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कैसे होगा आग पर काबू ?

अनुमंडल मुख्यालय स्थित अग्निशमन केंद्र अपनी ही समस्याओं से जूझ रहा है. उसे देख कर नहीं लगता कि क्षेत्र में आग लगने पर वह कैसे बुझा पायेगा. इस केंद्र का एरिया भी काफी है. करीब 125 किलोमीटर दूरी तक तीन वाहनों से काबू पानी मुश्किल लग रहा है़ डेहरी ऑन सोन : शहर करीब पांच […]

अनुमंडल मुख्यालय स्थित अग्निशमन केंद्र अपनी ही समस्याओं से जूझ रहा है. उसे देख कर नहीं लगता कि क्षेत्र में आग लगने पर वह कैसे बुझा पायेगा. इस केंद्र का एरिया भी काफी है. करीब 125 किलोमीटर दूरी तक तीन वाहनों से काबू पानी मुश्किल लग रहा है़

डेहरी ऑन सोन : शहर करीब पांच किलोमीटर दूर मथूरापुर स्थित अग्निश्मन केंद्र अपनी समस्याओं से ही जूझ रहा है. ऐसे में क्षेत्र में आग लगने की स्थिति में उस पर कैसे काबू पायेगा यह समझ से परे है. कभी जिले के अग्निश्मन केंद्र स्टेशन के रूप में दर्जा पाये यह केंद्र हाल के वर्षों में जब से जिला मुख्यालय में नया स्टेशन बना है उसके बाद से बदहाल हो गया है

आवास बोर्ड के जर्जर भवन में स्थित उक्त केंद्र अपने भवन के लिए भी तरस रहा है.

अग्निश्मन केंद्र में लगा टेलीफोन वर्ष 2013 से ही ठप पड़ा है. जबकि, उसका बिल लगातार जमा किया जा रहा है. जिले में दक्षिणी सुदूर क्षेत्र जारोदाग से ले कर बघैला थाना क्षेत्र तक के बीच के करीब 125 किलोमीटर की दूरी में फैले इस केंद्र के कार्य क्षेत्र में लगने वाली आग को बुझाने के लिए तीन फायर टेंडर गाड़ी (आग बुझाने वाली) व एक पंप गाड़ी (इससे दमकल में पानी भरा जाता है) है.

टेलीफोन सुविधा, पानी भरने की समस्या, एक अपना भवन व स्टॉफ की कमी का दंभ झेल रहे अग्निशमन केेंद्र आग लगने पर उसे बुझाने में कितना सफल होगा समझा जा सकता है. भगवान भरोसे चल रहे उक्त केंद्र पर क्षेत्र की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. हालांकि, इस के केंद्र की उपेक्षा आनेवाले समय में घातक सिद्ध होगी़

आग लगने पर थाने में करना पड़ता है फोन

कहीं भी आग लगने पर 101 नंबर पर फोन करने की सरकारी घोषणा यहां टांय-टांय फिस्स साबित हो रही है. कहीं भी आग लगने पर केंद्र को सूचना देने के लिए वहां लगा टेलीफोन संख्या 251480 वर्ष 2013 से ही डेड पड़ा है. इसकी शिकायत टेलीफोन विभाग से कई बार की गयी.

अति आवश्यक नंबर में माने जाने वाले उक्त फोन को टेलीफोन विभाग द्वारा चार साल में भी ठीक नहीं किया गया है. हालांकि, कर्मचारियों का कहना है कि आश्चर्य की बात तो यह है कि चार साल से डेड पड़े टेलीफोन का विभाग द्वारा लगातार बिल भेजा जा रहा है और उसे अग्निशमन विभाग द्वारा जमा भी कराया जा रहा है.

नवंबर 2015 तक टेलीफोन बिल जमा किये जाने की बात अधिकारी बताते हैं. टेलीफोन नहीं होने के कारण कहीं भी आग लगने पर संबंधित लोग थाने में फोन करते हैं. वहां से अग्निशमन केंद्र के अधिकारी के प्राइवेट मोबाइल नंबर पर सूचना दिया जाता है.

इसके बाद आग बुझाने की गाड़ी घटनास्थल के लिए भेजी जाती है. इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है. इसके अलावा अधिकतर स्थानों पर अग्निशमन के वाहन पहुंचते-पहुचते वहां लगी आग अपनी विभिषिका दिखा चुका होता है.

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