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कैंसर व गॉल ब्लाडर की हुई चीरफाड़

सहरसा : बेसिकॉन-2015 का दूसरा दिन शनिवार कैंसर व गॉल ब्लाडर की चीरफाड़ की गयी. लेकिन यह चीरफाड़ कैंसर व गॉल ब्लाडर के क्षेत्र में नवीनतम इलाज के तरीके और तकनीक की जानकारी को लेकर की गयी. सुबह नौ बजे से शुरू हुए सत्र में विशेषज्ञ चिकित्सकों के पैनल ने इन बीमारियों से बचाव के […]

सहरसा : बेसिकॉन-2015 का दूसरा दिन शनिवार कैंसर व गॉल ब्लाडर की चीरफाड़ की गयी. लेकिन यह चीरफाड़ कैंसर व गॉल ब्लाडर के क्षेत्र में नवीनतम इलाज के तरीके और तकनीक की जानकारी को लेकर की गयी. सुबह नौ बजे से शुरू हुए सत्र में विशेषज्ञ चिकित्सकों के पैनल ने इन बीमारियों से बचाव के साथ-साथ विशेष परिस्थिति में इलाज करने के तरीके पर भी विस्तृत चर्चा की.

डॉ अनिल कुमार गुप्ता, डॉ पीके झा, डॉ एनपी नारायण, डॉ समीर कुमार वर्मा, डॉ मनीष मंडल, डॉ प्रेम कुमार, डॉ मनीष मंडल, डॉ आशीष कुमार झा, डॉ दिनेश कुमार सिन्हा, डॉ दिलीप कुमार, डॉ एस जॉन, डॉ रणवीर प्रसाद सिंह, डॉ एमके झा, डॉ संजय डी क्रूज ने लंच से पहले दिये व्याख्यान में कैंसर व गॉ ब्लाडर के प्रकार, भिन्न-भिन्न स्थितियों में उपचार के तरीके और इस क्षेत्र में इलाज के आधुनिकतम तरीके को विस्तृत ढंग से बताया.

हॉल में बैठे लोगों द्वारा इस दौरान कई तरह के सवाल भी पूछे गये, जिस पर विशेषज्ञों ने प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखा कर जिज्ञासा शांत की. इस दौरान यूरेटेरिक इंज्यूरी में बचाव के तरीके, ब्रेस्ट कर्न्जेवेशन सर्जरी, पोलीट्रामा में जनरल सर्जन का महत्व, सर्जरी और डायबीटिज, कैंसर व गॉल ब्लाडर, इंडोस्कोपी, केमो-रेडिएशन, हिस्टो पैथोलॉजी, रोबोटिक बेरिएटिक सर्जरी फॉर सुपर ओबेसिटी, भूत, वर्तमान व भविष्य का रेक्टल कैंसर ट्रीटमेंट एवं किडनी इंज्यूरी जैसे विषयों पर विस्तृत प्रकाश डाला.

लंच के बाद इंग्लैंड से आये डॉ पुलक सहाय, डॉ संजीव कुमार, डॉ अनिल कुमार, डॉ बिन्दे कुमार, डॉ संजीव कुमार व डॉ प्रशांत कुमार सिंह द्वारा चेस्ट ट्रामा के तहत प्राथमिक उपचार व प्री-हास्पीटल केयर, पेडियाट्रिक चेस्ट ट्रामा, कार्डिक व मेडिसनल इंज्यूरी, लंग्स इंज्यूरी से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया.

इसके बाद पीजी की पढ़ाई कर रहे मेडिकल छात्र-छात्राओं ने पोस्टर प्रदर्शनी लगायी गयी. जिसे विशेषज्ञ चिकित्सकों ने सराहा और छात्र-छात्राओं को टिप्स भी दिये.कैंसर की सर्जरी में रोबोट की भूमिका अहम इंग्लैंड में 20 साल से प्रैक्टिस कर रहे कैंसर विशेषज्ञ डॉ मदन झा ने प्रभात खबर से की खास बातचीत कहा विदेशों में सजगता के कारण जल्दी हो जाती है

कैंसर की पहचान ,

सहरसा : अब कैंसर की सर्जरी में मशीन मानव (रोबोट) का उपयोग किया जाने लगा है. जाने-माने कैंसर विशेषज्ञ डॉ मदन झा ने शनिवार को प्रभात खबर से हुई खास बातचीत में कहा कि जहां इंसान को कम दिखायी देता है, सर्जन के हाथ नहीं पहुंच पाते, वहां रोबोट काफी कारगर सिद्ध हो रहा है.

इस प्रक्रिया खर्च थोड़ा ज्यादा अवश्य होता है, लेकिन सुधार की गुंजाइश भी काफी ज्यादा होती है. रोबोटिक तकनीक से किये जाने वाले ऑपरेशन में मैन्यूल ऑपरेशन के मुकाबले काफी कम समय व सटीक तकनीक का उपयोग होता है. इंग्लैंड में पिछले 20 सालों से प्रैक्टिस कर रहे डॉ झा का मानना है कि विदेशों में कैंसर की पहचान अपेक्षाकृत जल्दी हो जाता है.

जिससे वहां इलाज में खर्च भी कम आता है. इसकी सबसे बड़ी वजह लोगों की जागरूकता है. जागरूकता व तकनीक के सहारे कैंसर की शुरूआती दौर में ही पकड़ लिया जाता है. जिसके कारण मरीज के ठीक होने की संभावना ज्यादा होती है. उनके अनुसार भारत में भी अगर लोग जागरूक हो जाएं तो तेजी से फैल रहे कैंसर रोग पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.

डॉ झा ने बताया कि अगर मल में रक्त आ रहा है, वजन गिर रहा है, भूख कम लगती है या शरीर में रक्त की मात्रा कम हो रही हो तो बिना देर किये तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें.कोसी के सर्जन को ट्रेंड कर रहा बेसिकॉन ,

सहरसा : बेसिकॉन-2015 के तहत कोसी के सर्जन को लेप्रोस्कोपिक विधि से ट्रेंड करना है. कोसी के इलाके में लेप्रोस्कोपिक विधि कैसे विकसित हो, इस विधि के तहत कैसा ऑपरेशन हो, जो कोसी क्षेत्र में हो सकता है, इस पर केंद्रित किया गया है. ताकि कोसी के सर्जन को लेप्रोस्कोपिक विधि में दक्ष किया जा सके.

आईजीआईएमएस, पटना के जीआई विभाग के एचओडी डॉ मनीष मंडल ने बेसिकॉन-2015 के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते कहा कि इस तरह के आयोजन से चिकित्सक अपने क्षेत्र में हुई नयी तकनीक के तरीके व उपचार में हो रहे गुणात्मक सुधारों से परिचित होते हैं. कोसी क्षेत्र में लेप्रोस्कोपिक विधि का प्रयोग हो तो रहा है, लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में यहां काफी काम करने की जरूरत है. इस विधि से गॉल ब्लाडर, बच्चेदानी, किडनी या नली में पत्थर, हार्निया व पाइल्स का उपचार किया जाता है.

पाइल्स की सर्जरी तो इस कदर आसान हो गयी है कि मरीज उसी दिन काम पर लौट सकता है. क्योंकि लेप्रोस्कोपिक विधि के तहत होने वाले इस ऑपरेशन में एक तरफ मशीन काटता है तो दूसरी तरफ सिलता भी रहता है.

ऑपरेशन के दो से तीन घंटे बाद मरीज स्वस्थ होकर अपने काम पर लौट सकता है. हेपेटाइटिस-बी की हुई मुफ्त जांच आयोजन के दूसरे दिन एएसआई बिहार चैप्टर के संयुक्त सचिव डॉ मनीष मंडल के सौजन्य से हेपेटाइटिस-बी की मुफ्त जांच की गयी. डॉ मंडल ने बताया कि हेपेटाइटिस-बी एक जानलेवा बीमारी है.

लोगों में इसका प्रसार रोकने के उद्देश्य से मुफ्त जांच शिविर का आयोजन किया गया है. इसकी जांच में लगभग चार हजार रुपये का खर्च आता है.

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