बस पड़ाव. न कोई रहबर, न उम्मीद की रोशनी, हर तरफ है एक जैसी स्थिति
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चारों तरफ फैला है कूड़ा और कचरा
बस पड़ाव. न कोई रहबर, न उम्मीद की रोशनी, हर तरफ है एक जैसी स्थिति हर ओर गंदगी का अंबार, परिसर में बहती नालियों का पानी, बेमौसम जलजमाव की स्थिति, गंदगी के बीच घूमते जानवर, खुले में शौच व लघुशंका करते मजबूर यात्री यही है प्रमंडलीय बस पड़ाव की स्थायी पहचान. पूर्णिया : चारों तरफ […]
हर ओर गंदगी का अंबार, परिसर में बहती नालियों का पानी, बेमौसम जलजमाव की स्थिति, गंदगी के बीच घूमते जानवर, खुले में शौच व लघुशंका करते मजबूर यात्री यही है प्रमंडलीय बस पड़ाव की स्थायी पहचान.
पूर्णिया : चारों तरफ गंदगी का अंबार, परिसर में बहती नालियों का पानी, बेमौसम जलजमाव की स्थिति, गंदगी के बीच घूमते जानवर, खुले में शौच और लघुशंका करते मजबूर यात्री यही है प्रमंडलीय बस पड़ाव की स्थायी पहचान. इसी बदहाली के बीच यहां से हजारों यात्री गंतव्य के लिए प्रस्थान करते हैं. वहीं वाहन चालक बस एजेंट और परिवहन कार्य से जुड़े तमाम लोगों को ऐसे ही माहौल में हर दिन गुजारना मजबूरी बनी हुई है. विडंबना यह है कि इस बस पड़ाव से राजस्व प्राप्त करने में लगी संस्था जिला परिषद से लेकर जिला प्रशासन तक इसकी सुधि नहीं ले रहा है. अलबत्ता अब लोगों ने बेहतरी की उम्मीद छोड़ दी है और इस बदहाली को नियति भी मान चुके हैं.
बस पड़ाव में जमा होता है घरों का गंदा पानी
विभागीय निगरानी और उपेक्षा के कारण दुकानदारों के साथ-साथ बस पड़ाव से सटे मकानों से गंदा पानी भी बस पड़ाव में ही जमा होता है. एक तो बस पड़ाव में बने पुराने नाले ध्वस्त व जाम हो गये हैं, उपर से घरों का पानी जमा होने से बस पड़ाव के अंदर जलजमाव की स्थिति बनी हुई है. लिहाजा अधिक देर तक यहां खड़ा हो पाना भी आम लोगों के लिए मुश्किल है. कुल मिला कर पूरे बस पड़ाव की स्थिति नारकीय है जिससे यात्रियों को भारी परेशानी होती है.
राजस्व का केंद्र होने के बावजूद बदहाल
प्रमंडलीय बस पड़ाव के अंदर की स्थिति जिस कदर नारकीय बनी हुई है, वह संस्थागत उपेक्षा का उदाहरण है. विडंबना तो यह है कि विकास और जनता की मूलभूत सुविधा एवं स्वच्छता को लेकर जिला प्रशासन द्वारा अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन प्रमंडलीय बस पड़ाव की स्थिति की बेहतरी के लिए न तो कोई रहबर है और न कोई उम्मीद की रोशनी ही दिख रही है. बड़ा सवाल यह है कि जब प्रतिवर्ष लाखों रुपये बस पड़ाव से टैक्स के रूप में प्राप्त होता है तो उस लिहाज से सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध हो पा रही है.
यहां स्वच्छता की तसवीर धूमिल ही नहीं गायब है. हर तरफ कचरा पसरा है और कूड़ों के ढेर में जानवर विचरण करते रहते हैं. विवशता का आलम यह है कि इसी जिंदगी के बीच हर रोज हजारों यात्री सफर करने के साथ खाने-पीने और ठहरने की जोखिम उठा रहे हैं. वहीं सैकड़ों वर्षों से काम करने वाले एजेंट, कर्मचारी, ड्राइवर एवं मेकेनिकल कार्य करने वाले कारीगर इसी गंदगी के बीच दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजेहद करने को मजबूर हैं. इस हालात में बस पड़ाव के अंदर हर रोज सैकड़ों लोग विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं. स्थिति यह है कि सफाई और जलनिकासी की व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त होने के बाद जो हालात बने हैं, उससे बस पड़ाव की नारकीय स्थिति तो है ही, बस पड़ाव के अंदर सजी नाश्ते की दुकानें और होटलों आदि के कूड़े-कचरे और झूठन भी बस पड़ाव में ही नजर आते हैं.
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