आज से नवरात्रि आरंभ, होगा कलश स्थापन प्रतिनिधि, पूर्णिया शारदीय नवरात्र का आगाज आज से होगा. पूजा के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा होगी. साथ ही मौके पर कलश भी स्थापित किया जायेगा.हालांकि ज्यातिषियों के अनुसार मंगलवार की सुबह का समय कलश स्थापना करने के लिए शुभ नहीं है.इसकी मूल वजह है कि आज चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग है.जबकि अभिजीत मुहूर्त में 11:36 से 12:24 बजे के बीच कलश स्थापना के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त बताया गया है.नवरात्र की पूजा में अष्टमी एवं नवमी की पूजा 21 अक्तूबर को होगी.जबकि निशा पूजा 20 अक्टूबर को होगी. प्रतिमा को दिया जा रहा आखिरी रूपदुर्गापूजा को लेकर जिला मुख्यालय सहित विभिन्न इलाकों में तैयारी जोरों पर है.कई पूजा समितियों द्वारा दुर्गापूजा पंडाल व प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जा रहा है.सप्तमी की पूजा 20 अक्तूबर को होगी. इसी दिन रात में निशा पूजा होगी.साथ ही मंदिर का पट भी आम लोगों के लिए खोल दिया जायेगा.सभी श्रद्धालु 21 अक्तूबर से माता के दर्शन कर पायेंगे.इस दिन अष्टमी व नवमी की पूजा होगी.साथ ही मौके पर छाग बली भी दी जायेगी.22 अक्तूबर को अपराजिता पूजा होगी.विजया दशमी के इस मौके पर श्रद्धालु निलकंठ के दर्शन करेंगे.इसके उपरांत माता का विसर्जन किया जायेगा.आज होगी मां शैलपुत्री की पूजाशारदीय नवरात्र के प्रथम दिन मंगलवार को मां दुर्गा के दस स्वरूपों में से प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा होगी.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता ने इस स्वरूप में पर्वत (शैल) राज हिमालय के घर अवतार लिया था.इस स्वरूप में माता एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे हाथ में कमल धारण किये रहती है. माता शैलपुत्री को सभी वन्य जीवों का संरक्षक माना जाता है.मान्यता है कि सच्ची श्रद्धा से की गयी मां की पूजा मानव जन को भी सभी विघ्नों से सुरक्षित रखती है.ऐसे करें कलश की स्थापनाकलश स्थापना के लिए धर्म ग्रंथों में विशेष रूप से पवित्रता पर बल दिया गया है.इसके अनुसार सबसे पहले गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध करना चाहिए.इसके उपरांत पूजा के दौरान सभी देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है.कलश में सुपारी, मुद्रा के अलावा सात प्रकार की मिट्टी रखी जाती है.विकल्प के तौर पर सात मिट्टी के स्थान पर गंगौट (गंगा नदी की मिट्टी) का भी प्रयोग होता है.साथ ही इसे पांच प्रकार के पत्तों से सजाया जाता है.कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज व जौ बोए जाते हैं.इसके उपरांत भगवान गणेश व माता दुर्गा की पूजा होती है.पूजा के साथ ही नौ दिनों का व्रत आरंभ होता है.विजया दशमी के दिन इस जंतरी (जौ के पत्ते) को विधि-विधान के साथ पूजा के उपरांत लोग धारण करते हैं.कन्या पूजा का विशेष महत्वदशहरा पूजा के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यताओं के अनुसार पूजा के दस दिनों तक दस कन्या को भोजन कराने का विधान है.कहते हैं कि ये कन्याएं माता का स्वरूप होती हैं.हालांकि लोग अपनी क्षमता के अनुसार ही कन्याओं को भोजन कराते हैं.दस दिनों तक दस कन्याओं को भोजन कराना अनिवार्य नहीं है.इसके तहत ब्राह्मण कन्याओं को भोजन कराने से घरों में ज्ञान और सुख का आगमन होता है.जबकि क्षत्रिय कन्याएं शत्रुओं पर विजय दिलाने में सहयोगी बतायी गयी है.वैश्य कन्याओं को कराया गया भोजन घरों में समृद्धि लाता है.वही शुद्र कन्याओं को भोजन कराने से घर की सुख शांति बनी रहती है.आम लोगों के लिए फल दायक होगी माताइस वर्ष मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आ रही है. जिसे राजा के लिए अशुभ बताया जा रहा है, जबकि माता मनुष्य पर सवार होकर माता विदा लेंगी, जो आम लोगों के लिए फल दायक होगा. पंडित दयानाथ मिश्र बताते हैं कि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा में मंगलवार को माता का पदार्पण होगा. वे घोड़े पर आयेंगी और मनुष्य पर सवार होकर विदा लेंगी. निश्चित रूप से बेहतर फल लायेगा.
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आज से नवरात्रि आरंभ, होगा कलश स्थापन
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