जुनून l खुद से बनायी विद्यापति, सीता, मांगैन खबास, राजा सलहेस सहित 12 प्रतिमाएं
मूर्तिकार भोगेंद्र शर्मा ने विद्यापति धाम की स्थापना के लिए दिल्ली, पंजाब, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू सहित देश के अन्य हिस्सों में बसे परिचितों से चंदा मांगा. खुद भी पंजाब व हरियाणा जाकर मजदूरी की और घर लौटकर विद्यापति की मूर्ति बनानी शुरू की. बेटी की शादी के बाद डाली पर जो पैसे(शगुन) लोगों ने दिये उसके अलावा और 10 हजार ब्याज पर पैसा लेकर उन्होंने मूर्ति निर्माण के संकल्प को पूरा किया.
सत्तरकटैया (सहरसा) : जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्मीनियां गांव विद्यापति धाम के नाम से प्रसिद्ध होता जा रहा है. विद्यापति धाम अब पूरे बिहार-नेपाल में चर्चित होने लगा है. इस धाम की स्थापना की कहानी काफी रोचक है. लक्ष्मीनियां गांव में भोगेंद्र शर्मा पेंटिंग करते थे. ऑफसेट का जमाना आने के बाद वह लगभग बेरोजगार हो गये. उन्हें शुरू से ही मैथिली और मिथिला से अगाध प्रेम था. उनकी भाषा के प्रति प्रेम की हद यह थी कि वे स्कूलों में जाकर शिक्षकों से बच्चों को मैथिली पढ़ाने की बात करते,
तो चौक के दुकानदारों का बोर्ड मुफ्त में मैथिली में लिख देते. वे मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति को अपने गांव में बसाना चाहते थे. इस बात की चर्चा उन्होंने गांव के कई लोगों से की, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी. 2001 में भोगेंद्र ने अपने सपने को साकार करने के लिए सहरसा नंदलाली पथ के वर्तमान विद्यापति चौक पर एक बरगद का पेड़ लगाया और एक ईंट
मजदूरी कर स्थापित…
रखकर उस पर विद्यापति धाम लिख दिया. इसके बाद विद्यापति की मूर्ति की स्थापना का संकल्प लिये झोला लेकर घर से निकल पड़े.
देश भर से जमा किया चंदा : मूर्तिकार भोगेंद्र शर्मा ने विद्यापति धाम की स्थापना के लिए जगह-जगह चंदा मांगना शुरू किया. वे घूम-घूम कर ये पता करते रहते थे कि इस इलाके का कौन व्यक्ति कहां मजदूरी कर रहा है. उनसे संपर्क कर उन्हें वेतन मिलने की तारीख जान लेते थे और उस तिथि को वहां पहुंच धाम के नाम पर उनसे चंदा ले लेते थे. वे दिल्ली, पंजाब, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू सहित देश के अन्य हिस्सों से चंदा ला चुके हैं. भोगेंद्र ने खुद भी पंजाब व हरियाणा जाकर मजदूरी की और घर लौटकर विद्यापति की मूर्ति बनानी शुरू की. बेटी की शादी के बाद डाली पर जो पैसे लोगों ने दिये उसके अलावा और 10 हजार ब्याज पर पैसा लेकर उन्होंने मूर्ति निर्माण के संकल्प को पूरा किया. विद्यापति की मूर्ति बनते ही परिसर के लिए कुछ जमीन की आवश्यकता थी.
उन्होंने सरकारी दफ्तर के कर्मी देवनाथ यादव से संपर्क किया. देवनाथ यादव भी भाषा प्रेमी निकले. उन्होंने साढ़े तीन कट्ठा जमीन धाम के नाम पर दान दे दिया. श्री यादव भी मैथिली के एक रेडियो कार्यक्रम से बहुत ही प्रभावित हैं. इस जमीन के मिलते ही तत्कालीन विधायक संजीव झा ने परिसर के विकास के लिए पौने तीन लाख का फंड दिया और वर्ष 2014 में विद्यापति धाम का विधिवत उद्घाटन किया.
परिसर में बनायी कई मूर्तियां : मूर्तिकार भोगेंद्र शर्मा ने अपने कला और कौशल के बल पर चंदे व दान के पैसे से विद्यापति धाम में कई महापुरुषों की मूर्तियां बनायी है. इसमें कवि विद्यापति के अलावा राजा जनक, याज्ञवलक्य, राजा सलहेस, मांगैन खबास, वीर लोरिक, दीनाभद्री, अयाची, बेंगठा चमार, धर्नुधारी सीता की मूर्तियां शामिल हैं. अब तो इस धाम में मूर्तियां दान करने वालों की भी कतार लगने लगी है. भोगेंद्र ने बताया कि हाल ही में प्रयोग के तौर पर धर्नुधारी मां सीता की 12 फीट की मूर्ति बनायी गयी है. ऐसी प्रतिमा भारत-नेपाल में कहीं नहीं है. इसके बाद कारू खिरहरि व संत रविदास की मूर्ति बनाने की योजना है.
पर्यटन स्थल का दर्जा चाहते हैं भोगेंद्र : उद्घाटन के बाद विद्यापति धाम जिले सहित बिहार में पहचान बनाने में कामयाब हुआ है. भोगेंद्र घूम-घूम कर मैथिली भाषा में विद्यापति धाम की जानकारी लिखते रहते हैं. विद्यापति धाम को पर्यटन स्थल बनाने के लिए तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री डाॅ अब्दुल ने पर्यटन मंत्री अनिता सिंह को पत्र भी भेजा था, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है. भोगेंद्र शर्मा को उम्मीद है कि यह जगह मैथिली और मिथिला प्रेमियों के लिए एक तीर्थस्थल बन जायेगा. धाम के विकास के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया है. उनके प्रयास से जिले में एक सुंदर व समर्पित जगह की स्थापना हुई. लोग इनके जुनून को सलाम करते हैं.
देश भर में घूम-घूम कर अपने इलाके के लोगों से इकट्ठा किया चंदा
देवनाथ यादव से दान में ली जमीन
बायोलॉजी का प्रश्नपत्र वायरल