पूर्णिया : किडनी के सही रूप से कार्य न करने की स्थिति को किडनी फेल्यर कहा जाता है. किडनी फेल्यर का एक प्रमुख कारण मधुमेह (डायबिटीज) है. डायबिटीज में ब्लड शूगर के काफी समय तक अनियंत्रित रहने से किडनी की कार्यप्रणाली के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है.
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मधुमेह के रोगी रहें सतर्क, हो सकता है किडनी फेल्योर
पूर्णिया : किडनी के सही रूप से कार्य न करने की स्थिति को किडनी फेल्यर कहा जाता है. किडनी फेल्यर का एक प्रमुख कारण मधुमेह (डायबिटीज) है. डायबिटीज में ब्लड शूगर के काफी समय तक अनियंत्रित रहने से किडनी की कार्यप्रणाली के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा हाइ ब्लड प्रेशर, गुर्दे […]
इसके अलावा हाइ ब्लड प्रेशर, गुर्दे की छलनियों में संक्रमण, पथरी का बनना और दर्द निवारक दवाओं का अत्यधिक सेवन करने से भी कालांतर में किडनी फेल्यर की समस्या उत्पन्न हो सकती है.शरीर में दो किडनी होती हैं.जब किडनी खराब हो जाती है, तो इसके इलाज के दो ही विकल्प होते है.पहला, ताउम्र डायलिसिस पर रहना या फिर किडनी ट्रांसप्लांट कराना.
बचाव के लिए इन बातों पर करें अमल
जो लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं और जिनका ब्लड शूगर ज्यादा है, तो उन्हें अपनी ब्लड शूगर को नियंत्रित करना चाहिए. ब्लड शूगर नियंत्रण की स्थिति को जानने के लिए डॉक्टर के परामर्श से एचबीए1सी नामक टेस्ट कराएं.
यह टेस्ट पिछले तीन महीनों के ब्लड शूगर कंट्रोल की स्थिति को बताता है. ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें.यानी 125- 130/75-80 के आस-पास रहे.किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवाओं से बचें.
जैसे दर्द निवारक दवाएं (पेनकिलर्स).स्व-चिकित्सा (सेल्फ मेडिकेशन) न करें. डॉक्टर की सलाह से ही दवाएं लें. अगर किडनी से संबंधित कोई तकलीफ हो जाती है, तो शीघ्र ही नेफ्रोलॉजिस्ट से परामर्श लें.
आवश्यक जांच करायें
अनेक मामलों में किडनी की बीमारी से ग्रस्त लोगों में उपर्युक्त लक्षण नहीं पाए जाते हैं.ऐसी अवस्था में कुछ जांचों से बीमारी का पता चल सकता है. खून में यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर का बढ़ना. डायबिटीज के रोगियों की पेशाब की जांच भी करायी जाती है.
किडनी की कार्य करने की क्षमता में कमी आने से संबंधित जांच कराना.किडनी का अल्ट्रासाउंड. इस जांच से पता चलता है कि किडनी का साइज छोटा तो नहीं है और पेशाब में रुकावट का कारण क्या है.
डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपन है विकल्प
डायलिसिस जिसमें हफ्ते में आवश्यकता के अनुसार दो बार मशीन से खून साफ किया जाता है.इसमें एक नई किडनी (जो किसी दानदाता या डोनर के द्वारा दी जाती है) को मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.
इसके बाद डायलिसिस की जरूरत नहीं पड़ती.वर्तमान दौर में किडनी ट्रांसप्लांट एक अच्छा इलाज है, जिसके बाद मरीज आम आदमी की तरह जीवन व्यतीत कर सकता है.
डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपन है विकल्प
डायलिसिस जिसमें हफ्ते में आवश्यकता के अनुसार दो बार मशीन से खून साफ किया जाता है.इसमें एक नई किडनी (जो किसी दानदाता या डोनर के द्वारा दी जाती है) को मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है.
इसके बाद डायलिसिस की जरूरत नहीं पड़ती.वर्तमान दौर में किडनी ट्रांसप्लांट एक अच्छा इलाज है, जिसके बाद मरीज आम आदमी की तरह जीवन व्यतीत कर सकता है.
प्रारंभिक लक्षण
शरीर में सूजन का होना
पेशाब की मात्रा में कमी होना
प्रोटीन या खून का पेशाब में आना
बार-बार पेशाब आना
पेशाब में जलन होना
भूख की कमी होना और जी मिचलाना
शरीर में रक्त की कमी होना
ब्लड प्रेशर का बढ़ा होना
किडनी या गुर्दा शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है. इनमें खराबी आने से जिंदगी जीना मुश्किल हो जाता है, लेकिन मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण अब किडनी फेल्यर के मरीज भी सामान्य जिंदगी जी सकते हैं.
(डॉ अबधेश कुमार, सर्जन से बातचीत पर आधारित)
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