सहरसा : कहते हैं सामाजिक तानाबाना कितना भी क्यों न बुन लिया जाये. बड़े से बड़े पद को पा कितना भी धन क्यों न अर्जित कर लें. जब तक अपने मां-बाप की सेवा न की जाये, उनका आशीर्वाद प्राप्त न हो, सब बेकार है. उनके आशीर्वाद के बिना न तो कोई पारिवारिक जिम्मेवारी पूरी होती है और न ही सामाजिक अथवा नैतिक जिम्मेवारी. बीते चार वर्षों से सहरसा सदर अस्पताल को अपना आशियाना बनाये विंधेश्वरी देवी समाज को आइना दिखा रही है. पुत्र को उसके कर्तव्यों का बोध करा रही है.
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मेरे बेटे को कुछ हुआ, तो मैं जहर खा लूंगी…
सहरसा : कहते हैं सामाजिक तानाबाना कितना भी क्यों न बुन लिया जाये. बड़े से बड़े पद को पा कितना भी धन क्यों न अर्जित कर लें. जब तक अपने मां-बाप की सेवा न की जाये, उनका आशीर्वाद प्राप्त न हो, सब बेकार है. उनके आशीर्वाद के बिना न तो कोई पारिवारिक जिम्मेवारी पूरी होती […]
बेटे ने छोड़ा, पर मां ने नहीं
सिंहौल गांव की 80 वर्षीया विंधेश्वरी देवी का बीते चार वर्षों से अस्पताल के महिला मेडिकल वार्ड का बेड नंबर चार नया ठिकाना है. वह बीमार नहीं है. परिवार से प्रताड़ित होकर घर छोड़ कर आयी है. संपन्न घराने की बेटी व बहू होने के बाद भी परिजनों को देखने के लिए ललायित है. लेकिन न तो इसके मायके से कोई आता है और न ही ससुराल से. नौ माह तक गर्भ में रख कर जिस पुत्र को जन्म दिया, पढ़ा-लिखा बड़ा अफसर बनाया.
एक अति संपन्न घराने में जिसका ब्याह कराया. वह पुत्र और पुत्रवधू भी उम्र के इस पड़ाव में उसे छोड़ गये. उसकी सुधि लेने तक कोई नहीं आता है. फिर भी उस पुत्र और पतोहू के प्रति उसके हृदय में वही प्रेम वही दुलार है. परिवार के संबंध में पूछने पर वह फफक-फफक कर कहती है जैसा भी है मेरा बेटा है. उसके बारे में ऐसा-वैसा कुछ मत लिखियेगा. उसको कुछ नहीं होना चाहिए. नहीं तो हम जहर खाकर जान दे देंगे.
मां कहती है, जैसा भी है मेरा बेटा ही तो है
समाज की बनी है जिम्मेवारी
प्रारंभ से अब तक उसकी देखभाल करने वाली अधिवक्ता संगीता सिंह कहती हैं कि समाज के इस रूप को देख कर ऐसे परिवार से सख्त नफरत होती है. जिसने अपनी बूढ़ी माता को यूं ही छोड़ दिया गया हो. वह बताती हैं कि कई बार इनके पुत्र व पुत्रवधू को सूचना दे यहां बुलाने का प्रयास भी किया गया. लेकिन उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी. बेटियों को भी बुलाया. वह आयी भी. लेकिन यहां आकर भी उन्होंने अपनी मां से मिलने से इनकार कर दिया. श्रीमती सिंह के अनुसार बेटियां यह कह कर पल्ला झाड़ती रही कि जब बेटे ही रखने को तैयार नहीं हैं तो वह उसे क्यों और कहां रखें. उनका अपना भी तो परिवार है. इधर बूढ़ी महिला की नियमित सेवा करने वाले प्रवीण आनंद कहते हैं कि बीसीसीएल के चीफ इंजीनियर की मां का यह हाल उसके संस्कार को दिखाता है. काफी संपन्न होने के बाद भी जन्म देने वाली मां को बोझ समझने वाले को सजा तो मिलेगी ही. भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं. उसे सूद समेत सब वापस मिलेगा.
चार वर्षों से मां की सुधि नहीं लेने वाले पुत्र के लिए मां के मन में अभी भी भरा है ममत्व
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