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बगैर फायर मैन कैसे बुझेगी आग

कुमार आशीष सहरसा नगर : वर्ष में लगभग तीन माह ऐसे जरूर होते हैं जब गरीबों की हजारों झोपड़ियां जल जाती हैं, कई मानव व पशुओं की मौत हो जाती है और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान होता है. इसे रोका तो फिलहाल नहीं जा सकता, लेकिन ऐसी घटनाओं से होने वाले नुकसान में कमी […]

कुमार आशीष
सहरसा नगर : वर्ष में लगभग तीन माह ऐसे जरूर होते हैं जब गरीबों की हजारों झोपड़ियां जल जाती हैं, कई मानव व पशुओं की मौत हो जाती है और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान होता है. इसे रोका तो फिलहाल नहीं जा सकता, लेकिन ऐसी घटनाओं से होने वाले नुकसान में कमी जरूर लायी जा सकती है. विडंबना है कि ऐसा नहीं हो रहा है. घर के चूल्हे अथवा मवेशियों के पास जलाये जाने वाले घूरे से निकली हल्की सी चिंगारी को यह हवा विकराल बना देती है.
नतीजा धू-धू कर जलता है घर. गरीबों के घर फूस व लकड़ी के बने होते हैं. जो आग की तपन को और बढ़ा देती है. जब तक लोग संभल पाते हैं तब तक तो सैकडों घरों को आग लील लेती है. गरीबों के सारे सपने आग की भेंट चढ़ जाते हैं. पिछले दो वर्षों में जिले के डेढ़ सौ गांवों के लगभग डेढ़ हजार परिवारों को आग ने ऐसा जलाया कि अभी तक वे संभल नहीं पाये हैं.
बीते वर्ष ही सौ से ज्यादा घर आग की भेंट चढ़ चुके हैं. सरकारी सहायता के रुप में दी जाने वाली राशि नाकाफी होती है. अपना सब कुछ गंवा देने वालों परिवारों को मामूली राहत उपलब्ध करवा कर प्रशासन अपने कर्तव्यों का इति श्री मान लेती है. इन सबके बाद जिक्र आता है फायर बिग्रेड का. यह विभाग खुद समस्याओं से घिरा है. मालूम हो कि शहरी क्षेत्र में सड़के कम चौड़ी होने की वजह से बड़ी गाड़ी राहत नहीं पहुंचा पाती है.
बिन पानी कैसे बुझेगी आग
प्रमंडलीय मुख्यालय होने के नाते यहां अग्निशमन विभाग की स्थापना को 28 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन सरकार द्वारा विभाग को अभी तक बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नही कराई जा सकी है.
मालूम हो कि सूबे के सबसे बड़े जल क्षेत्र में होने के बाद भी विभाग के टैंकर पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं, जिसके कारण राहत कार्य में विभाग स्वयं को अक्षम मान रहा है. विभाग के अधिकारी ने बताया कि पीएचइडी के टंकी से पानी भरने की व्यवस्था है.
तीन गाड़ी के भरोसे है विभाग
अग्निशामक विभाग द्वारा तो जिला को फायर बिग्रेड की छह गाड़ियां मुहैया करायी गयी थीं, जो समय के साथ तकनीकी खराबी के वजह से कम होती गयी. अभी विभाग के पास सिर्फ दो बड़ी व एक छोटी गाड़ी उपलब्ध है.
ज्ञात हो कि एक समय में एक से अधिक जगह आग लगने पर विभाग में अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है. जिले के 172 पंचायत एवं 40 शहरी वार्डों में राहत के नाम पर ये टैंकर सिर्फ खानापूर्ति ही कर पाते हैं. विभागीय मानक के अनुसार, इस क्षेत्र में समय पर राहत कार्य निष्पादित करने के लिए 12 अग्निशामक वाहन की आवश्यकता है. सिमरी अनुमंडल में कार्यालय खुलने के बाद एक दमकल को सिमरी बख्तियारपुर में सेवा प्रदान करने के लिये दे दिया गया है.
होमगार्ड बना फायर मैन
बिहार अग्निशामक सेवा में नयी नियुक्तियां नहीं होने के कारण जहां अधिकारियों के पद रिक्त हैं, वही विभाग में पानी की तरह ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फायर मैन के भी सभी पद खाली ही पड़े हैं. जिसके बदले में गृह रक्षा वाहिनी के वृद्ध स्वयं सेवकों से काम लिया जा रहा है.
प्रशिक्षण प्राप्त फायर कर्मियों की जगह पर ये होमगार्ड के जवान कितनी मुस्तैदी से अपने काम को अंजाम देते होंगे, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. मालूम हो कि इन अकुशल कर्मियों को स्वयं की सुरक्षा के लिए आग से बचाव करने वाला जैकेट भी नहीं मिलता है.
तीन थाना को है अपना टैंकर
जिले के सौरबाजार, महिषी व जलई थाना को आग लगने की स्थिति में त्वरित कार्रवाई के लिए सरकार द्वारा आठ माह पूर्व लाखों की लागत से तीन टैंकर उपलब्ध कराया गया था. लेकिन महिषी व जलई के लिए दिया गया टैंकर जिला परिषद में बने विभाग के कार्यालय की शोभा बढ़ा रहा है. उक्त वाहनों के लिए अभी तक चालक की व्यवस्था नहीं की गयी है.

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