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ऐप्रन पहन कर भोजन बनाती दिख रही हैं रसोइया

दिघवारा : अगर आप दिघवारा अंचल अधीन किसी सरकारी प्राथमिकी व मध्य विद्यालयों के बगल से गुजर रहे हों और उन विद्यालयों में कार्यरत रसोइयां आपको एक विशेष पहनावा ‘ऐप्रन’ पहन कर खाना बनाते या परोसते नजर आये, तो चौंकियेगा नहीं. रसोइयों की एक विशेष पहचान स्थापित करने व खाना बनाने के समय स्वच्छता को […]

दिघवारा : अगर आप दिघवारा अंचल अधीन किसी सरकारी प्राथमिकी व मध्य विद्यालयों के बगल से गुजर रहे हों और उन विद्यालयों में कार्यरत रसोइयां आपको एक विशेष पहनावा ‘ऐप्रन’ पहन कर खाना बनाते या परोसते नजर आये, तो चौंकियेगा नहीं. रसोइयों की एक विशेष पहचान स्थापित करने व खाना बनाने के समय स्वच्छता को ध्यान में रखने के लिए विभाग द्वारा अंचल के सभी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में प्रतिनियुक्त रसोइयों को ‘ऐप्रन’ उपलब्ध करवाया गया है.

इसी ऐप्रन को पहन कर रसोइया इन दिनों सरकारी स्कूलों में भोजन बना रही है. ऐप्रन पहन कर भोजन बनाती रसोइयों का उत्साह देखते ही बन रहा है. वहीं, सरकारी स्कूलों के नामांकित बच्चे भी अपनी ‘रसोइया दादी’ या ‘रसोइया चाची’ के इस ऐप्रन ड्रेस को देख कर अचरज में हैं.

बताया जाता है कि अंचल में नवसृजित प्राथमिक, उत्क्रमित मध्य विद्यालय, प्राथमिक विद्यालय व मध्य विद्यालयों की कुल संख्या 94 है एवं इन्हीं विद्यालयों में प्रतिनियुक्त 208 रसोइयों को ऐप्रन मिला है. साड़ी के ऊपर पहननेवाले ऐप्रन के साथ टोपी भी दी गयी है, जिस पर मध्याह्न् भोजन योजना लिखा गया है.

* काफी खुश हैं रसोइया
अंचल के दर्जनों स्कूलों में कार्यरत रसोइयों से जब ऐप्रन के बारे में पूछा गया, तो उनका कहना था कि वे लोग ऐप्रन पहन कर शहरी लोग जैसा महसूस कर रही हैं. रसोइया दौलतिया कुंवर, ज्ञांती, शारदा, मीना, सुलेखा आदि ने बताया कि ऐप्रन पहनने से कपड़ा खराब नहीं होता है एवं परोसने के समय साड़ी में भोजन नहीं लगता है. टोपी पहनकर खाना बनाने से खाना में बाल गिरने की आशंका कम हो जाती है.

* 100 विद्यार्थियों पर एक रसोइया
नियमों की मानें, तो प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में प्रत्येक 100 बच्चों के खाना बनाने के लिए एक रसोइयां की नियुक्ति होती है. प्रत्येक सौ बच्चों पर रसोइयों की संख्या में वृद्धि होती है एवं एक विद्यालय में छह से अधिक रसोइयों की बहाली नहीं की जा सकती है.

* साल में मिलता है 10 हजार
प्रत्येक विद्यालय के पोषक क्षेत्रों से रसोइया बनने की इच्छुक महिलाओं का फॉर्म भरा जाता है, जिसे विद्यालय की शिक्षा समिति द्वारा अनुमोदित कर बीइओ कार्यालय भेजा जाता है. बाद में इस नाम पर जिला से सहमति ली जाती है, तब रसोइया की नियुक्ति होती है. साल में रसोइया का कार्य करने के लिए महिलाओं को 10 हजार की राशि मिलती है, जिसे उनके खाते में डाल कर उनलोगों को उपलब्ध करवाया जाता है.

* क्या है ऐप्रन
अमूमन ऐसा देखा गया है कि किचेन में कार्य करने के समय महिलाएं अपने पहनावे के ऊपर एक ढीला पतला आवरण वाला कपड़ा चढ़ा लेती हैं, ताकि महिला का मूल वस्त्र खराब न हो. इसे ही ऐप्रन कहा जाता है. यही ऐप्रन रसोइयों को मिला है, जिसमें टोपी भी शामिल है.

* अंचल में सभी 94 प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में भोजन बनाने के लिए नियुक्त रसोइयों को मिला है ऐप्रन
* पहनावे के ऊपर से ऐप्रन पहन कर भोजन बना रही हैं रसोइयां
* अंचल के 208 रसोइयों को मिला है ऐप्रन
* बीइओ ने प्रधानाध्यापकों की बैठक में उपलब्ध करवाया रसोइया का ऐप्रन

– विभाग के निर्देशानुसार, हर सरकारी प्राथमिक व मध्य विद्यालय में नियुक्त रसोइयों को ऐप्रन पहन कर खाना बनाना व परोसना है. पिछले दिनों प्रधानाध्यापकों की बैठक में विद्यालय के प्रधान को रसोइयों के लिए ऐप्रन उपलब्ध करवाया गया है एवं रसोइयों ने इसे पहन कर कार्य करना भी शुरू कर दिया है.
लालदेव राय, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, दिघवारा, सारण

– अंचल के 208 रसोइयों के लिए ऐप्रन प्राप्त हुआ है, जिसे रसोइयों को उपलब्ध करवाया गया है. ऐप्रन को लेकर रसोइयों के बीच उत्सुकता देखी जा रही है.
गौतम कुमार, प्रभारी, मध्याह्न् भोजन योजना, दिघवारा, सारण

– ऐप्रन का वितरण हो जाने से रसोइयों में एकरूपता देखी जा रही है एवं रसोइया टोपी पहन कर भोजन बनाने के साथ वितरित करती हैं. इससे खाना में केश गिरने की आशंका कम हो गयी है. विभाग का यह प्रयास सराहनीय है.
संतोष कुमार सिंह , संकुल समन्वयक, मानुपूर संकुल, दिघवारा, सारण

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