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महज पच्चीस कर्मियों के भरोसे चल रहा प्रधान डाकघर का कामकाज

पूर्णिया : प्रमंडलीय मुख्यालय में अवस्थित प्रधान डाकघर का कामकाज महज पच्चीस कर्मियों के भरोसे चल रहा है. नतीजतन डाककर्मियों पर काम का बोझ बढ़ गया है और इस बोझ के कारण वे समय से पहले रिटायरमेंट ले रहे हैं. इससे जहां डाककर्मियों की परेशानी बढ़ गयी है वहीं प्रधान डाकघर के काम पर भी […]

पूर्णिया : प्रमंडलीय मुख्यालय में अवस्थित प्रधान डाकघर का कामकाज महज पच्चीस कर्मियों के भरोसे चल रहा है. नतीजतन डाककर्मियों पर काम का बोझ बढ़ गया है और इस बोझ के कारण वे समय से पहले रिटायरमेंट ले रहे हैं. इससे जहां डाककर्मियों की परेशानी बढ़ गयी है वहीं प्रधान डाकघर के काम पर भी इसका असर पड़ रहा है. डाककर्मियों कहना है कि संख्या घटने से उन पर काम का दबाव अत्यधिक हो गया है जिसे झेलना मुश्किल साबित हो रहा है.

गौरतलब है कि डाक विभाग में नयी बहाली बंद है और कर्मचारी अपनी उम्र और सेवा काल के हिसाब से सेवानिवृत हो रहे हैं. नतीजतन स्वाभाविक रूप से कर्मचारियों की संख्या कम होती जा रही है जबकि आधुनिकीकरण की होड़ में काम का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है.
उपलब्ध जानकारी के अनुसार प्रधान डाकघर में 42 डाककर्मी की जरूरत है जबकि अभी मात्र 25 कर्मचारी हैं. इसमें भी काम के दबाव के कारण दो कर्मियों ने समय से पहले स्वेच्छित रिटायरमेंट ले लिया है. विभागीय जानकारों ने बताया कि जिनकी नौकरी अभी पांच साल बची थी उन्होंने पिछले 30 जून को और दूसरे ने तीन साल पहले ही स्वेच्छित रिटायरमेंट ले लिया.
जानकारों के मुताबिक अभी सहायक डाक पाल का 05, डिप्टी डाक पाल का 01 और डाकपाल का 01 पद रिक्त है. इस वर्ष एक मार्च से डाकघर में पोस्टमास्टर का पद खाली है. डीपीएम का पद वर्षों से रिक्त है. वर्तमान में जो पोस्टमास्टर के प्रभार में हैं उन पर पहले से दो विभागों का भार है.
डाककर्मियों में इस बात पर रोष है कि जिस तरह प्रधान डाकघर का आधुनिकीरण किया जा रहा है उस हिसाब से कर्मियों की बहाली नहीं हो पा रही है. सेवा में जो बचे हुए हैं उन्हीं कर्मियों से ड्यूटी करायी जा रही है. डाककर्मियों का कहना है कि उनकी संख्या कम हो गई है जबकि काम पहले से काफी बढ़ गया है.
नतीजतन मुख्य कामों को निबटाने के लिए अब कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. हालांकि वे मानते हैं कि इतनी परेशानी के बावजूद काम के प्रति कोई लापरवाही नहीं होती और सारे काम समय पर निबटा भी लिए जाते हैं. मगर, उन्हें मलाल है कि काम शुरू और खत्म होने का आठ घंटे के टाइम का कोई महत्व नहीं रह गया है और सुविधा भी नहीं बढ़ायी जा सकी है.

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