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हाथों की रेखा को पीछे छोड़ आगे बढ़ गयी रेखा

सहरसा नगर : पति की मौत के बाद जीवन अंधेरा लगने लगा था. लेकिन सामने दो बेटे व एक बेटी की अभी शुरू हुई जिंदगी संवारने की जरूरत थी. सो, वैधव्य को भार नहीं बनने दिया और लोक-लाज को पीछे छोड़ बाजार में महिलाओं का छोटा-सा काउंटर खोल लिया. यह कहानी है गंगजला में श्याम […]

सहरसा नगर : पति की मौत के बाद जीवन अंधेरा लगने लगा था. लेकिन सामने दो बेटे व एक बेटी की अभी शुरू हुई जिंदगी संवारने की जरूरत थी. सो, वैधव्य को भार नहीं बनने दिया और लोक-लाज को पीछे छोड़ बाजार में महिलाओं का छोटा-सा काउंटर खोल लिया. यह कहानी है गंगजला में श्याम कुंज नाम से महिला श्रृंगार प्रसाधन की दुकान चलाने वाली विधवा रेखा अग्रवाल की.
जिसने बीच बाजार में महिला काउंटर खोल न सिर्फ अपने बच्चों को बेहतर परवरिश दी. बल्कि, जिले की अन्य महिलाओं को भी पुरुष व्यवसायियों के साथ कदम से कदम मिला कर चलने का हौंसला दिया. रेखा की देखादेखी अब सिर्फ शहर में दर्जनों काउंटरों पर सामानों की बिक्री करती महिला दिखने लगी है. जो समाज में बदलाव का स्वरूप सामने लाता है.
व्यवसायी रेखा अग्रवाल बताती हैं कि उनके पति पवन अग्रवाल रेडीमेड कपड़ों के व्यवसायी थे. चार साल पूर्व जब उनका निधन हो गया, तब उनकी बड़ी बेटी अजमेर इंजीनियरिंग कॉलेज में अंतिम वर्ष की छात्रा थी. बड़ा बेटा सुमीत अग्रवाल कोलकाता में था और छोटा अमीत अग्रवाल दसवीं का छात्र था. पिता के निधन के बाद बेटे और बेटियों को वापस घर आ जाना पड़ा. चूंकि बेटे, बेटी और स्वयं रेखा अग्रवाल से रेडीमेड के कारोबार को जारी रखना संभव नहीं था.
इसीलिए उसने उसी काउंटर में पहले छोटा सा महिला श्रृंगार प्रसाधन की दुकान खोली. रेखा बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें थोड़ी परेशानी जरूर हुई. लेकिन बच्चे व उनके भविष्य के बारे में सोंचते ही सब सामान्य हो गया. दुकान के सामानों की खरीदारी के लिए उन्हें ही पटना और कोलकाता जाना पड़ता था. धीरे-धीरे उनकी दुकान पर महिला खरीदारों की भीड़ बढ़ती गई और उन्हें अपने दुकान का विस्तार करना पड़ा.
शहर का है पहला महिला काउंटर
रेखा बताती हैं कि दुकानकारी करने से उन्हें स्वावलंबन व आत्मनिर्भरता का एहसास होता है. समाज भी उनके हौंसले को बढ़ा रहा है. खरीदार महिला भी बेबाक व नि:संकोच अपनी जरूरतों की खरीदारी कर रही हैं.
वह बताती हैं कि यह शहर का पहला महिला काउंटर है. उनके आगे आने के बाद शहर की अन्य बेरोजगार व जरूरतमंद लड़की व महिलाओं का भी हौंसला बढ़ा. आज लगभग सभी प्रमुख मार्ग में महिला काउंटर खुले हुए हैं व महिलाएं अपनी जरूरतों के लिए उन्हीं काउंटरों पर पहुंच रही हैं.

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