* जुमे पर मसजिदों में हुए खास खुतबे
।। नदीम अहमद ।।
छपरा : जुमा को छोटा ईद भी कहा जाता है. रमजान में जुमे की अहमियत वैसे ही बढ़ जाती है. इसे लेकर मुसलमानों ने खासे उत्साह के साथ मसजिदों में नमाज अदा की. छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गो के एहतमाम के साथ मसजिद पहुंचने से माहौल नूरानी हो उठा. वहीं इमाम व मोकर्रिर इजरात ने अपने खुतबों में माह–ए– मुबारक की अहमियत व फजीलत को बयान फरमाया.
दहियांवा स्थित शिया मसजिद के इमाम–ए–जुमा मौलाना सैयद मासूम रजा ने अपनी तकरीर में कहा कि अल्लाह ने अपने बंदों पर रहम फरमाते हुए माह–ए–मुबारक की शक्ल में रमजान दिया है. यह एक हसीन मौका है. जो इस माह में नहीं बख्शा गया, वो कभी नहीं बख्शा जायेगा.
उन्होंने रमजान को गनीमत जान कर इसके बरकत व रहमत व बख्शिश से लाभ उठाने की तरगीब की. उन्होंने कहा कि अल्लाह अपने बंदों से मां,बाप, भाई, बहन व रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करता है. बदले में बंदे को भी उससे मुहब्बत पेश करते हुए उसे खुश करना चाहिए और अल्लाह की खुशी ही इबादत है.
बड़ा तेलपा जामा मसजिद के इमाम मौलाना रज्जबुल कादरी ने अपने खुतबे में रोजे की फजीलत ब्यान करते हुए कहा कि रोजेदार अल्लाह के नजदीक हो जाता है. रोजे से रूहानी व जिस्मानी ताकत मिलती है.
सभी लोगों को सामूहिक तौर पर एक ही प्रकार की दिनचर्या, एक साथ नमाज, इफ्तार, तरावीह आदि की अदायगी से कौम में मुहब्बत व भाइचारगी का माहौल बनता है. रमजान हमें दूसरों के साथ सुलह रहमी की दावत देता है. उन्होंने इफ्तार व सेहरी करने व कराने को मुबारक बताते हुए कहा कि दूसरों को इफ्तार कराने वाला खुद भी सवाब का हकदार व हिस्सेदार बनता है.
* कुरआन फहमी है जरूरी
मर्कजी जामा मसजिद अहले हदीस के इमाम मौलाना अब्दुल कादिर ने रमजान को तरबियत का महीना बताते हुए कहा कि इससे बंदे में सब्र, इबादत करने का हौसला, तकवा, परहेजगारी, बुराईयों से खुद को दूर रखने की तलकीन व नफ्स पर काबू जैसी काबलियत पैदा होती है. उन्होंने इसी माह में कुरआन के नुजूल के हवाले से कहा कि कुरआन अल्लाह की किताब व मुकम्मल हिदायत–ए–जिंदगी है. लिहाजा इसे पढ़ कर समझना जरूरी है ताकि उस पर अमल किया ज सके.
* जकात भी फर्ज है अदा करें
जामा मसजिद में दारूल ओलूम नईमियां के प्रिंसपल व खतीब–ए–बाकमाल मौलाना नेसार अहमद मिसबाही ने अपने तकरीर में कहा कि रमजान सिर्फ इबादत ही नहीं, बल्कि समाज के आर्थिक विषमता को दूर करने की तदबीर भी है. रोजेदार को जब भूख का एहसास होता है, तो वह भूखों की मदद को स्वत: आमादा व तत्पर होता है. उन्होंने बताया कि समाज में आर्थिक विषमता का कारण जकात अदा न करना है. इसी वजह से कोई बेहद गरीब व कोई बहुत अमीर है.
यह भी नमाज रोजा व हज की तरह फर्ज है. यदि सभी इसकी अदायगी करें तो चंद वर्षो में गुरबत नहीं रहेगी. उन्होंने बताया कि जिसके पास 27,500 कैश हो, पत्नी के पास गहने, भाड़े पर चलने वाली गाड़ी या मकान जिससे आय हो, उन सभी आयों पर ढाई प्रतिशत की दर से जकात फर्ज है.
उन्होंने इस वर्ष फितरे की रकम 31 रुपये होने का एलान करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए इसका निकालना लाजिमी है. चाहे वह अमीर हो या गरीब या फिर एक दिन के बच्चे के लिए भी फितरा है.