सामाजिक समरसता का त्योहार है महापर्व छठ पूर्णिया. लोक आस्था का महापर्व छठ सामाजिक समरसता का त्योहार भी है. इसका भौगोलिक दायरा अब बिहार और उत्तर प्रदेश से विस्तृत होता हुआ कश्मीर से कन्याकुमारी और सात समंदर पार तक जा पहुंचा है. इस फैलाव की वजह इस पर्व में निहित उद्देश्य और भावना है. लोक आस्था का यह पर्व प्रकृति की पूजा है और शुद्धता और पवित्रता का संगम के साथ-साथ व्रती और समाज का भी संगम है. इस पर्व में दूरगामी संदेश भी निहित हैं. पौराणिक है सूर्य उपासना की परंपरा छठ अर्थात सूर्य की पूजा संभवत: महाभारत काल में आरंभ हुई थी. कहते हैं कि एक बार नारद मुनि की शिकायत पर भगवान कृष्ण अपने पुत्र शाम्ब पर क्रोधित हो गये और उन्होंने शाप दे दिया तो शाम्ब कुष्ठ का शिकार हो गया. इस कुष्ठ से निजात पाने के लिए शाम्ब ने छठ व्रत किया. इससे शाम्ब को कुष्ठ से निजात भी मिली थी. आम लोगों की भी धारणा है कि सूर्य उपासना से पुत्र की प्राप्ति और सफेद दाग की समाप्ति होती है. निहित है सूर्य के प्रति कृतज्ञता का भाव ऋग्वेद में सूर्य उपासना की चर्चा मिलती है. गायत्री मंत्र तो सूर्य को ही समर्पित है. वस्तुत: छठ सूर्य की पूजा है. यूं तो पूरे देश में सूर्य की पूजा अलग-अलग ढंग से होती है लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश तथा देश के अन्य कुछ हिस्से में छठ के रूप में होती है. इस पर्व के दौरान सूर्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट किया जाता है. कहते हैं कि छठी मइया स्कंदमाता पार्वती का ही स्वरूप है. सूर्य की पूजा को छठ मइया कह कर सूर्य के वात्सल्य भाव को प्रकट किया जाता है. क्यों कहते हैं लोकपर्व दरअसल छठ ही एक ऐसा पर्व है जिसे आस्था का महापर्व और लोकपर्व कहा जाता है. इसकी वजह यह है कि इस पर्व में सामाजिक विभेद समाप्त हो जाता है. जाति-धर्म और अमीर-गरीब का फासला खत्म हो जाता है. यह सामान्य लोगों का पर्व है जिसमें पड़ोसी भी भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं. इसके अलावा इस पर्व की यह भी विशेषता है कि इसमें पुरोहित अथवा पंडित की कोई आवश्यकता नहीं होती. इसके अलावा यह अकेला पर्व है जिसमें जिस देवता की पूजा होती है वे प्रत्यक्ष होते हैं. व्रती प्रत्यक्ष रूप से सूर्य को अर्घ्य देते हैं. अर्थात इस लोकपर्व में आराध्य अलौकिक नहीं लौकिक होते हैं. पर्व देता है दूरगामी संदेश महापर्व छठ ने केवल सामाजिक समरसता का संदेश देता है बल्कि समाज के द्वारा समाज के नियंत्रण का भी संदेश देता है. इसके अलावा जीवन के यथार्थ से जुड़े संदेश भी देता है. इस पर्व में न केवल उगते बल्कि डूबते सूर्य की भी पूजा होती है. संदेश स्पष्ट है कि उदय के बाद अस्त और अस्त के बाद उदय जिंदगी का सार्वभौम सत्य है. सूर्य को अर्घ्य जल में खड़ा होकर देने का संदेश यह है कि जल सभ्यता की जननी है और जल ही जीवन है. इसके अलावा महापर्व बेटी बचाओ आंदोलन की भी वकालत करता नजर आता है. छठ के गीतों में बेटी मांगने की गूंज भी सुनायी देती है. गीत ‘रू नकी -झुनकी बेटी दिहो, पढ़ल पंडितवा दामाद’ कहती है कि बेटियां बोझ नहीं, विरासत और संस्कृति की वाहक है. फोटो: 16 पूर्णिया 17परिचय: सूर्य को अर्घ्य देती महिला (फाइल फोटो)
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सामाजिक समरसता का त्योहार है महापर्व छठ
सामाजिक समरसता का त्योहार है महापर्व छठ पूर्णिया. लोक आस्था का महापर्व छठ सामाजिक समरसता का त्योहार भी है. इसका भौगोलिक दायरा अब बिहार और उत्तर प्रदेश से विस्तृत होता हुआ कश्मीर से कन्याकुमारी और सात समंदर पार तक जा पहुंचा है. इस फैलाव की वजह इस पर्व में निहित उद्देश्य और भावना है. लोक […]
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