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लागत से चार गुणा पैसे वसूलते हैं निजी आर्थोपेडिक नर्सिंग होम

30 से 40 फीसदी का लाभ ले जाते हैं दुकानदार दूसरे के यहां के उपकरण डॉक्टर भी नहीं करते मंजूर सहरसा : कोसी में सहरसा के प्राइवेट अस्पतालों के साथ-साथ सुपौल और मधेपुरा में हड्डी उपकरणों के नाम पर मरीजों से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है. कुछ को छोड़ कर अधिकांश डॉक्टर और उपकरण […]

30 से 40 फीसदी का लाभ ले जाते हैं दुकानदार
दूसरे के यहां के उपकरण डॉक्टर भी नहीं करते मंजूर
सहरसा : कोसी में सहरसा के प्राइवेट अस्पतालों के साथ-साथ सुपौल और मधेपुरा में हड्डी उपकरणों के नाम पर मरीजों से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है. कुछ को छोड़ कर अधिकांश डॉक्टर और उपकरण बनाने वाली कंपनियों की आपसी मिलीभगत से इन उपकरणों के लिए वास्तविक रेट से तीन से चार गुना अधिक पैसे मरीजों को देने पड़ रहे हैं. मरीज या उनके परिजन डॉक्टर या अस्पताल प्रबंधन से पूछताछ करते हैं तो इलाज नहीं करने की धमकी दी जाती है. उन्हें वास्तविक रेट की जानकारी तक नहीं होती. कोई विकल्प नहीं होने के कारण मरीजों को चुप रहना पड़ता है.
एक सप्लायर ने बताया कि डॉक्टरों को हड्डी उपकरण 30 से 40 प्रतिशत की कम दर पर दिये जाते हैं. लेकिन डॉक्टर मरीजों से मनमानी रकम वसूलते हैं. हालांकि कुछ बड़े व प्रसिद्ध डॉक्टर अपनी साख के साथ खिलवाड़ नहीं करते, लेकिन यह भी सच है कि अधिकांश शहर के आर्थोपेडिक नर्सिंग होम में उपकरण बनाने वाली कंपनियों के डीलर खुलेआम घूमते हैं.
यहां चार से पांच कंपनियों के डीलर डेरा जमाये रहते हैं. इनका संबंध डॉक्टरों से होता है. जिस मरीज को हड्डी से संबंधित उपकरण लगाना है. उसके परिजनों से डीलर ऑपरेशन से पहले ही मुलाकात कर लेते हैं और मनमाना रुपये वसूलते हैं. इतना ही नहीं, अगर कोई जागरूक मरीज दुकान तक पहुंच भी जाये और कम कीमत पर उपकरण ला भी दे, तो डॉक्टर उसे लौटा देते हैं. कोई गाइडलाइन तय नहीं होने के चलते, मरीजों को मनमाना पैसा देना पड़ रहा है.
दुकान होती है अक्सर संबंधी या दबंगों की : नर्सिंग होम में पहले ही पैसा जमा करा लिया जाता है. हड्डी रोग के डॉक्टरों का उपकरण की सप्लाइ करने वाले दुकानदारों से सीधा संबंध है.
यहां हड्डी के उपकरणों पर दो तरह से खेल होते हैं. ऑपरेशन के पहले ही पैसे जमा करा लिए जाते हैं. पैसा जमा होने के बाद डॉक्टर अपने कर्मचारी को भेज कर उपकरण मंगाते हैं. इसके लिए मरीजों से 18 से 25 हजार रुपये तक जमा कराये जाते हैं. इसके अलावा मरीज को बाहर की दुकान का नंबर मुहैया कराया जाता है. उपकरण डॉक्टरों द्वारा चिह्नित दवा दुकान उपलब्ध कराती है. दुकानदार का संबंध नर्सिंग होम व शहर के नामचीन लोगों से रहता है. अस्पताल में होने वाली परेशानी व हंगामे की स्थिति में इन प्रभावशाली लोगों को सामने लाकर जनता की भीड़ को गुमराह किया जाता है. यह स्थिति सुपौल एवं मधेपुरा के हड्डी अस्पताल की भी है.
मिलेगी शिकायत, तब होगी कार्रवाई : स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बताते हैं कि इस तरह की शिकायत हाल-फिलहाल के दिनों में नहीं मिली है, लेकिन मरीजों से चिह्नित दुकान से ही उपकरण मंगाने के लिए दबाव डालना पूरी तरह से गलत है. अगर इस तरह का खेल हो रहा है, तो मैं इसके जिम्मेवार अधिकारियों से बात करता हूं. अगर मामला सही पाया गया, तो नियमानुसार कार्रवाई के लिए मैं ऊपर के अधिकारियों से बात करूंगा. आइएमए के अधिकारियों ने कहा कि वार्ड के अंदर डीलर घुमते हैं, इसकी जानकारी मुझे नहीं है. अस्पताल प्रशासन का उद्देश्य है
मरीजों को सस्ती दरों में इलाज मुहैया कराना. हड्डी विभाग के मरीजों को उपकरण के संबंध में परेशानी हो रही है, तो इसको दिखाता हूं. हड्डी रोग विभाग के कई चिकित्सकों ने कहा कि मरीजों की सुविधा को देखते हुए उपकरण मंगाये जाते हैं, क्योंकि कई बार मरीज गलत उपकरण ला देते हैं और सर्जरी करने में परेशानी होती है. ऐसे में अगर गलती होती है, तो इसका दोषी सर्जन को ठहराया जाता है, जो कि गलत है. अगर गड़बड़ी पायी जायेगी, तो जरूर सिस्टम सुधर जायेगा.

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