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बदलाव : शराब परोसने वाले हाथ अब बांट रहे हैं खीर

अब उन्हें कोई शराबवाली नहीं बल्कि दूधवाली कहते हैं पूर्णिया : कल तब शराब परोसने वाले हाथ अब खीर बांट रहे हैं. यह बदलाव कुछ दिन पहले पूर्णिया शहर के लाइन बस्ती से शुरू हुई और अब बदलाव की यह संस्कृति गांवों में भी दिखने लगी है. यह बदलाव पूर्ण शराबबंदी के कानून के बाद […]

अब उन्हें कोई शराबवाली नहीं बल्कि दूधवाली कहते हैं

पूर्णिया : कल तब शराब परोसने वाले हाथ अब खीर बांट रहे हैं. यह बदलाव कुछ दिन पहले पूर्णिया शहर के लाइन बस्ती से शुरू हुई और अब बदलाव की यह संस्कृति गांवों में भी दिखने लगी है. यह बदलाव पूर्ण शराबबंदी के कानून के बाद शराब के पेशे में शामिल महिलाओं को वैकल्पिक रोजगार के रूप में मिनी डेयरी प्रोजेक्ट उपलब्ध कराने के बाद हुआ है.
बदलाव की बात सार्वजनिक तौर पर चर्चा का विषय तब बना जब शराब को तौबा करने वाली महिलाओं ने एक सत्संग समारोह में खीर वितरण शुरू किया. यह वाकया है श्रीनगर सिंघिया बस्ती की. वहां के 22 दलित महिलाओं ने उस गांव में भंडारा आयोजित कर सभी आगंतुकों को खीर खिलाया. यह भंडारा उस गांव में महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के अनुयायियों द्वारा विराट यज्ञ सम्मेलन में आयोजित किया गया था.
इस प्रकार भंडारा में दलित महिलाओं द्वारा खीर वितरण की अब चहुंओर चर्चा होने लगी. धर्मानुरागियों ने भी इसकी प्रशंसा की और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पूर्ण शराबबंदी एवं उसके कारण हो रहे सामाजिक बदलाव की सराहना की.
संतों ने माना कि समाज कल्याण की दिशा में जिस तरह सरकार के फरमान के बाद जिस तरह बदलाव का रूप सामने आया है उसे बरकरार रखने के लिए संतमत के लोगों को भी सदैव तत्पर एवं सक्रिय रहना चाहिए. धर्म प्रेमियों एवं सिंघिया के ग्रामीणों ने भी इस बदलाव के लिए वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करने की दिशा में पूर्णिया के डीएम पंकज कुमार पाल एवं जिला गव्य विकास पदाधिकारी सूबेदार सिंह की भी सराहना की. ग्रामीणों ने इन 22 महिलाओं को मिनी डेयरी के वित्तायन के लिए स्थानीय यूबीजीबी की सकारात्मक भूमिका को भी सराहा.
दलित महिलाओं की बढ़ी है शान
सिंघिया में दो दर्जन दलित परिवारों का रोजगार शराब बेचकर रोजी रोटी चलाना था. इस कारोबार से इसका परिवार किसी तरह चल जाता था, लेकिन सुकून नहीं था. शराब का कारोबार चोरी छिपे होता था. हमेशा पुलिस का डर बना रहता था. पुरुष तो घर से बाहर रहते थे. पुलिस की छापामारी का भय अलग होता था. उधर शराब पीने के लिए अक्सर रंगदार तरह के लोग अलग आते थे. दोतरफा परेशानी से दलित महिलाओं की झिझक हमेशा बढ़ी रहती थी. इससे इतर अपराध बोध का दबाव भी साये की तरह लगा रहता था. अब जब से शराब से नाता टूटा है और दूध से नाता जुड़ा है तब से इनकी शान बढ़ी है. अब इन्हें न पुलिस की छापामारी का भय है और न ही रंगदारों का घर पर आ धमकने का झमेला.
फल-फूल रहा दूध-दही का कारोबार
दलित महिलाओं के घर मिनी डेयरी के प्रोजेक्ट से सिंघिया गांव दूघ-दही के मामले में धनी हो गया है. वहां शराब बंद है. दूध -दही का कारोबार फल-फूल रहा है. शराब छोड़कर दूध -दही के कारोबार से जुड़ी अंजलि सोरेन, सुनीता टुडू, अनिता टुडू एवं महामय टुडू कहती हैं कि अब उन्हें कोई शराबवाली नहीं बल्कि दूधवाली कहते हैं. उन्होंने बताया कि अब उनके बच्चे भी शान से सर उठाकर समाज में चलते हैं. अब घीरे-धीरे बच्चों की मानसिकता में भी बदलाव आने लगा है. यहां की दलित महिलाएं कहती हैं कि अब उनकी मुख्य पेशा दूध -दही का कारोबार हो गया है.

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