छपरा (सदर) : जिले में हाल के दिनों में मां की ममता लगातार तार-तार होते दिख रहा है. गत एक वर्ष में कम-से-कम चार दर्जन नवजातों को कमाेबेश अपनी माताओं की कारगुजारियों का सामना करना पड़ रहा है. वे सरकारी व्यवस्था के तहत ममता के बीच जीवन जीने को लाचार हैं. ये सभी बच्चे एक वर्ष में विभिन्न स्थानों पर लावारिस रूप से माताओं के द्वारा फेंके जाने के बाद समाज कल्याण विभाग की देख-रेख में पल बढ़ रहे हैं.
वहीं, अपने परिजनों के ही हवस की शिकार बनीं एक किशोरी बालिका ने पहले तो बालिका गृह में रहने के दौरान एक बच्ची को जन्म दिया. परंतु, एक पखवारा पूर्व जन्मी अपनी ही कोख की बच्ची को उसने अपनाने से इनकार कर दिया है. ऐसी स्थिति में बाल कल्याण समिति तथा स्थानीय पदाधिकारियों ने स्थिति को भांप कर उसे शहर स्थित दत्तक ग्रहण केंद्र में भेज दिया है,
जिससे उसकी देखभाल हो सके. ऐसी स्थिति में चाहे-अनचाहे अपने जन्मे बच्चे की ममता के प्रति मां की संवेदनशीलता का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. वहीं, कर्नाटक से 15 दिन पूर्व गर्भावस्था में छपरा बालिका गृह में आयी किशोरी ने भी रविवार की रात एक बच्ची को जन्म दिया. चूंकि डिलीवरी ऑपरेशन से हुआ है, ऐसी स्थिति में बच्ची को स्थानीय पदाधिकारियों व सीडब्ल्यूसी की सहमति देकर दत्तक ग्रहण केंद्र, छपरा को हस्तगत करा दिया गया.
इसे लेकर समाज कल्याण विभाग के पदाधिकारियों, सीडब्ल्यूसी व एनजीओ कर्मियों में चर्चाएं हैं. सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष अरुण सिंह तथा जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक भास्कर प्रियदर्शी इस पूरे मामले को लेकर विभागीय निर्देशों के आलोक में काम कर रहे हैं.
हालांकि, इन बच्चियों में से एक के मां द्वारा एक पखवारा पूर्व एक बच्ची को जन्म देने तथा कर्नाटक से आयी दूसरी बच्ची के गर्भवती होने तथा इस संबंध में पुलिस को दी गयी सूचना के संबंध में प्रभात खबर द्वारा 17 जनवरी के अंत में विस्तृत खबर भी प्रकाशित की गयी थी. अब मां के द्वारा अपनी ही बच्ची को अपनाने को लेकर इनकार करने पर निश्चित तौर पर लोग कहते हैं कि आखिर माताएं कैसे कुमाताएं हो जाती हैं.