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दर्ज दाखिल-खारिज का आदेश होगा रद्द
फैसला. पोखर की दो एकड़ 23 डिसमिल जमीन बिहार सरकार की भगवान बाजार स्थित श्याम बाबू के पोखरा के नाम से प्रसिद्ध सरकारी तालाब की जमीन बिहार सरकार की है. इस संबंध में डीएम सुनवाई करते हुए फैसला दिया है. तत्कालीन अपर समाहर्ता के नेतृत्व में गठित कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि पोखरा सार्वजनिक […]
फैसला. पोखर की दो एकड़ 23 डिसमिल जमीन बिहार सरकार की
भगवान बाजार स्थित श्याम बाबू के पोखरा के नाम से प्रसिद्ध सरकारी तालाब की जमीन बिहार सरकार की है. इस संबंध में डीएम सुनवाई करते हुए फैसला दिया है. तत्कालीन अपर समाहर्ता के नेतृत्व में गठित कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि पोखरा सार्वजनिक है. कमेटी ने भी पोखरे को बिहार सरकार की संपत्ति बताया था.
छपरा (सदर) : छपरा शहर के भगवान बाजार स्थित श्याम बाबू के पोखरा के नाम से प्रसिद्ध सरकारी तालाब की दो एकड़ 23 डिसमिल जमीन बिहार सरकार की है. भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 4 ए के तहत होल्डिंग नंबर 5820 (पोखरा) जमींदारी प्रथा खत्म होने के साथ ही विलीन हो गयी.
इस कानून के तहत इस जमीन पर बिहार सरकार का अधिकार है. लगभग 18 करोड़ मूल्य की इस जमीन के मामले में दुर्गेश नारायण सिन्हा बनाम बिहार सरकार द्वारा दायर संचिका संख्या 15-243/2015 में सुनवाई करते हुए समाहर्ता सह जिला दंडाधिकारी दीपक आनंद ने यह फैसला दिया है. वहीं, नगर पर्षद, छपरा के कार्यपालक पदाधिकारी को आदेशित किया है कि होल्डिंग नंबर 5820 के संबंध में आवेदक दुर्गेश नारायण सिन्हा के नाम दर्ज दाखिल-खारिज आदेश को रद्द करने की कार्रवाई की जाये.
इसके अलावा जिला अवर निबंधन को भी निर्देशित किया गया है कि होल्डिंग नंबर 5820 के संबंध में कोई दस्तावेज रजिस्ट्री नहीं करें. सदर अनुमंडल पदाधिकारी को भी निर्देशित किया गया है कि संबंधित भूमि पर निर्माण का कार्य नहीं होने दें. डीएम की विधि शाखा द्वारा जारी ज्ञापांक 34, दिनांक 18 फरवरी के बाद संबंधित पदाधिकारी अपने दायित्वों के निर्वहण के लिए सक्रिय हो गये हैं.
जनता दरबार में शिकायत मिलने के बाद डीएम ने अपर समाहर्ता की अध्यक्षता में गठित की थी कमेट : छपरा के एक अधिवक्ता संजय कुमार द्वारा डीएम के जनता दरबार में सात अगस्त, 2014 को आवेदन देकर छपरा शहर के भगवान बाजार थाना अंतर्गत शिवबाजार छपरा मुहल्ला अंतर्गत खेसरा नंबर 5820 में अवस्थित पोखरे को कुछ लोगों द्वारा मिट्टी भरकर हड़पने के प्रयास की शिकायत की गयी थी. इस मामले में तत्कालीन डीसीएलआर, छपरा सदर द्वारा जांच प्रतिवेदन व सरकारी अधिवक्ता से 19 फरवरी, 2015 को मंतव्य मिलने के बाद डीएम ने अपर समाहर्ता की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी.
इसमें वरीय उपसमाहर्ता, राजस्व शाखा छपरा, जिला भू-अर्जन पदाधिकारी छपरा, डीसीएलआर, सदर छपरा तथा छपरा सदर सीओ सदस्य थे. तत्कालीन अपर समाहर्ता के नेतृत्व में गठित कमेटी ने रिपोर्ट दी कि पोखरा सार्वजनिक है. प्रश्नगत भूमि नगरपालिका खतियान में पोखरा के रूप में दर्ज है. इसके भूतपूर्व मालिक महाराज गुरु महादेव आश्रम प्रसाद साही (हथुआ) थे. साथ ही पूछताछ के क्रम में कमेटी को यह भी जानकारी मिली कि प्रत्येक वर्ष इस स्थल पर मेला लगता था. कमेटी ने भी पोखरे को बिहार सरकार की संपत्ति बताया था.
कस्टमरी राइट प्राप्त जमीन की बंदोबस्ती गलत: जीपी
जिला प्रशासन को दिये सलाह में सरकारी वकील अवध किशोर सिंह ने बताया था कि भूतपूर्व मालिक महादेव आश्रम प्रसाद साही (हथुआ) या किसी मध्यवर्ती के द्वारा इस पोखरे को किसी के नाम बंदोबस्त नहीं किया गया है.
कानूनन, वैसी गैरमजरूआ जमीन को जमींदारी विलीन होने के बाद किसी को बंदोबस्त करने का अधिकार नहीं था. इस पर मुहल्लावासियों या ग्रामीणों को कस्टमरी राइट प्राप्त हो गया था. इस नियम के तहत किसी भी प्रकार की बंदोबस्ती गलत व नाजायज है. सरकारी वकील ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि बंदोबस्ती के कागजात एंटीडेटेड, जाली वो फरेबी हैं. भूतपूर्व मालिक मध्यवर्ती रैयत के द्वारा आवेदक के पिता के नाम से रिटर्न दाखिल नहीं किया गया है या उसके आधार पर रजिस्टर दो तैयार नहीं किया गया है और नगरपालिका के एसेस्टमेंट रजिस्टर में उनका नाम दर्ज किया गया है.
यदि बंदोबस्ती सही होती, तो उसी समय से नगरपालिका के एसेस्टमेंट रजिस्टर में आवेदक के पिता का नाम दर्ज किया जाता और नगरपालिका को टैक्स अदा किया गया होता. डीएम ने अपने फैसले में यह भी लिखा है कि वर्ष 2012-13 में नगरपालिका के कर्मचारी व अधिकारी को मिला कर आवेदक ने अपने नाम से रसीद कटवा ली है, जो गलत व गैरकानूनी है. नगरपालिका रसीद के आधार पर कोई व्यक्ति स्वत्व का दावा नहीं कर सकता है.
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