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दो दशकों में बढ़ गया बाजार का दायरा, पर व्यवस्थाएं नहीं बदलीं

छपरा : बीते दो दशकों में सारण की सियासत सत्ता के केंद्र में रही है. सारण के कई सियासी दिग्गजों ने इन दो दशकों में केंद्र और राज्य के मंत्रालयों तक का सफर तय किया है. इस दौरान सारण में विकास की कई योजनाएं भी आयीं, लेकिन इन सब के शोर में शहर के पुराने […]

छपरा : बीते दो दशकों में सारण की सियासत सत्ता के केंद्र में रही है. सारण के कई सियासी दिग्गजों ने इन दो दशकों में केंद्र और राज्य के मंत्रालयों तक का सफर तय किया है.

इस दौरान सारण में विकास की कई योजनाएं भी आयीं, लेकिन इन सब के शोर में शहर के पुराने और समृद्ध बाजार बेबस होकर रह गये. बीते दो दशकों में बाजारों का दायरा तो बढ़ा, लेकिन इन बाजारों को विकसित करने का सार्थक प्रयास नहीं हो सका. 90 के दशक तक उत्तर बिहार समेत देश के कई राज्यों में अपनी चमक बिखरने वाले छपरा के बाजार अब खत्म होने के कगार पर हैं.
इतिहास बनने के करीब प्रसिद्ध मीठा बाजार : छपरा मीठा (गुड़) बाजार का इतिहास लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना है. पहले यह मीठा बाजार आज की पुरानी गुड़हट्टी में स्थापित था. बाद में बाजार का विस्तार हुआ और मौना चौक में मीठा बाजार के नाम से इसकी ख्याति हुई. 90 के दशक तक यह उत्तर बिहार का सबसे बड़ा मीठा बाजार हुआ करता था. यहां मिलने वाला देशी गुड़ काफी नामी था.
समय के साथ बाजार कई भागों में बंट गया और बड़े शहरों में फैक्टरियों के प्रचलन ने इन मंडियों के कारोबार पर खासा असर डाला. आज यह बाजार पूरी तरह बिखर चुका है. बमुश्किल 30-35 थोक मीठा व्यापारी मंडी में बचे हैं. बाजार में न तो सड़क का निर्माण हो सका और न ही यहां साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है.
छपरा मीठा बाजार में सारण जिले के विभिन्न प्रखंडों के अलावा आरा, हाजीपुर, सोनपुर, मुजफ्फरपुर, पटना तथा यूपी के सुलेमनपुर व बलिया से भी बड़े साहूकार खरीदारी के लिए आते थे. एक जमाने में पटना के प्रसिद्ध व्यापारी महावीर प्रसाद भी छपरा मीठा बाजार से ही खरीदारी करते थे. पटना से छपरा आने के लिए नदी मार्ग का इस्तेमाल होता था.
दर्जनों नावों पर मीठा लादकर पटना की मंडियों में जाता था, जहां से बिहारशरीफ, जहानाबाद और गया तक यहां का गुड़ बिकता था. छपरा की मंडी में सीजन के समय पैर रखने की जगह भी नहीं मिलती थी. 20 वर्ष पूर्व तक मीठा बाजार छपरा के पूरे व्यवसाय में अच्छी-खासी भागीदारी रखता था.
छपरा की मंडी में गोपालगंज से चक्की गुड़ आता था, जो काफी प्रसिद्ध हुआ करता था. इस गुड़ की सोंधी खुशबू बाजार की तरफ से आने जाने वाले लोगों को अपनी और आकर्षित किया करती थी. तब बिना केमिकल के गुड़ का निर्माण हुआ करता था. समय के साथ बड़े शहरों में फैक्टरियों का विस्तार हुआ और चक्की गुड़ का बनना बंद हो गया.
टेरिरुबिया साड़ी के लिए फेमस था कपड़ा बाजार: छपरा कपड़ा मंडी शूटिंग, शर्टिंग के साथ-साथ टेरिरुबिया व बनारसी साड़ी के बिक्री के लिए भी फेमस हुआ करता था. समय के साथ डिजाइनर साड़ियों का प्रचलन बढ़ने लगा और इन साड़ियों की डिमांड कम होती गयी. वहीं रेडीमेड कपड़ों के प्रचलन खासकर जिंस व फैंसी शर्ट ने शूटिंग, शर्टिंग की बिक्री पर भी असर डाला है.
मॉल कल्चर भी हावी होने लगा है और जेनरल कस्टमर ऐसी शॉपिंग मॉल में करना ज्यादा पसंद करने लगे हैं. हालांकि कई पुराने कपड़ा व्यवसायी हैं, जिन्होंने समय के साथ व्यापार के तरीके में बदलाव किया है और दुकानों को शोरूम में परिवर्तित कर शूटिंग, शर्टिंग के साथ-साथ रेडीमेड कपड़ों को बिक्री भी शुरू कर दी है, लेकिन कपड़ा मंडी के समुचित विकास को लेकर आज तक कोई प्रयास नहीं किया गया.
गुदरी और सरकारी बाजार भी विकास में पिछड़े: शहर के सरकारी बाजार और गुदरी बाजार की पहुंच कभी सारण जिले के अलावा सीवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, वैशाली और बलिया तक थी. यहां की मंडियों में बिकने वाले मसाले और अनाज सुदूर देहातों तक जाते थे.
आज भी यह दोनों बाजार सर्वाधिक राजस्व देते हैं, लेकिन इनके विकास को लेकर कोई मजबूत कदम नहीं उठाया. सुविधाओं के अभाव में व्यापारी इन बाजारों में नहीं आते. बुनियादी रूप से यहां कोई खास व्यवस्था नहीं है. शौचालय, यात्री विश्रामालय, यात्री पड़ाव, वाहन स्टैंड, सफाई आदि सुविधा मुहैया नहीं हो सकी है. वहीं अतिक्रमण ने इन बाजारों का दायरा छोटा कर दिया है.
ग्राहकों की पहली पसंद हथुआ मार्केट भी सुविधाविहीन
हथुआ मार्केट छपरा का सबसे प्रसिद्ध मार्केट है. इसकी चर्चा न सिर्फ सारण जिले में होती है बल्कि आसपास के जिलों से भी लोग यहां खरीदारी करने आते हैं. इस मार्केट में डिजाइनर कपड़े, कटपीस, इलेक्ट्रॉनिक्स, क्रॉकरी, गिफ्ट्स, खिलौने, फुटवेयर की दुकानें, शो रूम, ब्रांडेड कंपनियों की फ्रेंचाइजी तथा रेस्टोरेंट मिलाकर लगभग चार सौ प्रतिष्ठान मौजूद हैं.
वहीं इस कैंपस में दो राष्ट्रीयकृत बैंक भी मौजूद हैं. लग्न हो या आम दिन, लोगों की पहली च्वाइस हथुआ मार्केट ही होती है. हालांकि यह मार्केट जितना फेमस है उस हिसाब से इसका विकास नही हो सका है. एक दिन में औसतन एक करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार इस बाजार से होता है. वहीं राजस्व देने के मामले में भी हथुआ मार्केट नंबर वन है. इसके बावजूद इतना बड़ा बाजार आज तक बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्षरत है. इस बाजार में आज तक एक शौचालय का निर्माण नहीं हो सका है.
बाहर से आने वाले ग्राहकों को काफी परेशानी होती है. बड़े-बड़े दुकानदारों को उस समय शर्मिंदा होना पड़ता है जब ग्राहक पूछते हैं कि टॉयलेट किधर है. कुछ दुकानदार बताते हैं कि भले ही यह शहर का सबसे बड़ा मार्केट है, पर जरूरी सुविधाओं के अभाव में कई वीआइपी कस्टमर यहां आना मुनासिब नहीं समझते. बाजार की दूसरी बड़ी समस्या है पार्किंग जोन का अभाव. मार्केट परिसर में वाहन खड़ा करने के लिए पार्किंग नहीं है.
बाला व चूड़ी की कारीगरी के लिए बिहार में फेमस था सर्राफा बाजार
छपरा सर्राफा बाजार पूरे बिहार में बाला व चूड़ी की कारीगरी के लिए प्रसिद्ध था. वक्त के साथ बड़ी-बड़ी फैक्टरियों का निर्माण हुआ और हाथों की कारीगरी से ज्यादा लोगों में फैशनेबुल गहनों का शौक बढ़ा. छपरा में लगभग 450 कारीगरी की दुकानें हैं, जिनमें 2000 कारीगर काम करते हैं.
यूपी, झारखंड व बिहार के अलग-अलग प्रांतों में अब भी इनके द्वारा बनाये गये गहनों की डिमांड है, लेकिन मौजूदा दौर में बड़े-बड़े शो रूम खुल जाने से इन कारीगरों के रोजी-रोटी पर असर जरूर पड़ा है. पहले जिले के सभी प्रखंडों के लोग गहनों की खरीदारी के लिए छपरा के सर्राफा बाजार पर ही निर्भर थे. समय के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वर्ण आभूषणों की दुकानें खुलने लगीं. ऐसे में गांव से आने वाले अधिकतर ग्राहकों की कमी होने लगी. इसका प्रभाव भी छपरा के ऐतिहासिक सर्राफा बाजार पर दिख रहा है. वहीं हॉलमार्किंग की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण कारीगरों को काफी समस्या होती है.

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