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मक्के से बदल रही किसानों की तकदीर

विद्यापतिनगर : किसानों का देश फिर से अपने खलिहानों पर इतराने लगा है़ उन्नत बीज, उपयोगी खाद, मशीनी यंत्र व बड़े बाजार ने किसानों की तकदीर बदलने में जुटा है. अब खुशहाल खेती से नित्य सुनहले सपने बुन रहे हैं. किसान मिट्टी, जलवायु व सिंचाई व्यवस्था के अनुरूप अधिक उत्पादन वाले फसल की ओर अपनी […]

विद्यापतिनगर : किसानों का देश फिर से अपने खलिहानों पर इतराने लगा है़ उन्नत बीज, उपयोगी खाद, मशीनी यंत्र व बड़े बाजार ने किसानों की तकदीर बदलने में जुटा है. अब खुशहाल खेती से नित्य सुनहले सपने बुन रहे हैं.
किसान मिट्टी, जलवायु व सिंचाई व्यवस्था के अनुरूप अधिक उत्पादन वाले फसल की ओर अपनी कड़े मेहनत को दिशा दी है़ इसमें मक्के की खेती की ओर उनका रुझान तेज रहा है़ आमदनी के लिये सब्जी की खेती को महत्वपूर्ण माना जाता है़ पर मक्के की खेती ने इस भ्रम को दूर ही नहीं किया बल्कि रबी व खरीफ के लिये किसानों का चहेता बन गया़ मेहनत और लागत के अनुरूप सब्जी की खेती से उतना लाभ नहीं होता जितना कम मेहनत व कम लागत से मक्के की खेती से होता है़ मक्के की खेती के साथ दूसरे फसल भी अच्छे पैदावार के लिये मशहूर हो रहे हैं.
एक फसल की लागत में दो फसल उपजा किसान अपनी किस्मत स्वयं संवारने में जुट गये हैं. एक एकड़ में औसतन पचास क्विंटल मकई की उपज होती है़ जिसका बाजार भाव सामान्तया पचास हजार रुपये है़ खर्च पांच से दस हजार के बीच़ मक्के का दाना तैयार कर किसान इसके सूखे पौधे को संयोग कर रखने लगे हैं जो सूखा चारा के रुप में मवेशियों के काम आते हैं.
इसके साथ आलू, ओल, हल्दी हो तब सोने पे सुहागा़ अधिक उत्पादन को लेकर मक्के की फसल ने किसानों को आकर्षित किया है़ इससे इनके आर्थिक स्थिति में तेजी से बदलाव आया है़ कम से कम अपने बच्चों को तालिम दिलाने बेटियों के हाथ पीले करने के लिये इन्हें अब किसी साहूकार की चिरौरी नहीं करना पड़ता़ इससे इतर किसानों ने अपने बूते छतदार मकान बना नौकरी पेसा लोगों को खुली चुनौती दी है़

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