गतिरोध. 15 माह में था बनना, अब री-एस्टिमेट की बात
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पांच साल में भी पूरा नहीं हुआ कर्पूरी छात्रावास
गतिरोध. 15 माह में था बनना, अब री-एस्टिमेट की बात जननायक कर्पूरी ठाकुर छात्रावास सरकार व प्रशासन की लापरवाही से अधूरा पड़ा है. पूर्व सीएम मांझी ने भी इसे पूरा करने का निर्देश दिया था. इस वजह से पिछड़ी जाति को योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. सहरसा : सरकार की लापरवाही और […]
जननायक कर्पूरी ठाकुर छात्रावास सरकार व प्रशासन की लापरवाही से अधूरा पड़ा है. पूर्व सीएम मांझी ने भी इसे पूरा करने का निर्देश दिया था. इस वजह से पिछड़ी जाति को योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
सहरसा : सरकार की लापरवाही और जिला प्रशासन व संवेदक की अकर्मण्यता के कारण जिस योजना को पंद्रह महीने में पूरा होना था. वह पांच साल में भी पूरा नहीं किया जा सका. सुपर बाजार से सटे उत्तर में बन रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर छात्रावास सरकार व प्रशासन की ऐसी ही लापरवाही का उदाहरण बना हुआ है. सरकार की योजना का फायदा पिछड़े वर्ग के छात्रों को नहीं मिल पा रहा है.
एक करोड़ 87 लाख से था बनना
साल 2012 के दो अप्रैल को राज्य सरकार के तत्कालीन कल्याण मंत्री सह जिले के प्रभारी मंत्री जीतन राम मांझी ने कर्पूरी छात्रावास का शिलान्यास किया था. एक करोड़ 87 लाख रुपये की लागत से बनने वाले इस छात्रावास के निर्माण कार्य पूरा करने की अवधि 15 माह निर्धारित की गयी थी. बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड द्वारा इस कर्पूरी छात्रावास का निर्माण कार्य ससमय शुरू भी किया गया. संवेदक से 15 माह में कार्य पूरा करने का एग्रीमेंट बना. लेकिन साल भर के बाद ही इसकी गति धीमी हो गयी. बीते तीन वर्षों से इसका निर्माण कार्य पूरी तरह से ठप पड़ा है. कोई सुधि नहीं ले रहा है.
जानकारी के अनुसार भवन निर्माण में देरी होने का कारण मेटेरियल कॉस्ट का बढ़ना बताया जा रहा है. संवेदक द्वारा री एस्टिमेट की मांग की जा रही है. री एस्टिमेट पर विभाग का ध्यान नहीं जाने से कार्य तीन वर्षों से अटका पड़ा है. साल 2014 के अंत में राज्य के मुख्यमंत्री रहे जीतन राम मांझी ने इस योजना का निरीक्षण करने के बाद कार्य पूरा नहीं होने पर नाराजगी जतायी थी. कार्य एजेंसी सहित संवेदक को जल्द पूरा करने का निर्देश दिया था. लेकिन प्रशासन, विभाग अथवा संवेदक पर सीएम के आदेश-निर्देश का भी कोई असर नहीं हुआ. आधा-अधूरा भवन खंडहर में बदलता जा रही है.
सरकार विभिन्न जातियों के हित की योजना भी बनाती है. लेकिन वह योजना या तो फाइलों में दम तोड़ देती है या जमीन पर उतरते-उतरते रह जाती है. जातिगत योजनाओं का फायदा अक्सर उस समय की पीढ़ी को नहीं मिल पाता है. पांच सालों से निर्माणाधीन कर्पूरी छात्रावास के निर्माण कार्य पूरा होने से भी यही हुआ. इस हॉस्टल का इंतजार गांव के सैकड़ों गरीब पर पढ़ने की इच्छा रखने वाले छात्र कर रहे हैं. शहर में महंगी दर पर कमरा या घर किराया पर लेकर रह रहे छात्र भी इस छात्रावास के पूर्ण होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. लेकिन आधी-अधूरी इमारत खड़ी कर पूरा करने में न तो सरकार दिलचस्पी दिखा रही है और न ही स्थानीय प्रशासन. हश्र सबके सामने है.
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