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एम्स का नहीं हुआ निर्माण तो होगी राजनीतिक हार

मांग. चेक लिस्ट की सभी शर्तों को पूरा कर रहा सहरसा सरकार ने दो सौ एकड़ जमीन उपलब्धता की रिपोर्ट मांगी थी. इस पर जिलािधकारी ने 217 एकड़ जमीन की रिपोर्ट सरकार को भेज दी है. सहरसा : सहरसा कोसी प्रमंडल का मुख्यालय तो है, लेकिन सामरिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ जिला है. जिले […]

मांग. चेक लिस्ट की सभी शर्तों को पूरा कर रहा सहरसा

सरकार ने दो सौ एकड़ जमीन उपलब्धता की रिपोर्ट मांगी थी. इस पर जिलािधकारी ने 217 एकड़ जमीन की रिपोर्ट सरकार को भेज दी है.
सहरसा : सहरसा कोसी प्रमंडल का मुख्यालय तो है, लेकिन सामरिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ जिला है. जिले का अधिकतर भू-भाग साल में चार से पांच-महीने बाढ़ की तबाही झेलता है, तो शेष महीने सुखाड़ से लड़ता रहता है. पलायन के कारण गांव के गांव पुरुष विहीन बने रहते हैं. शहर रोज जाम से, तो हर साल जलजमाव का सामना करता रहता है. बीमारी ने तो जैसे कोसी को अपना घर ही बना ली है. लोगों की आधी कमाई डॉक्टर के पास चली जाती है. पीएचसी सदर तो सदर अस्पताल डीएमसीएच या पीएमसीएच रेफर कर पल्ला झाड़ लेने की परंपरा पर लगातार कायम हैं. सरकारी अस्पतालों की रेफर पद्धति गरीब लोगों को और भी गरीब व बीमार बना रही है.
मंत्रालय ने जून, 2015 में सीएम को भेजा था पत्र
भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने जून 2015 में राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र भेज बिहार में एक अन्य एम्स खोले जाने की बात कही. केंद्रीय मंत्री ने मुख्यमंत्री से नये एम्स की स्थापना के लिए राज्य के किसी जरूरतमंद जिले में दो सौ एकड़ जमीन उपलब्ध कराने की बात कही थी. मंत्री के पत्र में यह स्पष्ट उल्लिखित है कि वह स्थान सड़क मार्ग, पानी व बिजली की उपलब्धता से जुड़ा हो. केंद्र सरकार के चेकलस्ट में उस क्षेत्र के एनएस, एसएच, रेलवे स्टेशन व हवाई अड्डा से नजदीकी भी पूछी गयी है. इसके अलावे क्षेत्र की जनसंख्या, वहां के रोग व उस इलाके के अस्पताल, मेडिकल कॉलेज एवं वहां उपलब्ध बेड से संबंधित सूचनाएं भी मांगी गयी है. सौभाग्य से सहरसा केंद्र सरकार द्वारा तय सभी शर्तों को पूरा करता है. कोसी के इस इलाके में आंख, कान, लीवर, किडनी, पेट, सूगर, एनीमिया, यूटरस सहित अन्य बीमारियों का प्रसार है. सहरसा एनएच व एसएच से सीधा जुड़ा है. यहां कोई मेडिकल कॉलेज भी नहीं है.
एम्स के नाम पर जगी है लोगों में आस
कोसी का यह इलाका राजनीतिक रूप से भी काफी पिछड़ा रहा है. खासकर पिछले 15 वर्षों से जिले के जनप्रतिनिधियों का सरकार पर कोई पकड़ नहीं रही है. इस कारण स्वीकृति के 19 साल बाद भी अब तक एक अदद ओवरब्रिज का निर्माण भी शुरू नहीं हो सका है. बैजनाथपुर पेपर मिल 40 वर्षों बाद भी शुरू नहीं हो सका. उत्तर बिहार के सर्वोत्कृष्ट पर्यटन स्थल का रूप ले चुके मत्स्यगंधा जलाशय की सूरत नहीं बदली जा सकी. बार-बार घोषणाओं के बाद भी शहर की यातायात व्यवस्था में अवरोध पैदा कर रहे बस स्टैंड को स्थानांतरित नहीं किया जा सका है. जिले में मेडिकल कॉलेज नहीं खोले जा सके हैं. राज्य सरकार द्वारा एम्स के लिए अन्य जिलों के अलावे सहरसा को भी चयनित करने से उम्मीद की एक किरण दिख रही है. अगर सरकार पर दबाव देने वाला कोई नहीं मिला, तो यह सौगात भी हाथ से निकल जायेगी. अन्य योजनाओं के विफल होने की तरह एक बार फिर राजनीतिक हार हो जायेगी.
डीएम ने भेजी 217.74 एकड़ जमीन की रिपोर्ट
16 महीनों के बाद सीओ द्वारा रिपोर्ट समर्पित करने के बाद डीएम ने 26 अगस्त’17 को स्वास्थ्य विभाग के उप सचिव को एम्स के लिए जमीन उपलब्धता की रिपोर्ट भेज दी. डीएम ने सरकार को बताया है कि सत्तरकटैया के सीओ ने गोबरगढ़ा मौजा, थाना नंबर 178, अंचल सत्तरकटैया, जिला सहरसा में बिहार सरकार का 52.18 एकड़ उवं रैयती 165.56 एकड़ कुल 217.74 एकड़ भूमि की खेसरावार सूची उपलब्ध कराया है, जिसे भेजी जा रही है.

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