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गेट वे ऑफ नॉर्थ-ईस्ट पर शौच का जाम

िवडंबना. शौचालय के अभाव में हर रोज हजारों लोग खुले में करते हैं शौच गुलाबबाग जीरो माइल िजलों व राज्यों को आपस में जोड़ता है. मगर इसके िनर्माण के बाद से ही यहां की स्थिति पर िकसी की नजर नहीं है. हर रोज यहां हजारों राहगीर खुले में शौच को िववश हैं. पूर्णिया : सरकार […]

िवडंबना. शौचालय के अभाव में हर रोज हजारों लोग खुले में करते हैं शौच

गुलाबबाग जीरो माइल िजलों व राज्यों को आपस में जोड़ता है. मगर इसके िनर्माण के बाद से ही यहां की स्थिति पर िकसी की नजर नहीं है. हर रोज यहां हजारों राहगीर खुले में शौच को िववश हैं.
पूर्णिया : सरकार के स्वच्छता और खुले में शौच मुक्त अभियान से वंचित गेटवे ऑफ नॉर्थ ईस्ट गुलाबबाग का जीरोमाइल का इलाका आज भी उपेक्षित है. यहां हर रोज तकरीबन दो हजार बच्चे, महिला व पुरुष खुले में शौच करने को मजबूर हैं. वर्ष 2006 के बाद इस समस्या पर किसी की नजर नहीं पड़ी है. विडंबना तो यह है कि स्थानीय कुछ नेताओं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अधिकारियों को इस समस्या से अवगत कराने के बावजूद पहल नदारद है बल्कि स्वच्छ और खुले में शौच मुक्त शहर व समाज बनाने के दम भरती व्यवस्था भी नींद से नहीं जग रही है. फलाफल यह है कि पुरुष जहां-तहां शौच कर मुक्ति पा लेते हैं मगर महिलाएं शर्मिंदगी से जूझती नित्य कर्म करती है.
सार्वजनिक जगहों पर नहीं बन रहा शौचालय : यह दीगर बात है कि सरकार और सरकारी संस्था व अधिकारी स्वच्छता अभियान की कसमें खाते और खिलाते दिख रहे हैं. शौचालय निर्माण का कार्य गांव से लेकर शहरी वार्डों तक निर्बाध गति से जारी है. लेकिन सार्वजनिक जगहों पर जहां यात्री, व्यापारी, किसान, वाहन चालक, मजदूर व दुकानदार हजारों की संख्या में जुटते हैं वहां शौचालय निर्माण को लेकर न तो कोई पहल हो रही है न निर्माण. स्थिति यह है कि यहां की अवाम परेशान है और व्यवस्था अपनी राग अलाप रहा है.
2006 के बाद नहीं बना शौचालय : बहुचर्चित कृषि मंडी से सटे तथा राजधानी पटना, नेपाल व बंगाल के रास्तों को समेटे इस चौराहे पर वर्ष 2006 तक सुलभ इंटरनेशनल प्रा कंपनी का दस कमरों का सुलभ शौचालय था. यहां बस टर्मिनल होने के कारण यात्री सुबह, शाम बस पकड़ने आते थे बल्कि बाजार में आनेवाले किसान, मजदूर व व्यापारी यहीं से शौच क्रिया कर बाजार जाते थे. वर्ष 2006 में फोरलेन के निर्माण के वक्त सड़क चौड़ा करने के समय इसे तोड़ दिया गया. तब से अब तक इस चौराहे पर शौचालय को लेकर आवाज उठती रही है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है.
बदली है सूरत बढ़ी है जरूरत पर वही हुई व्यवस्था : फोर लेन के निर्माण के बाद कई परिवर्तन हुए. ईस्ट और वेस्ट की दूरी घटी और व्यापारिक प्रगति के साथ कारोबार बढ़ा बल्कि सवारी गाड़ियों के खुलने और ठहरने की संख्या में भी वृद्धि हुई. साथ ही खाने से लेकर पंक्चर, मोटरपार्ट्स, लेथ इत्यादि की सैकड़ों दुकानें सजी. देखते-देखते दिल्ली, पंजाब, जम्मू से लेकर बंगाल और असम व भुटान का गेटवे ऑफ टर्निंग प्वाइंट बन गया गुलाबबाग का जीरो माइल चौराहा. यही कारण है कि यहां प्रतिदिन हजारों लोग जुटते हैं. एक दशक में चौराहे की सीरत और सूरत तो बदली लेकिन शौचालय की समस्या आज भी बरकरार है.
तकरीबन दो हजार लोग खुले में करते हैं शौच : दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, यूपी या फिर बंगाल, असम या भुटान से आने वाले वाहन चालकों का रात्रि पड़ाव इसी चौराहे के आसपास होता है बल्कि सैकड़ों लग्जरी बसें जो राजधानी पटना, कोलकाता, असम व नेपाल एवं प्रदेश के अन्य जिलों तक जाती है. सैकड़ों लोग प्रतिदिन रूकते हैं वही मंडी आने वाले हजारों मजदूर, किसान व व्यापारियों की भीड़ सुबह शाम यही से मंडी तक जाती. शौचालय के अभाव में इसमें से अधिकतर लोग खुले में शौच कर निवृत्त होते हैं वही महिलाओं की परेशानी आम आदमी को झकझोरती है.
हजारों की उपस्थिति पर महज तीन शौचालय : बहुचर्चित कृषि व आर्थिक मंडी के तकरीबन चार किलोमीटर के रेडियस में महज तीन सुलभ शौचालय है जिसमें दो मंडी समिति के अंदर एक सोनौली चौक के नजदीक. लेकिन इनकी स्थिति यह है कि यहां केवल शौचालय का ढांचा है जिसके चलते यात्री व चालक, किसान तथा व्यापारी यहां जाने से बेहतर खुले में शौच करना बेहतर समझते हैं. दुख तो इस बात का है कि जिस शहर में हजारों लोग प्रतिदिन करोड़ों का कारोबार करते हैं वहां एक अदद शौचालय को लेकर सभी सिस्टम बंद है और दावों के बावजूद लोग खुले में शौच को मजबूर.
अधिकारियों से मिल कर होती रही है चर्चा
विडंबना तो यह है कि वर्ष 2013-14 में जब गुलाबबाग जीरो माइल से मरंगा तक की सड़क का चौड़ीकरण हो रहा था तब तत्कालीन एसडीएम राजकुमार से स्थानीय लोगों ने मजबूरी व्यक्त की थी और वस्तुस्थिति से अवगत कराया था बल्कि दिसंबर 2015 में बाकायदा व्यवसायी महासंघ अध्यक्ष बबलू चौधरी, जदयू नेता अजीत भगत, राजद के सुनील सन्नी, भरत भगत इत्यादि ने नगर निगम के नगर आयुक्त से मिल कर व्यथा व्यक्त की थी और आश्वासन भी मिला था लेकिन वर्ष गुजरने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है.
आम आदमी त्रस्त, जगह बना है बहाना
हालात यह है कि आम आदमी त्रस्त है और बहानों का दौर जारी है. दरअसल वर्ष 2013-14 में भी स्थानीय लोगों को आश्वासन मिला था. वही 2015 में नगर निगम द्वारा मॉडल शौचालय के निर्माण का वायदा किया गया लेकिन इस शर्त पर कि शौचालय के लिए स्थानीय लोग जगह उपलब्ध करावे. जबकि गुलाबबाग जीरो माइल के आसपास सरकारी जमीन के साथ पीडब्ल्यूडी की जमीन कई जगहों पर उपलब्ध है बल्कि सरकारी व विभागीय पहल के अभाव में अतिक्रमण का शिकार है.

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