पूर्णिया : सदर अस्पताल के ओपीडी में जादुई अंदाज में डॉक्टर मरीजों का चिकित्सकीय जांच करते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि अस्पताल में पदस्थापित सभी चिकित्सक योग्य हैं, लेकिन जिस जादुई अंदाज में वे मरीजों को निबटाते हैं, वह अपने आप में एक बड़ा सवाल है. कहते हैं कि मरीजों की संतुष्टि भी रोग के इलाज में महत्वपूर्ण होता है. लेकिन जिस चलताऊ तरीके से मरीजों की जांच की जाती है, उससे मरीज ही असंतुष्ट नजर आते हैं.
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सदर अस्पताल. जादुई अंदाज में डॉक्टर करते हैं मरीजों का परीक्षण
पूर्णिया : सदर अस्पताल के ओपीडी में जादुई अंदाज में डॉक्टर मरीजों का चिकित्सकीय जांच करते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि अस्पताल में पदस्थापित सभी चिकित्सक योग्य हैं, लेकिन जिस जादुई अंदाज में वे मरीजों को निबटाते हैं, वह अपने आप में एक बड़ा सवाल है. कहते हैं कि मरीजों की संतुष्टि भी रोग […]
प्राइवेट क्लिनिक में
रमता है मन
अमूमन सदर अस्पताल के ओपीडी में एक मरीज पर अधिकतम एक मिनट दिया जाता है. यह नाकाफी है या काफी है, यह तकनीकी मामला हो सकता है. लेकिन यहां सवाल उठना इसलिए लाजिमी है कि ऐसे ही मरीज जब प्राइवेट क्लिनिक में पहुंचते हैं तो वही डॉक्टर साहब ऐसे मरीजों को न्यूनतम 05 मिनट और अधिकतम 10 मिनट तक समय देते हैं. इसके पीछे क्या मंशा रहती है, यह तो डॉक्टर ही बेहतर बता सकते हैं. यह सच है कि अधिकांश चिकित्सकों का मन प्राइवेट क्लिनिकों में ही रमता है. सदर अस्पताल उनके लिए प्रसिद्धि पाने का जरिया है और अच्छी तनख्वाह पाने का एक माध्यम भी है. लिहाजा प्राइवेट क्लिनिकों में आने वाले मरीजों पर उनकी कृपादृष्टि रहती है, जबकि सदर अस्पताल आने वाले मरीजों के साथ सरकारी स्तर का रवैया अपनाया जाता है.
बुधवार को सदर अस्पताल के ओपीडी में चिमनी बाजार निवासी आशमा खातून इलाज के लिए पहुंची थी. उन्हें शरीर में दर्द हो रहा था और खांसी की समस्या थी. इंतजार के बाद जब आशमा की बारी आयी तो परीक्षण के दौरान डॉक्टर ने मुश्किल से उसे 30 सेकेंड का समय दिया. सामान्य पूछताछ के बाद पर्ची पर दवा लिख कर उन्हें वापस पर्ची थमा दी गयी. आशमा और भी कुछ समस्या बताना चाह रही थी, लेकिन चिकित्सक ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया. आशमा कहती है ‘ लोग ठीके कहै रहै, प्राइवेट मय डॉक्टर ठीक सै देखतो, एते बेकारे आब गैलिये’.
केनगर थाना अंतर्गत गोआसी से सदर अस्पताल के ओपीडी में इलाज कराने आयी सागी देवी को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. उसे अक्सर चक्कर भी आता रहता है. ओपीडी में दिखाने गयी सागी देवी को डॉक्टर ने सामान्य पूछताछ के बाद पर्ची पर दवा लिखने के बाद पर्ची थमा दिया और बाहर जाने को कहा. वह पूर्व के इलाज के बारे में डॉक्टर को कुछ बताना चाहती थी, लेकिन डॉक्टर ने यह कह कर जाने को कहा कि वे सब कुछ समझ गये हैं. पूरी प्रक्रिया में लगभग 40 सेकेंड लगे. सागी डॉक्टर से मिल कर भी असंतुष्ट नजर आयी. यह हाल सदर अस्पताल के ओपीडी का है, जहां जादुई अंदाज में डॉक्टर मरीजों का चिकित्सकीय जांच करते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि अस्पताल में पदस्थापित सभी चिकित्सक योग्य हैं, लेकिन जिस जादुई अंदाज में वे मरीजों को निबटाते हैं, वह अपने आप में एक बड़ा सवाल है. कहते हैं कि मरीजों की संतुष्टि भी रोग के इलाज में महत्वपूर्ण होता है. लेकिन जिस चलताऊ तरीके से मरीजों की जांच की जाती है, उससे मरीज ही असंतुष्ट नजर आते हैं. हैरानी की बात यह है कि मरीजों को देखने के दौरान डॉक्टर मेडिकल रिपोर्ट एवं अन्य कामों का भी निबटारा करते हैं. ओपीडी में जांच कराने का समय प्रात: 08 बजे से 12 बजे और अपराह्न 04 बजे से 06 बजे रखा गया है. इस बीच मरीजों की लंबी लाइनें लगी रहती है. इसके बाद जब डॉक्टर ओपीडी पहुंचते हैं तो राजधानी एक्सप्रेस की तरह अपने काम में जुट जाते हैं और सच तो यह है कि कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कर पर्ची पर दवा लिख कर डॉक्टर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते हैं. ओपीडी के दौरान डॉक्टर के कमरे में भारी भीड़ रहती है. ऐसे में डॉक्टर एक साथ कई लोगों की सुनते हैं और सुन कर भी अनसुनी करते हैं.
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