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बीच शहर में बेपरदा होते हैं लोग

लापरवाही. पहल के अभाव में कूड़े की ढेर पर है चलंत शौचालय हैरानी की बात यह है कि बीते छह माह में चलंत शौचालय के लिए न तो कोई संवेदक मिला और न ही इसके लिए चालक ही मिल पाया है. लिहाजा एक ठोस पहल के अभाव में चलंत शौचालय शोभा की वस्तु बनी हुई […]

लापरवाही. पहल के अभाव में कूड़े की ढेर पर है चलंत शौचालय

हैरानी की बात यह है कि बीते छह माह में चलंत शौचालय के लिए न तो कोई संवेदक मिला और न ही इसके लिए चालक ही मिल पाया है. लिहाजा एक ठोस पहल के अभाव में चलंत शौचालय शोभा की वस्तु बनी हुई है.
पूर्णिया : आम जनता से टैक्स के रूप में वसूली गयी राशि का दुरुपयोग किस कदर होता है, इसका उदाहरण नगर निगम बना हुआ है. छह माह पहले लाखों की लागत से चलंत शौचालय की खरीद हुई थी, लेकिन विडंबना यह है कि आज यह चलंत शौचालय कूड़े की ढेर पर खड़ा है. हैरानी की बात यह है कि बीते छह माह में चलंत शौचालय के लिए न तो कोई संवेदक मिला और न ही इसके लिए चालक ही मिल पाया है.
लिहाजा एक ठोस पहल के अभाव में चलंत शौचालय शोभा की वस्तु बनी हुई है और दूसरी ओर आम लोग खुले में शौच को मजबूर हैं. इस पूरे प्रकरण में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि जनता को सुविधा दिलाने के मामले में चुने गये जनप्रतिनिधि भी खामोश बने रहते हैं. स्पष्ट है कि इस प्रकरण में न केवल नगर निगम के अधिकारी और उच्चपदस्थ लोग जिम्मेवार हैं, बल्कि तटस्थ रहने वाले जनप्रतिनिधि भी इस लूंज-पूंज व्यवस्था के लिए दोषी हैं.
2015 में खरीदा गया था चलंत शौचालय
प्रमंडलीय मुख्यालय में बढ़ती भीड़ और शहर में स्वच्छता को लेकर वर्ष 2015 में स्वच्छता मिशन के तहत दो चलंत शौचालय नगर निगम द्वारा खरीदा गया था. तब स्वच्छ भारत मिशन का अभियान चरम पर था और हर विभाग तथा हर आदमी स्वच्छता अभियान से खुद को जोड़ने के लिए बेताब था. नगर निगम ने भी स्वच्छता अभियान चलाया. हालांकि यह कितना कारगर साबित हुआ इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महीने बाद भी चलंत शौचालय शहरवासियों को समर्पित नहीं हो सका है. जाहिर है कि जनता के पैसे का यह खुला दुरूपयोग ही माना जा सकता है.
सबने किया वादा, किसी ने नहीं की पहल
विडंबना तो यह है कि शहर वासियों को स्वच्छता मिशन से जुड़ने का संदेश सबने दिया, लेकिन इसके लिए किसी ने सकारात्मक पहल किसी ने नहीं की. जहां एक तरफ नगर निगम ने पैसे खर्च करने के बावजूद कोई ठोस पहल नहीं की वही जनप्रतिनिधियों ने भी अपने वायदे को नहीं निभाया. गौरतलब है कि किसी के दृष्टि पत्र में चलंत शौचालय शामिल था तो किसी ने शहर में शौचालय निर्माण को लेकर वादे किये थे. लेकिन सारे वादे चुनावी साबित हुए. दुखद यह है कि आम आदमी खुले में शौच को विवश है और सिस्टम के साथ जनप्रतिनिधि भी अपनी धुन में मस्त है.
कब तक छले जायेंगे लोग
प्रमंडलीय मुख्यालय के आस-पास सदर अस्पताल, खुश्कीबाग, गुलाबबाग, जीरोमाइल, इत्यादि सार्वजनिक जगहों पर शौचालय के अभाव में राहगीर, व्यापारी, दुकानदार, छात्र-छात्राओं एवं आम आदमी को शौच की आवश्यकता पर बेपर्द होना पड़ता है. स्थिति यह है कि इन जगहों पर प्रतिदिन हजारों लोगों का आना जाना है लेकिन शौचालय नहीं है. कई बार निगम को इसकी सूचना के बावजूद न तो यह शौचालय निर्माण का प्रयास हुआ न चलंत शौचालय की व्यवस्था हुई है. लिहाजा इस परेशानी से रू-ब-रू हुए लोग निगम की नकारात्मक छवि मन में लिए वापस अपने घर लौट रहे हैं. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इस मनमानी की हद है या नहीं और आम आदमी कब तक इस प्रकार छले जाते रहेंगे.
अब चालक बना है बहाना
नगर निगम की इससे बड़ी उदासीनता और क्या हो सकती है कि लाखों की खर्च कर खरीदा गया चलंत शौचालय अब सड़ रहा है. बंद पड़ा इंजन खराब होने की स्थिति में है. लेकिन इस दिशा में नगर निगम कोई पहल करने के मूड में भी नहीं दिख रहा है. हां इस संबंध में दो टूक जवाब यह है कि कोई संवेदक नहीं मिलने के कारण निगम चालक की तलाश कर रही है. चालक मिलने पर इसे निगम द्वारा खुद संचालित कराया जायेगा. लेकिन इस बात में भी कोई दम नहीं दिखता है, क्योंकि निविदा के बाद तीन महीने से अधिक बीत गये, लेकिन चालक के लिए कोई विज्ञापन नहीं निकाला गया है.
संचालन के लिए नहीं मिला संवेदक
बीते छह महीने में चलंत शौचालय को लेकर महज एक निविदा नगर निगम द्वारा निकाली गयी. खास बात यह रही कि चलंत शौचालय के संचालन के लिए कोई संवेदक सामने नहीं आया. जानकारों की मानें तो निविदा में रेट ज्यादा अंकित होने के कारण किसी ने टेंडर नहीं गिराया. वहीं यह भी चर्चा है कि निविदा से हट कर भी कुछ कारण थे,
जिसकी वजह से कोई संवेदक सामने नहीं आया. इसे इच्छाशक्ति का अभाव ही कहा जा सकता है कि निगम ने दूसरी बार निविदा निकालने की आवश्यकता नहीं समझी. इसके अलावा आम लोगों की सुविधा से बेफिक्र निगम ने खुद भी इसे संचालित करने की आवश्यकता नहीं समझी. जबकि बड़ी आसानी से इसे निगम के स्तर पर भी संचालित किया जा सकता था.

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