पूर्णिया : 15 से 21 जनवरी जो सप्ताह अभी-अभी बीता है, सरकारी स्तर पर भूकंप सुरक्षा सप्ताह के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष इस सप्ताह की आहट केवल सरकारी विज्ञापन तक सीमित रही. सरकारी महकमे में शराबबंदी के समर्थन में मानव शृंखला की तैयारी की होड़ मची थी, लिहाजा भूकंप की बातें धरती के अंदर ही सिमट कर रह गयीं. यह बहस का विषय हो सकता है कि शराब और भूकंप में अधिक खतरनाक कौन है,
लेकिन इतना तो तय है कि भूकंपीय तबाही के निशाने पर रहने के बावजूद पूरे सीमांचल में इस प्राकृतिक आपदा के प्रति जागरूकता का अभाव है. वर्ष 1934 व 1988 एक त्रासदी भरे वर्ष के रूप में इतिहास के पन्ने में दर्ज है. वहीं वर्ष 2015 में भी 25, 26 एवं 27 अप्रैल को आये लगातार भूकंप के झटके को सीमांचल वासी भूले नहीं हैं, लेकिन भूकंप से बचाव के प्रति सीमांचलवासी पूरी तरह असंवेदनशील हैं. ऐसे में फिर एक बार महाप्रलय का गवाह सीमांचल को बनना पड़ जाये, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
भूकंप के क्या हैं कारण : भूंकप पृथ्वी के बाहरी परत में अचानक हलचल से उत्पन्न ऊर्जा के परिणामस्वरूप घटित होने वाली भूगर्भिक क्रिया है. भूगोलवेत्ता हैरी हैस के अनुसार, पृथ्वी के सबसे ऊपरी भूखंड को प्लेट कहा जाता है. सभी महाद्वीप इसी प्लेट पर स्थित हैं. प्लेटों का हमेशा प्रवाह होते रहता है. प्रवाह की वजह से दो प्लेट जब आपस में टकराते हैं, तो प्लेट के किनारे भूकंपीय घटना होती है. अधिकांश भूंकपीय घटना इसी वजह से होती है, जो काफी विनाशकारी होती है. इसके अलावा प्लेटों के दूर जाने से भी एवं रगड़ खाने से भी भूकंप आता है, जिससे कम क्षति होती है.
1934 का भूकंप आज भी है नजीर : 15 जनवरी, 1934 को दिन के 2:15 बजे दोपहर में भूकंप के रूप में बिहार व नेपाल के हिस्से में महाप्रलय आया था. रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता तब 8.4 आंकी गयी थी, जो महा भूकंप कहलाता है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, उस समय लगभग पांच मिनट तक भूकंप ने अपना तांडव दिखाया था और इस वजह से राज्य में सात हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इस भूकंप में सीमांचल के इलाके में घरों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा था. इसके अलावा कुएं और तालाब के ध्वस्त होने से पेयजल के लिए हाहाकार मच गया था. इसके बाद 1988 में भी आये भूकंप से सीमांचल में व्यापक नुकसान हुआ था.
जोन चार व पांच में स्थित है सीमांचल
पूर्णिया व कटिहार अधिक क्षति वाले इलाके
देश को भूकंपीय तीव्रता के आधार पर 05 क्षेत्रों में बांटा गया है. इसका आधार तीव्रता है, जिसकी पैमाइश सीस्मोग्राफ नामक यंत्र से होती है और इसकी तीव्रता की इकाई रिक्टर है. बिहार को तीन भूकंपीय जोन में बांटा गया है, जिसे सर्वाधिक क्षति वाला इलाका, अधिक क्षति वाला इलाका और मध्यम क्षति वाले इलाके में बांटा गया है. सीमांचल का अररिया व किशनगंज जोन 05 अर्थात सर्वाधिक क्षति वाले इलाके में शामिल है. पूर्णिया और कटिहार अधिक क्षति वाले इलाके में शामिल हैं. जाहिर है कि जोन 04 और जोन 05 में कभी भी भूकंप की वजह से बड़ी तबाही मच सकती है.
भवन निर्माण में वैज्ञानिक नजरिया जरूरी
भूकंपीय इलाके में भवन निर्माण में वैज्ञानिक नजरिया बरता जाना चाहिए. सबसे पहले भवन निर्माण की जगह पर मिट्टी की जांच होनी चाहिए. मिट्टी की भार उठाने की क्षमता के अनुरूप ही नींव का निर्माण होना चाहिए. लोड बियरिंग भवन की जगह फ्रेम स्ट्रक्चर पर आधारित भवन को तरजीह दी जानी चाहिए, क्योंकि विकास ऐसा हो जो आफत से बचाये, ऐसा न हो जो आफत बन जाये.
विनोद कुमार, सिविल इंजीनियर,
बेतरतीब व अवैज्ञानिक निर्माण कर रहा संकट को आमंत्रित
गांव सिमट रहे हैं और शहरों का विस्तार हो रहा है. लिहाजा यत्र-तत्र कंक्रीट की दीवारें खड़ी हो रही हैं. खास कर भू माफियाओं द्वारा जो नदी-नाले तक की जमीन बेची जा रही है, उस पर भी पक्के मकान खड़े हो रहे हैं. कल तक मजदूर रहे लोग राजमिस्त्री बन चुके हैं, जिन्हें वैज्ञानिक भवन निर्माण की कोई जानकारी नहीं है. जानकारों की मानें, तो आज भी इस इलाके में 80 फीसदी लोड बियरिंग भवनों का निर्माण हो रहा है, जो भूकंपीय क्षेत्र के लिए कतई सुरक्षित नहीं है. सीमांचल के इलाके में केवल फ्रेम स्ट्रक्चर आधारित भवन ही सुरक्षित माने जाते हैं. इसके अलावा लोग मकान बनाने से पहले मिट्टी की जांच भी नहीं कराते हैं. साथ ही भूकंपीय लिहाज से भी मकान निर्माण में कोई तैयारी नहीं की जाती है. कुल मिला कर शहर से गांव तक फैल रहे बेतरतीब कंक्रीटों के जाल और संभावित खतरे के प्रति जागरूकता का अभाव इस बात की ताकीद कर रहा है कि सीमांचल एक बार फिर महाप्रलय की दहलीज पर खड़ा है.