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बेबस यात्री, लचर व्यवस्था : चाय की चुस्की और गुटखे की गर्मी के बीच ठंड से निजात पाते हैं यात्री

बेबस यात्री, लचर व्यवस्था : चाय की चुस्की और गुटखे की गर्मी के बीच ठंड से निजात पाते हैं यात्री पूर्णिया : शाम ढलते ही ठंड सड़क से लेकर सार्वजनिक जगहों तक अपने तल्ख तेवर दिखाने लगता है. इसका प्रतिकूल प्रभाव आम जनजीवन पर भी दिखने लगा है. वहीं इस दिशा में प्रशासनिक बेरुखी अभी […]

बेबस यात्री, लचर व्यवस्था : चाय की चुस्की और गुटखे की गर्मी के बीच ठंड से निजात पाते हैं यात्री

पूर्णिया : शाम ढलते ही ठंड सड़क से लेकर सार्वजनिक जगहों तक अपने तल्ख तेवर दिखाने लगता है. इसका प्रतिकूल प्रभाव आम जनजीवन पर भी दिखने लगा है. वहीं इस दिशा में प्रशासनिक बेरुखी अभी भी बरकरार है. सिसकती पछुआ हवा के साथ सूई चुभोती ठंड का दर्द शनिवार को पूर्णिया जंक्शन पर यात्रा करने पहुंचे यात्रियों के चेहरों पर दिखा.

न अलाव की व्यवस्था दिखी और न ही ठंड से राहत के लिए कोई दूसरे उपाय. ऐसे में यात्री चाय की चुस्की और गुटखे की गर्मी से ट्रेन आने तक का इंतजार करते देखे गये. यात्रियों की संख्या में आ रही गिरावटबढ़ती ठंड के कारण रात्रि में सफर करने वालों की संख्या इन दिनों कम हुई है. केवल वैसे यात्री ही सफर करते दिख रहे हैं,

जिनके लिए सफर करना मजबूरी मात्र है. प्रशासन द्वारा समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण ठंड में ट्रन का इंतजार मुश्किल हो रहा है. ऐसे में चाय और गुटखे से लोग किसी प्रकार ठंड से राहत पाने की जुगाड़ में दिख रहे हैं. वही इसके लिए उन्हें अपनी जेब भी ढ़ीली करनी पड़ रही है. सबसे अधिक रेल यात्री मजदूर श्रेणी के हैं,

जो दो दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में दिल्ली, पंजाब व अन्य प्रदेशों के लिए पलायन कर रहे हैं. मजदूर वर्ग के यात्रियों की संख्या अधिकठंड का मौसम है और अचानक पारे में भारी गिरावट आयी है. ऐसे में उच्च व मध्यम वर्ग के लोग सफर करने से कतरा रहे हैं. रेल यात्रियों में सबसे अधिक संख्या मजदूर वर्ग की है.

यात्रियों की परेशानी यह है कि ठंड के बावजूद खुले आसमान अथवा फर्श पर ठीठुरते हुए ट्रेन का इंतजार करना पड़ रहा है. गौरतलब है कि घने कोहरे के कारण अधिकतर ट्रेनें अपने निर्धारित समय से काफी देरी से चल रही हैं. ऐसे में यात्रियों की मुसीबत और भी अधिक बढ़ जाती है. वही रेल प्रशासन द्वारा अब तक अलाव की व्यवस्था नहीं की गयी है.

सफर तो केवल मजबूरी में. दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में घर छोड़ प्रदेश जाने वाले गरीबों के लिए तल्ख होकर बरसती ठंड की मार भी पेट की भूख के आगे कम पड़ रही है.

पूर्णिया जंक्शन पर सीमांचल पकड़ने आये बनमनखी निवासी रामानंद दास, विजय महतो, जलालगढ़ के शिवानंद, शिवराम मेहता आदि ठंड और कुहासे की मार से बचने के लिए रेल फुट ओवर ब्रिज के नीचे दुबके दिखे. पूछने पर कहा ‘ साहब, इतनी ठंड में भला कौन सफर करना चाहेगा. पेट की मजबूरी ना हो तो कोई भी इस ठंड में घर से बाहर ना निकले ‘.

टूटी खिड़कियों से आती हवा करती है हलकान कटिहार जोगबनी पैसेंजर रात 08:25 बजे जंक्शन के दो नंबर प्लेटफॉर्म पर रूकी और जोगबनी कटिहार पैसेंजर तीन नंबर पर. इन ट्रेनों से यात्रा कर प्लेटफॉर्म पर उतरने वाले यात्रियों में कई स्याह पड़े चेहरों के साथ कांपते व ठिठुरते ट्रेन से उतरे.

बरसौनी निवासी सुदाम राय के साथ पोखरिया के राजन हंसदा का विमल और पूर्णिया स्थित रामबाग के रामदेव शर्मा भी थे. बताया कि रेलवे प्लेटफॉर्म पर तो व्यवस्था नदारद है ही. इससे भी अधिक परेशानी सफर के दौरान रेल बोगियों की टूटी खिड़कियां हैं. खिड़कियों से सनसनाती हवा सीधा शरीर को बेध जाती है.

ऐसे में सफर करना मुश्किल है. सीट के अभाव में फर्श बना बिछावन रात्रि यात्रा को लेकर जंक्शन पहुंचे यात्री आरक्षण काउंटर, टिकट काउंटर, प्रतीक्षालय एवं प्लेटफॉर्म के फर्श पर सोये हुए थे. हालांकि महिला एवं पुरुष प्रतीक्षालय खुले हुए थे, लेकिन सीटों की कमी के कारण मारक ठंड से बचने के लिए फर्श पर लेट कर लोग समय काटने को मजबूर दिखे.

वहीं दूसरी तरफ प्लेटफॉर्म नंबर दो और तीन पर बने शेड के अंदर सीटों के कम पड़ जाने के कारण खुले आसमान के नीचे भी यात्री ठिठुरते रहे. नहीं दिखी अलाव की व्यवस्था शनिवार की रात यात्रियों के लिए थोड़ी राहत भरी थी.

ऐसा इसलिए कि सभी गाडि़यां समय से आयी. हालांकि ठंड कम नहीं थी. रात 08 बजे के बाद कोहरे ने जंक्शन को पूरी तरह अपी आगोश में ले लिया. वही पछिया हवा के झोकों से लोग कंपकपाने लगे. जंक्शन पर पूर्व से मौजूद यात्रियों से लेकर ट्रेनों से उतरने वाले सभी यात्री ठंड से हलकान थे. लेकिन अलाव की व्यवस्था न तो जंक्शन के अंदर दिखी और ना ही बाहर.

ठंड से बचाव को लेकर कोई व्यवस्था नहीं रहने के कारण यात्री काफी परेशान दिखे. वही इस बाबत कोई अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था.

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