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पुराने अस्तित्व में लौटेगा खनुआ नाला
छपरा (सदर) : एनजीटी नयी दिल्ली ने छपरा शहर में जलजमाव एवं गंदगी के पर्याय के रूप में तब्दील ऐतिहासिक खनुआ नाले पर बनी सभी दुकानों या अन्य ढ़ाचे को तोड़ने का आदेश जिला प्रशासन को दिया है. साथ ही इसके लिए चार सप्ताह का समय निर्धारित किया है. एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एस कुमार […]
छपरा (सदर) : एनजीटी नयी दिल्ली ने छपरा शहर में जलजमाव एवं गंदगी के पर्याय के रूप में तब्दील ऐतिहासिक खनुआ नाले पर बनी सभी दुकानों या अन्य ढ़ाचे को तोड़ने का आदेश जिला प्रशासन को दिया है.
साथ ही इसके लिए चार सप्ताह का समय निर्धारित किया है. एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एस कुमार की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने शहर के वेटरनफोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ के डॉ बीएमपी सिंह द्वारा दायर आवेदन नंबर 444/2017 पर सुनवाई के दौरान दिया. जिस मुकदमे में छपरा नगर पर्षद तथा प्रशासन को विपक्षी बनाया गया था, न्यायालय ने अपने आदेश में नगर पर्षद प्रशासन व जिला प्रशासन को खनुआ नाले को अपने पुराने अस्तित्व में लाने का निर्देश दिया है.
खनुआ नाले पर बने सैकड़ों दुकानों के दुकानदारों में हड़कंप: दो दशक से ज्यादा समय पूर्व छपरा शहर के विभिन्न मुहल्लों यथा करीमचक, रूपगंज, सरकारी बाजार, पुरानी गुड़हट्टी, सिविल कोर्ट परिसर, साधनापूनरी, मौना चौक से साढ़ा ढाला होते विभिन्न मार्गों में सैकड़ों दुकानें बनवायी हैं.
इन दुकानों को एनजीटी ने जिला प्रशासन से खनुआ नाले से हटाने तथा खनुआ नाले को अपने मूल स्वरूप में लाने का जो निर्देश दिया है. उससे अपनी कमाई की गहरी पूंजी लगाने वाले दुकानदारों में हड़कंप है. उधर, जिला प्रशासन भी एनजीटी के आदेशों का अवलोकन कर अगली कार्रवाई करने की तैयारी में है. अब देखना है कि एनजीटी के आदेश के अनुसार जिला प्रशासन खनुआ नाले को अपने मूल स्वरूप में लाने के लिए कौन सी कार्रवाई करता है. मालूम हो कि वर्ष 94-95 में तत्कालीन डीएम आरके श्रीवास्तव ने खनुआ नाले के विभिन्न मार्गों में सैकड़ों दुकानों का निर्माण करा दिया.
इसके बाद खनुआ नाला पर बने ढाचे को तोड़ने का जब-जब ही प्रयास किया तो संबंधित दुकानदारों ने एक ओर जहां पूरजोर विरोध किया, वहीं यह मामला उच्च न्यायालय में पहुंच गया. शहरवासियों के लिये अभिशाप साबित हो रहा है यह नाला: छपरा शहर को बाढ़ से बचाने तथा जलजमाव से निजात दिलाकर गर्मी के दिन में दियारा क्षेत्र में सिंचाई के उद्देश्य से वरदान साबित होने वाला यह नाला अब शहरवासियों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है.
इस ऐतिहासिक नाले पर सैकड़ों दुकानों के बनने तथा लाखों-लाख आवंटन के बावजूद नाले की सफाई नहीं होने के अलावा अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध प्रशासन के उदासीन रवैये ने नाले को शहरवासियों के लिए अभिशाप बना दिया है. शहरवासी इस नाले की गंदगी तथा उससे निकलने वाली बदबू के कारण स्वास संबंधी बीमारियों के भी शिकार हो रहे हैं. कहीं-कहीं तो अतिक्रमणकारियों ने अपनी कारगुजारियों से इस नाले के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया है.
नाले की सफाई नहीं होने से शहर के विभिन्न मुहल्लों के अलावा सिविल कोर्ट परिसर के उत्तरी भाग तथा अन्य कार्यालय परिसर में भी जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. परंतु, जिला प्रशासन कभी भी इस समस्या के समाधान के प्रति संवेदनशील नहीं दिखा. अब देखना है कि एनजीटी के आदेश के बाद खनुआ नाला अपने पुराने स्वरूप में आता है या उसकी स्थिति जस की तस ही रह जाती है.
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