद्र बताते हैं कि 1929 में विद्यालय की स्थापना के बाद 1934 में ही सरकार ने इस विद्यालय को सरकारी मान्यता भी दे दी थी.
विद्यालय में छात्र-छात्राओं के पढ़ने, रहने की व्यवस्था के साथ-साथ विशाल खेल के मैदान, योग्य शिक्षकों के समूह के कारण सांस्कृतिक व अन्य गतिविधियों के केंद्र के रूप में चर्चित रहे इसी विद्यालय से बिहार के डीजीपी रहे ध्रुव प्रसाद ओझा, पटना यूनिवर्सिटी के कुलपति गणेश प्रसाद सिंह के अलावा सैकड़ों की संख्या में डॉक्टर, इंजीनियर व अन्य पदाधिकारियों को विभिन्न पदों पर सुशोभित करने वाले विद्यालय की दुर्दशा को देख विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की कौन कहे पूर्ववर्ती छात्र भी हतप्रभ हैं.
अभी जिले के लगभग सभी विद्यालय प्लस टू हो गये परंतु, इस विद्यालय में अब भी भवन के अभाव में प्लस टू की पढाई शुरू नहीं हो पायी. विद्यालय के परीक्षार्थी व कई वर्षों तक विद्यालय के शिक्षक रहे अरुण कुमार बताते हैं कि 95 के बाद लगातार प्रभारी प्राचार्य रहने व सरकारी उदासीनता के कारण विद्यलाय का विकास अवरुद्ध हो गया.
भवन के अभाव में ऑड इभेन फार्मूले पर पढ़ाई की बाध्यता
गौरवशाली अतीत वाले इस विद्यालय में कमरों के अभाव में वर्तमान प्रधानाध्यापक तीन दिन नौवीं कक्षा तो तीन दिन दसवीं कक्षा की कक्षाएं चलाने को विवश होते हैं. अभी इस विद्यालय में लगभग 700 से ज्यादा विद्यार्थी नौवीं एवं दसवीं कक्षा में हैं. परंतु, कमरों के अभाव में बच्चों को बैठने की जगह नहीं है.
तत्कालीन उपमुख्य मंत्री सुशील कुमार मोदी, एमएलसी महाचंद्र प्रसाद सिंह ने वर्ष 2008 में 11 नवंबर को शिक्षा दिवस के अवसर पर विद्यालय के पूर्व प्राचार्य व राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता स्व सकल सिन्हा की प्रतिमा के अनावरण के साथ ही विद्यालय परिसर में एक भवन बनाने के लिए राशि भी स्वीकृत की तथा एमएलसी केदार पांडेय द्वारा द्वारा स्कूल भवन के निर्माण के लिए अपने मद से राशि दी गयी थी, जिससे दो कमरे बने हैं.
खपरैल के सभी कमरे बरबाद होने, पुराने प्रयोगशाला की छत जर्जर होने के कारण छात्र-छात्राएं उनमें बैठ नहीं पाते. ऐसी स्थिति में इन्हीं दो कमरों में बैठ कर बच्चों के पठन-पाठन की खानापूर्ति भी की जाती है.
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