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नयी सरकार को लेकर कुछ खुश, तो कई नाराज

किसी ने बिहार के लिए अच्छा तो किसी ने इसे लोकतंत्र के लिए घातक बताया सासाराम कार्यालय : राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही कोई स्थायी दुश्मन. यह उक्ति लोगों में काफी से चर्चित है. बावजूद इसके राज्य की वर्तमान राजनीतिक जोड़-तोड़ व गठबंधन की कार्रवाई ने हर आम व […]

किसी ने बिहार के लिए अच्छा तो किसी ने इसे लोकतंत्र के लिए घातक बताया
सासाराम कार्यालय : राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही कोई स्थायी दुश्मन. यह उक्ति लोगों में काफी से चर्चित है. बावजूद इसके राज्य की वर्तमान राजनीतिक जोड़-तोड़ व गठबंधन की कार्रवाई ने हर आम व खास को चर्चा करने को मजबूर कर दिया. दो दिनों से शहर में चर्चा का विषय राज्य की वर्तमान राजनीतिक उठा-पटक बनी हुई. चाय-पान की दुकानें हो या अन्य कोई भी स्थल. हर जगह राजद-भाजपा-जदयू की बातें हो रही हैं. किसने किसको धोखा दिया. कौन कितना स्वार्थी है.
कौन भ्रष्टाचारी है. कौन अवसर वादी है. आदि बहस का मुद्दा बना हुआ है. प्रभात खबर ने शुक्रवार को इस बदले राजनीतिक माहौल के संबंध में लोगों से बात की, तो विभिन्न तरह की प्रतिक्रिया सामने आयी. किसी ने कहा कि लालूजी अगर भ्रष्टाचारी थे, तो फिर नीतीशजी ने उनसे हाथ क्यों मिलाया था? किसी ने कहा कि भाजपा सत्ता के लिए हर स्तर पर जा सकती है. इसका उदाहरण बिहार में पेश हुआ. किसी ने कहा कि तीनों ने अपनी जनता को धोखा दिया है. भाजपा को नीतीश व लालू के विरोध में वोट दिया गया था. लालू-नीतीश को भाजपा के विरोध के लिए वोट दिया गया था. तीनों ने अपनी जनता को ठगा है. बहस जारी है.

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