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इलाज करा लिये, तो आपकी किस्मत

पूर्णिया : यह बानगी है पूर्वोत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल पूर्णिया का सदर अस्पताल का. ओपीडी से लेकर आपातकालीन सेवा, मेटरनिटी वार्ड चारों ओर अव्यवस्था व बदइंतजामी का आलम पसरा हुआ है. यहां के ओपीडी में मरीजों की भीड़ में बेहताशा लगती है. यहां लगने वाली भीड़ अस्पताल की बदइंतजामी का पोल खोलने के […]

पूर्णिया : यह बानगी है पूर्वोत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल पूर्णिया का सदर अस्पताल का. ओपीडी से लेकर आपातकालीन सेवा, मेटरनिटी वार्ड चारों ओर अव्यवस्था व बदइंतजामी का आलम पसरा हुआ है.
यहां के ओपीडी में मरीजों की भीड़ में बेहताशा लगती है. यहां लगने वाली भीड़ अस्पताल की बदइंतजामी का पोल खोलने के लिए काफी है. यहां पहुंचने वाले तमाम मरीज सुबह से शाम तक भागम-भाग व धक्का-मुक्की के बीच इलाज कराने की कोशिश में दिखते हैं. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जिसका जोर, उसका इलाज वाली कहावत चरितार्थ होती है. मरीजों के इस पीड़ा का स्थायी इलाज फिलहाल दूर -दूर तक नहीं दिख रहा है.
लगती है लंबी कतार
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सदर अस्पताल की हर सेवा से अधिक ओपीडी में मरीजों की भीड़ लगती है. यहां रोजाना औसतन एक हजार से अधिक मरीज जिले के विभिन्न प्रखंडों से पहुंचते हैं. सबों के मन में उम्मीद होती है कि यहां उसके मर्ज का इलाज संभव हो जायेगा.
लेकिन जैसे ही निबंधन के कतार पर खड़ा होता है. उसकी उम्मीदें जवाब देने लगती है. सुबह से शाम तक लंबी-लंबी कतारों के बीच इलाज के आस में खड़े होते हैं. लेकिन ओपीडी का समय बीतते ही मायूसी के साथ बिना इलाज कराये बैरंग वापस लौटने की मजबूरी देखते ही बनती है. अस्पताल प्रबंधन मरीजों के इस दर्द से अनजान बनी हुई है.
भीड़ के साथ ही बढ़ जाती है धक्का-मुक्की
ओपीडी में निबंधन से लेकर जांच तक धक्का मुक्की की स्थिति तो बनी रहती ही है. इसके बीच भी इस काउंटर से उस काउंटर तक भागम-भाग की स्थिति बनी रहती है. यदि कोई मरीज भागम भाग में किसी भी जांच में चूक गया तो उसे अब दूसरे शिफ्ट की प्रतीक्षा में बैठना पड़ता है.
कुल मिला कर एक मरीज का एक दिन इसी प्रक्रिया में बीत जाता है. बाहर से आने वाले मरीज तो प्रथम शिफ्ट में किसी प्रकार निबंधन करा लेते हैं लेकिन काउंसेलिंग के लिए दूसरे शिफ्ट की प्रतिक्षा में रहना पड़ता है. इस प्रकार इन मरीजों को दो दिन का चक्कर इलाज कराने में लग जाता है. अस्पताल प्रबंधन की इस बदइंतजामी के कारण इस प्रतिष्ठित अस्पताल के शाख को गहरा धक्का लग रहा है. लिहाजा लोग अब यहां इलाज के लिए आने से कतराने लगे हैं.
कलर डिस्प्ले सिस्टम भी हुआ फेल
पिछले वर्षों में अस्पताल की भीड़ नियंत्रित करने के उद्देश्य से लाखों रुपये खर्च कर क्यू मैनेजमेंट सिस्टम स्थापित किया गया था. इस सिस्टम को लगाने में तत्कालीन डीएम मनीष कुमार वर्मा दिलचस्पी दिखाई थी. इस सिस्टम के तहत लोग निबंधन के बाद आराम से ओपीडी के आगे लगे कुर्सी पर बैठ कर कलर डिस्प्ले में अपनी बारी की प्रतिक्षा करते थे. बिना किसी धक्का -मुक्की के मरीज अपना इलाज करा कर घर वापस चले जाते थे.
लेकिन अफसोस इस बात का है कि लगने के कुछ महिनों के बाद यह सिस्टम पूरी तरह से फेल हो गया. जिसको ठीक कराने की अब तक कोई कोशिश ही नहीं की गयी. लाखों के लागत से यह सिस्टम कचरे के ढेर पर पड़ा है. ओपीडी के दीवार लगे खराब कलर डिस्प्ले अस्पताल के बदइंतजामी का रोना रो रही है.

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