गणतंत्र दिवस पर रिलीज होगी ध्रुव द रीयल हीरो
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फिल्म बनाने के लिए बेच दिये थे पत्नी के गहने
गणतंत्र दिवस पर रिलीज होगी ध्रुव द रीयल हीरो भारत छोड़ो आंदोलन के नायक थे शहीद ध्रुव कुण्डु फिल्म के निर्माण में लग गये लगभग चार वर्ष पूर्णिया : हमने एक शाम चिरागों से सजा रखी है, शर्त लोगों ने हवा से लगा रखी है’ इसी जुनून और जज्बे का अक्स 26 जनवरी को गणतंत्र […]
भारत छोड़ो आंदोलन के नायक थे शहीद ध्रुव कुण्डु
फिल्म के निर्माण में लग गये लगभग चार वर्ष
पूर्णिया : हमने एक शाम चिरागों से सजा रखी है, शर्त लोगों ने हवा से लगा रखी है’ इसी जुनून और जज्बे का अक्स 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रदर्शित होने वाली डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘ ध्रुव द रीयल हीरो ‘ में नजर आयेगा और इस फिल्म के साथ ही फिल्म के निर्देशक दिलीप राज और नायक ओजस्वी के सपने भी साकार होंगे. गौरतलब है कि स्कूली छात्र ध्रुव कुण्डु की जीवन पर यह फिल्म आधारित है. ध्रुव 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेजों की गोली के शिकार हुए थे और सीमांचल के वीर सपूत के रूप में उनकी गाथा आज भी जगह-जगह सुनी और सुनायी जाती है.
दरअसल निर्देशक दिलीप राज बहरहाल पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं. हालांकि उनकी पृष्ठभूमि मुंबइया फिल्मों से भी जुड़ी रही है. सामचार संकलन के दौरान जब उन्हें पता चला कि अमर शहीद ध्रुव कुण्डु के बारे में स्कूली बच्चों को ही बहुत कम पता है, तो उन्होंने ध्रुव पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया. साधनविहीन दिलीप के लिए यह कवायद पत्थर से पानी निकालने से कम नहीं था, लेकिन बचपन से ही कुछ अलग करने की जिद रखने वाले दिलीप अपने सपने को मरने नहीं दिये और लगातार सपने को साकार करने में जुटे रहे. बकौल दिलीप ‘ जिस दिन फिल्म बनाने का निर्णय लिया, उस दिन महज 1500 रुपये जेब में थे ‘.
वर्ष 2012 में फिल्म निर्माण शुरू हुआ
वर्ष 2012 में फिल्म निर्माण का काम शुरू हुआ. सबसे अधिक परेशानी ध्रुव के जीवन इतिहास से जुड़े तथ्यों को इकट्ठा करने में हुई. दिलीप कहते हैं ‘ हैरानी इस बात की है कि पूर्णिया साहित्यकारों की भूमि है. बावजूद आज तक ध्रुव के जीवनवृत्त को इकट्ठा करने की कोशिश नहीं की गयी ‘. उसके बाद नायक के चयन के लिए उन्हें खासा पसीना बहाना पड़ा. अंतत: पत्रकार राजेश शर्मा के पुत्र ओजस्वी के रूप में नायक की तलाश पूरी हुई. उसके बाद सबसे बड़ी समस्या पैसे का जुगाड़ था. दिलीप ने अपने सपने को पूरे करने के लिए बीबी के सोने के जेवर भी बेच डाले. बावजूद पैसे की कमी दूर नहीं हुई. इसी दौरान जब वे फिल्म की एडीटिंग के लिए वर्ष 2013 सितंबर में आर्थिक परेशानी के दौर से गुजर रहे थे और यत्र-तत्र भटक रहे थे, तो मौर्य कॉम्प्लेक्स के पास भीषण दुर्घटना के शिकार हुए और फिल्म ठंडे बस्ते में चली गयी. लगभग दो साल बाद अस्पताल से मुक्त होने के बाद वे फिर अधूरे काम को पूरा करने में जुट गये. फिल्म पूरी तरह तैयार है और दिलीप को फिल्म के रिलीज होने का इंतजार है. दिलीप कहते हैं ‘ मुंबई में मसाला फिल्मों के निर्माण से भी जुड़ा रहा हूं, लेकिन जो सुकून ध्रुव पर फिल्म बना कर मिला है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है ‘ .
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