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लगते रहे पौधे, घटते रहे वृक्ष

।। अनिल काकी ।। छपरा : कभी जंगलों से आच्छादित रहा सारण प्रमंडल अब जंगल विहीन हो चुका है. सारण के नाम से एक जमाने में प्रसिद्ध इस इलाके के आरण्य गायब हो रहे हैं. यह हकीकत वन विभाग भी मानने लगा है. पूरे प्रमंडल में सारण की स्थिति थोड़ी बेहतर है. गोपालगंज व सीवान […]

।। अनिल काकी ।।
छपरा : कभी जंगलों से आच्छादित रहा सारण प्रमंडल अब जंगल विहीन हो चुका है. सारण के नाम से एक जमाने में प्रसिद्ध इस इलाके के आरण्य गायब हो रहे हैं. यह हकीकत वन विभाग भी मानने लगा है. पूरे प्रमंडल में सारण की स्थिति थोड़ी बेहतर है. गोपालगंज व सीवान की स्थिति चिंताजनक है.

सारण के कुल 2641 वर्ग किलोमीटर के भोगौलिक क्षेत्र में मात्र. 2.08 प्रतिशत भाग में थोड़े से पेड़ बच गये हैं. गोपालगंज के कुल भोगौलिक क्षेत्र के 2033 वर्ग किलोमीटर में मात्र 0.20 प्रतिशत तथा सीवान के 2219 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मात्र 0.09 प्रतिशत ही वृक्ष रह गये हैं.

* ठोस पहल का अभाव
सारण में पर्यावरण से बचाने के लिये सरकारी व गैर सरकारी संगठनों का प्रयास अभी तक नाकाफी साबित हो रहा है. कहीं अवैध रूप से तो कहीं विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई धड़ल्ले से जारी है. उधर, वन विभाग के अनुसार जिले में छात्र पौधारोपण योजना के साथ ही विभाग द्वारा लाखों पेड़ लगाये गये हैं, इनमें नहर व तटबंधों पर पौधारोपण शामिल हैं.

* जिले में पांच स्थायी पौधशाला
छपरा, मशरक, बनियापुर, एकमा व दिघवारा में पांच स्थायी पौधशाला है, यहां से सालों भर गम्हार, महोबनी, काला शीशम, सागवान, सुबुबुल, चुकुंदी, नीम, जामुन, बहेरा आदि के छोटे पौधे रोपण के लिए पूरे जिले में भेजे जाते हैं. इस वर्ष करीब एक लाख पौधे प्रत्येक पौधशाला में तैयार किये जाने की बात विभागीय कर्मी बताते हैं.

* योजना का पता नहीं
स्कूली छात्रों में पौधारोपण के प्रति जागरूकता लाने के लिए पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा छात्र पौधारोपण योजना शुरू तो की गयी मगर प्रचार-प्रसार के अभाव में जिले के स्कूल व कॉलेजों के अधिकांश छात्रों को इसकी जानकारी ही नहीं है.

उधर, पर्यावरण जागरूकता के लिए स्कूलों में गठित इको क्लब भी नाम मात्र के ही हैं. कुछेक स्कूलों में एक-दो पेड़ लगा कर खानापूर्ति कर ली जाती है, तो कॉलेजों में कार्यरत एनएसएस के छात्र-छात्राएं कभी-कभार पौधे तो लगा देते हैं, मगर देख-रेख के अभाव में जल्द ही सूख जाते हैं. कुल मिला कर उदासीनता के कारण भूमि को हरा-भरा करने के लिए संचालित योजनाएं जिले में महज कागजी ही साबित हो रही हैं.

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