पूर्णिया : जिले में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति तमाम कवायद के बावजूद बदहाली के दौर से निकलता नहीं दिख रहा है.
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कहीं सामूहिक कक्षा, तो कहीं खेलकूद में व्यस्त थे छात्र
पूर्णिया : जिले में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति तमाम कवायद के बावजूद बदहाली के दौर से निकलता नहीं दिख रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो खास्ताहाल है ही, शहरी क्षेत्रों की भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं है. अधिकांश सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति ही होती है. निजी विद्यालयों से उलट इन […]
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो खास्ताहाल है ही, शहरी क्षेत्रों की भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं है. अधिकांश सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति ही होती है.
निजी विद्यालयों से उलट इन स्कूलों में प्रवेश करते ही प्रथम दृष्टया समझा जा सकता है कि शिक्षक हो या छात्र, महज वक्त बिताने के लिए ही यहां पहुंचते हैं. बड़ी संख्या में बच्चे किताब से वंचित हैं तो कई जगहों पर भवन के अभाव में संयुक्त कक्षाएं संचालित होती है. कई विद्यालय में तो मध्याह्न भोजन के बाद अघोषित रूप से छुट्टी भी हो जाती है. जाहिर है कि नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय है.
अधिकांश सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर हो रही खानापूर्ति, अभिभावक परेशान
दोपहर के बारह बजे रहे थे. स्कूल में दो शिक्षक बच्चों को पढ़ाते नजर आये. स्कूल में भवन के अभाव में विद्यालय में नामांकित बच्चों को एक ही जगह बैठा कर पढ़ाया जा रहा था. क्षमता से अधिक छात्र होने की वजह से कई बच्चे खेलने में व्यस्त नजर आये. शायद यह रोजमर्रे की बात होगी, इसलिए शिक्षक ने इस बात की नोटिस लेना जरूरी नहीं समझा. बच्चों को मध्याह्न भोजन की घंटी बजने का इंतजार था. जिसके बाद वे अपने घर का रूख कर सकें. विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों ने बातचीत के दौरान बताया कि स्कूल में 150 बच्चे नामांकित हैं.
दोपहर के साढ़े बारह बज रहे थे. विद्यालय में करीब 30 से 40 बच्चे उपस्थित थे.
यहां कुछ बच्चे क्लास में बैठ पठन-पाठन कर रहे थे. लेकिन खास बात यह थी कि अधिकांश बच्चों के पास पुस्तकें नहीं थी. स्कूल की दीवार महीनों से टूटी हुई है. जिसके बगल से नाला बहर रहा था. नाला से दुर्गंध आ रही थी जिससे वहां खड़ा रहना तक मुश्किल था. ऐसे में वहां पढ़ने वाले बच्चे हर रोज किस तरह पढ़ाई करते होंगे, सहज ही समझा जा सकता है. स्कूल के आसपास वैसी दुकानें संचालित है, जहां निषेधित उत्पाद धड़ल्ले से बेचे जाते हैं.
दोपहर के करीब ढ़ाई बज रहे थे. विद्यालय में मध्याह्न भोजन का समय समाप्त हो चुका था. एमडीएम के बाद सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षा में थे. जहां पढ़ाई कम, शोर अधिक हो रहा था. विद्यालय में जगह के अभाव में एमडीएम का खाना स्कूल के बरामदे पर भी पकाया जाता है. इस दौरान पूरा विद्यालय धुएं से भरा रहता है. वहीं दो कमरे में एक विद्यालय संचालित हो रहा है तो एक कमरे में दूसरा विद्यालय संचालित हो रहा है, जो भवनहीन था. खास बात यह थी कि यहां संयुक्त कक्षाएं संचालित होती है. मतलब साफ है कि पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति होती है.
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