पूर्णिया : नगर निगम की स्थापना के बाद कई बार निगम का भूगोल बदला, लेकिन शहर से सटे वार्ड संख्या सात एवं चार से सटे स्लम बस्ती ओसी टोला और सिपाही टोला मुसहरी की सूरत दशकों बाद भी नहीं बदल सकी है. करीब 300 घरों की इस बस्ती के गरीबों को दशकों बाद भी मूलभूत सुविधा तक मयस्सर नहीं हो सकी है.
यहां पेयजल के लिए लगे दो चापाकल तो है, लेकिन महीनों से खराब पड़े हैं. सड़क के नाम पर टूट कर बिखरी ईंट सोलिंग बदहाली की कहानी बयां कर रही है तो कच्ची सड़क से उड़ती धूल विकास के सच को उजागर कर रहा है. रही-सही कहानी बांस-बल्ले के ऊपर दौड़ती बिजली बयां कर रही है. निगम चाहे विकास के कितने ही दावे कर लें,
लेकिन इस बस्ती में इंदिरा आवास तथा अन्य योजनाओं के तहत अब तक किसी को मकान मयस्सर नहीं है. इस बस्तियों में रहने वालों का सूरत-ए-हाल यह है कि ये रहते तो शहर में है, लेकिन यहां की सूरत सुदूर गांवों से भी बदतर है. अफसोस की बात तो यह है कि निगम विकास मद में प्रतिवर्ष करोड़ों खर्च करता है.
सड़कों, नालों का जाल बिछाने और शहर को सुसज्जित तथा मॉडल शहर बनाने का दम भरता है, लेकिन जिला मुख्यालय एवं नगर निगम से सटे इस स्लम बस्ती में रहने वालों को अब तक शहरी सुविधा मिलना तो दूर मूलभूत सुविधा भी मयस्सर नहीं है. हालांकि यहां संवर्धन सामूहिक विकास समिति कार्यरत है.
लेकिन इस समिति द्वारा भी महज एक सप्ताह पहले कुछेक जगहों पर शौचालय निर्माण कार्य आरंभ कराया गया है. ढूंढ़ने से नहीं मिलते हैं पक्का मकान तकरीबन 300 परिवारों के इस टोले में पक्का मकान ढूंढ़ने से भी नहीं नजर आता है. गलती से एक- आध अर्धनिर्मित मकान नजर भी आते हैं तो हाड़तोड़ मेहनत के बाद जोरी गयी ईंट होती है,
जो कभी मकान में तब्दील नहीं हो पाता है. लिहाजा ईंट की दीवार पर छत का आवरण इस गरीब बस्ती के लोगों के लिए आज भी सपना ही बना हुआ है. खास बात यह है कि दो वार्डों के छोर पर बसे इस बस्ती में रहने वाले अधिकांश लोग अनुसूचित जाति-जनजाति से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन राजीव आवास हो या फिर अन्य आवास योजना का लाभ, इन्हें अब तक नसीब नहीं हुआ है. पेयजल व्यवस्था नदारद यूं तो आम लोगों तक शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं. लेकिन नगर निगम के स्लम बस्ती के लिए सरजमी पर कोई योजना दिखाई नहीं देती है. 300 परिवार के पेयजल के लिए इस स्लम बस्ती में महज 02 चापाकल ही नसीब है. लेकिन विडंबना यह है कि वह भी महीनों से खराब होकर बेकाार पड़ा है.
हैरानी तो इस बात की है कि स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर निगम तथा प्रशासनिक स्तर के किसी भी पदाधिकारी ने इस स्लम बस्ती के गरीबों तक पेयजल पहुंचाने या इसकी वैकल्पिक व्यवस्था की सुध तक नहीं ली है. बांस-बल्ले के सहारे जलती है बिजली विद्युत सुविधा की बात करें तो कहीं से भी प्रतीत नहीं होता है कि यह इलाका नगर निगम का हिस्सा है. यहां जुगाड़ तकनीक से बिजली पहुंची है, जो बांस-बल्ले के सहारे लोगों तक पहुंच रही है. एक तरफ जहां द्रुत गति से शहर और गांवों में विद्युतीकरण कार्य जारी है, हर जगह बिजली के खंभे, तार, ट्रांसफॉर्मर लग रहे हैं, वहीं इस बस्ती के लोगों तक अभी भी यह सुविधा नहीं पहुंच पायी है. अलबत्ता लोग बांस के सहारे तार खींच घरों में बल्ब जलाने को विवश हैं. कच्ची व टूटी सड़क की नहीं बदली सूरत कहने को तो वार्ड संख्या 07 एवं 04 दशकों से निगम का हिस्सा है. लेकिन यहां की स्थिति गांव से भी बदतर है.
पेयजल, भवन व बिजली तो दूर एक अदद सड़क की भी सूरत नहीं बदल सकी है. यहां तक जाने के लिए पहले तो कच्ची सड़क मिलती है, फिर बस्ती में कुछ दूर तक वर्षों पहले बनी ईंट सोलिंग सड़क है, जो टूट कर बिखरी पड़ी है. हद तो यह है कि जहां शहरी विकास योजना, मुख्यमंत्री सड़क योजना एवं अन्य योजनाओं के तहत वार्डों, मुहल्लों में सड़कें बन रही है,
इसके बावजूद यहां के गरीब लोगों को सड़क नसीब नहीं हो पायी है. टिप्पणी सिपाही टोला मोड़ से तीन किलोमीटर सड़क स्टेट प्लान के तहत बनाने हेतु संचिका विभाग को भेजी गयी है. शौचालय निर्माण जारी है. शीघ्र ही स्लम बस्ती में सभी सुविधा मुहैया करायी जायेगी. सुरेश चौधरी, नगर आयुक्त,